Ranchi: रेत संकट से थमा निर्माण कार्य, बारिश में NGT बैन बना कारण, सरकारी और निजी प्रोजेक्ट पर असर।

Ranchi: रेत संकट से थमा निर्माण कार्य, बारिश में NGT बैन बना कारण, सरकारी और निजी प्रोजेक्ट पर असर।

रांची। झारखंड सहित कई राज्यों में इस समय रेत की भारी किल्लत ने निर्माण कार्यों को लगभग ठप कर दिया है। इसका सबसे बड़ा कारण है मानसून के दौरान नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) द्वारा लगाए गए खनन प्रतिबंध, जिसके चलते नदियों से रेत निकालने पर पूरी तरह रोक लगी हुई है।

रेत की कमी से प्रभावित हो रहे प्रोजेक्ट

NGT के निर्देशानुसार हर साल मानसून के दौरान नदियों में खनन पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है ताकि पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखा जा सके। लेकिन इस वर्ष यह प्रतिबंध बड़े पैमाने पर निर्माण योजनाओं के लिए संकट बनकर सामने आया है।
सरकारी इमारतें, सड़कों की मरम्मत, पुल निर्माण, और आवास योजनाओं से लेकर निजी मकानों तक – हर जगह निर्माण कार्य प्रभावित हो रहा है।

बढ़ती कीमतें, घटती उपलब्धता

रेत की मांग अधिक और आपूर्ति न के बराबर होने के चलते बाजार में इसकी कीमतें तेज़ी से बढ़ गई हैं। सामान्य दिनों में जहां एक ट्रक रेत की कीमत ₹5,000–₹6,000 के बीच होती थी, वहीं अब यह कीमत ₹10,000 से ₹15,000 प्रति ट्रक तक पहुंच चुकी है।

अवैध खनन और काला बाज़ारी बढ़ी

सरकारी रोक के बीच कुछ क्षेत्रों में अवैध रेत खनन और काला बाजारी भी तेज हो गई है। कई निर्माण ठेकेदार बिना वैध परमिट के रेत खरीदने को मजबूर हैं, जिससे कानूनी जोखिम भी बढ़ गया है।

प्रशासन की सख्ती

स्थानीय प्रशासन ने चेतावनी दी है कि NGT के आदेशों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। हाल ही में कई जिलों में अवैध खनन में लिप्त ट्रकों को जब्त भी किया गया है। प्रशासन का कहना है कि रेत संकट से निपटने के लिए वैकल्पिक उपायों पर भी विचार किया जा रहा है, जैसे मैन-मेड सैंड (एम-सैंड) का उपयोग बढ़ाना।

निर्माण कंपनियों की मांग

प्राइवेट बिल्डरों और सरकारी ठेकेदारों ने सरकार से आग्रह किया है कि मानसून में भी सीमित मात्रा में रेत खनन की अनुमति दी जाए या रेत का वैकल्पिक स्रोत जल्द उपलब्ध कराया जाए।

NGT का निर्णय पर्यावरण की दृष्टि से सही है, लेकिन इससे राज्य की बुनियादी विकास योजनाओं की रफ्तार थम गई है। ऐसे में जरूरी है कि पर्यावरण संतुलन और निर्माण गतिविधियों के बीच संतुलन बनाने के लिए दीर्घकालिक नीति तैयार की जाए, ताकि भविष्य में इस तरह की किल्लत से बचा जा सके।

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