
Water Crisis: जल संकट की आहट! झारखंड-बिहार की तीन दर्जन नदियां सूखने की कगार पर, पारिस्थितिकी तंत्र पर मंडराया बड़ा खतरा।
झारखंड और बिहार के लोगों के लिए एक चिंताजनक खबर सामने आई है। इन दोनों राज्यों की कई प्रमुख और छोटी नदियां तेजी से सूख रही हैं, जिससे आने वाले समय में भीषण जल संकट का खतरा मंडराने लगा है। अनुमान है कि करीब तीन दर्जन नदियां गंभीर खतरे की चपेट में हैं और अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट विकराल रूप ले सकता है।
जलवायु परिवर्तन, अनियमित मानसून, अतिक्रमण, अवैध बालू खनन और जंगलों की अंधाधुंध कटाई जैसी वजहों ने इन नदियों के अस्तित्व पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। कभी जो नदियां पूरे साल जल से लबालब रहती थीं, वे आज या तो पूरी तरह सूख चुकी हैं या केवल बरसात के मौसम में कुछ हफ्तों के लिए ही दिखाई देती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस संकट का असर न केवल पेयजल आपूर्ति पर पड़ेगा, बल्कि खेती-किसानी, जैव विविधता और हजारों गांवों की जीवनरेखा पर भी इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा। कई गांवों और कस्बों में पहले ही जलस्तर काफी नीचे चला गया है, जिससे लोगों को पानी के लिए मीलों दूर जाना पड़ रहा है।
झारखंड के पलामू, गढ़वा, लातेहार, लोहरदगा, और बिहार के गया, औरंगाबाद, नवादा, नालंदा जैसे इलाकों में स्थिति काफी गंभीर बताई जा रही है। नदियों के किनारे बसे गांवों में सिंचाई के साधन खत्म होते जा रहे हैं, जिससे किसानों की परेशानियां भी बढ़ गई हैं।
पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों ने सरकार से आग्रह किया है कि नदियों के पुनर्जीवन के लिए तुरंत ठोस रणनीति बनाई जाए। रेन वॉटर हार्वेस्टिंग, वृक्षारोपण, पारंपरिक जल स्रोतों का संरक्षण और अवैध खनन पर रोक जैसे कदम जल्द उठाए जाने जरूरी हैं।
झारखंड और बिहार की सूखती नदियां केवल पर्यावरण का नहीं, बल्कि मानव जीवन का भी सवाल बन चुकी हैं। अगर समय रहते समाधान नहीं निकाला गया, तो आने वाले वर्षों में यह संकट आमजन के जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। अब समय आ गया है कि सरकार, समाज और हर नागरिक मिलकर इस जल संकट से निपटने की दिशा में सार्थक प्रयास करें, ताकि इन नदियों को फिर से जीवन मिल सके।