
धनबाद। कभी कोयला नगरी के नाम से पहचाने जाने वाले धनबाद जिले का निरसा प्रखंड आजकल एक नए और सकारात्मक कारण से चर्चा में है। यहां के ग्रामीण अब आधुनिक तकनीक से मछली पालन (Fish Cage Culture) कर न सिर्फ अपनी आजीविका सुधार रहे हैं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की दिशा में भी सशक्त कदम बढ़ा रहे हैं।
नदी, जलाशयों और डैम में फिश केज कल्चर तकनीक के माध्यम से ग्रामीणों को कम लागत में अधिक मुनाफा हो रहा है। इस पहल से न सिर्फ रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं, बल्कि गांवों की आर्थिक स्थिति भी तेजी से बेहतर हो रही है।
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🎯 क्या है फिश केज कल्चर?
फिश केज कल्चर एक आधुनिक मछली पालन तकनीक है, जिसमें नदी या जलाशय के पानी में जालीदार केज (Cage) लगाकर मछलियों को पाला जाता है। इन केजों को पानी की सतह पर तैरता हुआ रखा जाता है और भीतर मछलियों के लिए अनुकूल माहौल बनाया जाता है।
इस पद्धति से कम जगह में ज़्यादा मछलियों का पालन संभव होता है और मछलियों की देखरेख, खाना देना और स्वास्थ्य पर निगरानी भी आसानी से की जा सकती है।
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🧑🌾 गांवों के किसान हो रहे लाभान्वित
निरसा के कई गांवों में किसानों ने इस तकनीक को अपनाया है। स्थानीय निवासी संतोष महतो कहते हैं, “पहले हम सिर्फ खेतों पर निर्भर थे, लेकिन अब मछली पालन से महीने में ₹15,000 से ₹20,000 तक की आमदनी हो जाती है।”
कई महिलाएं भी इस काम में भागीदारी कर रही हैं, जिससे महिला सशक्तिकरण को भी बढ़ावा मिला है।
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💰 राज्य सरकार से मिल रही सब्सिडी और प्रशिक्षण
झारखंड सरकार के मत्स्य पालन विभाग द्वारा इस योजना को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीणों को 50% तक सब्सिडी दी जा रही है। साथ ही, तकनीकी प्रशिक्षण और आवश्यक सामग्री जैसे केज, मछली बीज, और फीड भी उपलब्ध कराया जा रहा है।
सरकार की योजना है कि आने वाले वर्षों में हर जिले में चयनित जलाशयों में केज कल्चर को बढ़ाया जाए ताकि बेरोजगारी को कम किया जा सके।
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📈 कैसे बढ़ रही है आमदनी?
एक केज से औसतन 4 से 5 क्विंटल मछली मिलती है।
बाजार में मछलियों की कीमत ₹120 से ₹180 प्रति किलो तक जाती है।
एक किसान एक बार में ₹60,000 से ₹90,000 तक कमा सकता है।
पूरे साल में 2-3 चक्र में पालन करके ₹2 लाख तक की कमाई संभव है।
🌱 पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद
इस पद्धति से जल संसाधनों का सही उपयोग होता है।
मिट्टी या ज़मीन की ज़रूरत नहीं होती, जिससे पर्यावरणीय नुकसान नहीं होता।
पानी का प्रदूषण भी कम होता है क्योंकि फीड और अपशिष्ट को नियंत्रित तरीके से डाला जाता है।
धनबाद के निरसा इलाके में फिश केज कल्चर न केवल ग्रामीणों की आर्थिक हालत मजबूत कर रहा है, बल्कि पूरे क्षेत्र की सामाजिक और आर्थिक तस्वीर को बदल रहा है। इस पहल से यह स्पष्ट है कि सही मार्गदर्शन और सरकारी सहयोग से गांवों में भी आधुनिक तकनीकों के माध्यम से बदलाव लाया जा सकता है।