
Deoghar। तीन दिन बाद है वट सावित्री व्रत, जाने इस दिन की पौराणिक मान्यता व इस बार के शुभ योग।
देवघर। पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं, व्रत कथा सुनती हैं और व्रत का पालन करती हैं। शुभ मुहूर्त में पूजा करने से पुण्य और वरदान प्राप्त होते हैं।
मान्यता है कि इसी दिन देवी सावित्री ने अपने तप से यमराज को प्रसन्न कर अपने पति सत्यवान के प्राण लौटा लिए थे। यह व्रत सावित्री की अदम्य निष्ठा और तप का प्रतीक माना जाता है। तभी से सुहागिन महिलाएं सावित्री की तरह अपने पति के जीवन और सौभाग्य के लिए यह व्रत करती आ रही हैं।
ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि का आरंभ 26 मई 2025 को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट से होगा और यह तिथि 27 मई 2025 को सुबह 8 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी। हिंदू पंचांग के अनुसार किसी भी व्रत और पर्व का निर्धारण उदया तिथि के आधार पर किया जाता है, इसलिए वट सावित्री व्रत 2025 में 26 मई को ही रखा जाएगा। इस दिन व्रत रखने से शास्त्रसम्मत फल की प्राप्ति होती है और व्रती महिलाओं को अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है।
वट सावित्री व्रत की पूजा विधि
सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
भगवान विष्णु, माता सावित्री और वट वृक्ष का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
पूजा के लिए वट वृक्ष, रक्षा सूत्र, रोली, चंदन, सुपारी, अक्षत, कुमकुम, फूल, फल, सिंदूर, नारियल, पानी का कलश, दीपक, मिठाई, देवी सावित्री व सत्यवान की मूर्ति या तस्वीर, व्रत कथा की पुस्तक आदि की आवश्यकता होगी ।
वट वृक्ष के चारों ओर रक्षा सूत्र (कच्चा सूत) लपेटते हुए परिक्रमा करें और पूजा करें।
सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ करें और भगवान से प्रार्थना करें।
व्रतधारी महिलाएं दिनभर उपवास रखें और अगले दिन व्रत का पारण करें।
पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस पाए थे।यमराज ने न केवल सत्यवान को जीवनदान दिया, बल्कि सावित्री को सौ पुत्रों का वरदान भी दिया।तभी से वट वृक्ष की पूजा इस व्रत का अभिन्न अंग बन गई है।
