
तिब्बत में ब्रह्मपुत्र पर बांध निर्माण शुरू: चीन की बड़ी जल परियोजना से भारत में चिंता की लहर
चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी पर तिब्बत के मेडोग जिले में एक विशाल जलविद्युत परियोजना की औपचारिक शुरुआत कर दी है। यह कदम न केवल चीन की ऊर्जा महत्वाकांक्षाओं को दर्शाता है, बल्कि इससे भारत और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में जल सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता भी उत्पन्न हो गई है। ब्रह्मपुत्र, जिसे चीन में यारलुंग त्सांगपो कहा जाता है, भारत और बांग्लादेश के करोड़ों लोगों के जीवन और कृषि का प्रमुख आधार है। ऐसे में इसके प्रवाह में किसी भी बदलाव का प्रभाव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महसूस किया जा सकता है।
चीनी सरकार ने हाल ही में औपचारिक रूप से तिब्बत के अत्यधिक संवेदनशील और भूकंप-प्रवण क्षेत्र, मेडोग में ब्रह्मपुत्र नदी पर एक विशाल बांध परियोजना की आधारशिला रखी है। इस परियोजना को चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना में शामिल किया गया था और अब इसे पूरी गति से आगे बढ़ाया जा रहा है।
यह बांध 60 गीगावॉट (GW) क्षमता वाला बताया जा रहा है, जो विश्व की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं में से एक होगा। यह चीन को स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में बड़ी छलांग दिला सकता है, लेकिन इसके साथ ही यह परियोजना कई भौगोलिक और भू-राजनीतिक सवाल भी खड़े कर रही है।
भारत की चिंता:
भारत के लिए यह मुद्दा बेहद संवेदनशील है, क्योंकि ब्रह्मपुत्र नदी भारत के पूर्वोत्तर राज्यों—विशेषकर अरुणाचल प्रदेश और असम—के लिए जीवनरेखा जैसी है। बांध के निर्माण से इस नदी के प्रवाह में कृत्रिम बदलाव संभव हो सकते हैं, जिससे निचले इलाकों में सूखा या बाढ़ की स्थिति पैदा हो सकती है।
भारत के विदेश मंत्रालय ने पहले ही इस परियोजना पर चिंता जताई है और स्पष्ट किया है कि वह चीन के साथ ट्रांस-बाउंड्री जल संसाधनों को लेकर बातचीत जारी रखेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन इस परियोजना को जल कूटनीति (Water Diplomacy) के रूप में इस्तेमाल कर सकता है, जिससे भारत की सामरिक स्थिति प्रभावित हो सकती है।
जल संप्रभुता और पर्यावरणीय संकट:
यह बांध न सिर्फ एक भू-राजनीतिक चिंता है, बल्कि एक गंभीर पर्यावरणीय मुद्दा भी बन सकता है। ब्रह्मपुत्र एक अत्यंत संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र से होकर गुजरती है। वहां के प्राकृतिक प्रवाह में किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ निचले इलाकों की जैव विविधता, मछलियों की प्रजातियों, और किसानों की फसलों पर विनाशकारी असर डाल सकती है।
इसके अलावा, तिब्बत का वह इलाका जहां बांध बन रहा है, भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील है। इस क्षेत्र में बड़े बांधों का निर्माण प्राकृतिक आपदा को न्योता देने जैसा हो सकता है।
बांग्लादेश की भूमिका:
ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश में जमुना नाम से प्रवाहित होती है और वहां भी लाखों लोग इस नदी पर निर्भर हैं। यदि नदी के जल प्रवाह में कोई बदलाव होता है, तो बांग्लादेश में जल संकट और कृषि उत्पादन पर बड़ा असर पड़ सकता है। हालांकि, बांग्लादेश और चीन के बीच मजबूत आर्थिक संबंधों को देखते हुए अभी तक कोई औपचारिक विरोध सामने नहीं आया है।
चीन की सफाई:
चीन का तर्क है कि यह बांध परियोजना “रन-ऑफ-द-रिवर” प्रकार की है, जिसमें जल का भंडारण नहीं किया जाएगा, बल्कि जल प्रवाह का उपयोग सीधे बिजली उत्पादन के लिए किया जाएगा। लेकिन भारत सहित कई विशेषज्ञ इस दावे पर संदेह करते हैं, क्योंकि इतनी बड़ी परियोजना में जल के भंडारण की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।
चीन पहले भी मेकोंग नदी पर ऐसे बांध बना चुका है, जिससे निचली धारा वाले देशों में जल संकट उत्पन्न हुआ था। ऐसे में ब्रह्मपुत्र परियोजना को लेकर भी समान आशंकाएं हैं।
रणनीतिक दृष्टिकोण:
यह परियोजना भारत-चीन संबंधों में एक और संवेदनशील मोर्चा खोल सकती है। पहले ही लद्दाख सीमा पर तनाव की स्थिति बनी हुई है और अब जल संसाधन को लेकर नया विवाद उभर सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत को इस मुद्दे पर बहुपक्षीय मंचों—जैसे संयुक्त राष्ट्र, BIMSTEC, और SAARC—पर अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए।
इसके साथ ही भारत को भी अपने जल संसाधनों के समुचित प्रबंधन की रणनीति बनानी होगी। अरुणाचल और असम में छोटे बांध और जल संरक्षण परियोजनाओं को तेज़ी से लागू करने की आवश्यकता है, ताकि चीन की गतिविधियों से उत्पन्न खतरे को संतुलित किया जा सके।