
तिरुपति मंदिर में 4 नॉन-हिंदू कर्मचारियों को हटाया गया, आस्था के उल्लंघन पर उठे सवाल
देश के सबसे बड़े और प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक, तिरुपति बालाजी मंदिर एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार मामला मंदिर की परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं से जुड़ा है। तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) बोर्ड ने मंदिर परिसर में कार्यरत 4 गैर-हिंदू कर्मचारियों को सेवा से हटाने का फैसला लिया है। बोर्ड का कहना है कि यह कदम मंदिर की सनातन परंपरा और आस्था की रक्षा के लिए उठाया गया है।
मुख्य समाचार:
तिरुपति बालाजी मंदिर, जो न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर के करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, वहां 4 ऐसे कर्मचारी काम कर रहे थे जो हिंदू धर्म का पालन नहीं करते थे। इन कर्मचारियों की धार्मिक पहचान सामने आने के बाद देवस्थानम प्रशासन ने मामले की गंभीरता को समझते हुए तत्काल कार्रवाई की।
TTD बोर्ड ने कहा कि इन कर्मचारियों को मंदिर परिसर से हटाना जरूरी हो गया था क्योंकि वे “मंदिर की धार्मिक मर्यादा के विपरीत” कार्य कर रहे थे। देवस्थानम के नियमों के अनुसार, मंदिर के भीतर काम करने वाले कर्मचारियों का हिंदू होना अनिवार्य है और उन्हें नियुक्ति के समय एक “हिंदू आस्था शपथ पत्र” भरना होता है।
TTD के चेयरमैन बी. हुमसा रेड्डी ने स्पष्ट किया कि यह फैसला किसी धर्म के खिलाफ नहीं, बल्कि मंदिर की परंपराओं की रक्षा के लिए लिया गया है। उन्होंने कहा कि बोर्ड सभी धर्मों का सम्मान करता है, लेकिन मंदिर की धार्मिक संहिता के उल्लंघन की अनुमति नहीं दी जा सकती।
पृष्ठभूमि और विवाद:
तिरुमला मंदिर एक प्राचीन हिंदू तीर्थ स्थल है और इसका संचालन TTD के हाथों में है, जो एक स्वायत्त संगठन है। मंदिर का प्रबंधन बहुत सख्त धार्मिक मानदंडों के अनुसार किया जाता है। यहां तक कि मंदिर की रसोई, पुजारी, सुरक्षाकर्मी और अन्य स्टाफ भी उसी धार्मिक पृष्ठभूमि से आते हैं, जिससे मंदिर की परंपरा बनी रहती है।
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में यह मामला कई बार चर्चा में आया है कि मंदिर परिसर में गैर-हिंदू कर्मचारियों की नियुक्ति होती है, जो देवस्थानम के नियमों का उल्लंघन माना जाता है। इस बार जब यह खुलासा हुआ कि 4 कर्मचारी नॉन-हिंदू हैं, तो सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने इसका तीखा विरोध किया।
क्या कहते हैं नियम और शपथ पत्र?
TTD के भर्ती नियमों के तहत, हर कर्मचारी को नियुक्ति के समय यह शपथ लेनी होती है कि वह हिंदू है और मंदिर की मान्यताओं का पालन करेगा। जिन कर्मचारियों को निकाला गया, उन्होंने यह शपथ पत्र भरने के बावजूद निजी स्तर पर किसी अन्य धर्म का पालन किया, जो कि “जानबूझकर गुमराह करना” माना गया।
बोर्ड ने कहा कि यह न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने जैसा भी है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया:
इस फैसले के बाद सामाजिक और राजनीतिक हलकों में भी बहस शुरू हो गई है। कुछ संगठनों ने TTD के इस कदम का समर्थन करते हुए कहा कि यह मंदिर की पवित्रता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। वहीं, कुछ मानवाधिकार संगठनों ने इस निर्णय पर सवाल उठाए और इसे धार्मिक असहिष्णुता करार दिया।
हालांकि, अधिकांश स्थानीय संगठनों और श्रद्धालुओं ने TTD की कार्रवाई को सही बताया है। उनका कहना है कि “हर धर्मस्थल की अपनी आस्थाएं और मर्यादाएं होती हैं, जिनका पालन करना सभी का कर्तव्य है।”
TTD की आगे की योजना:
TTD ने कहा है कि वह भविष्य में नियुक्ति प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और सख्त बनाएगा ताकि ऐसे विवाद दोबारा न हों। बोर्ड अब यह सुनिश्चित करने के लिए “धार्मिक सत्यापन प्रक्रिया” पर विचार कर रहा है, जिससे किसी भी कर्मचारी की धार्मिक पहचान स्पष्ट रूप से दर्ज हो।
इसके अलावा, यह भी प्रस्तावित किया गया है कि हर साल कर्मचारियों को एक “आस्था नवीनीकरण शपथ पत्र” भरना होगा ताकि नियमों का पुनः पालन सुनिश्चित हो सके।
तिरुपति मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था और भावना का प्रतीक है। इस मंदिर से जुड़ी परंपराएं और मर्यादाएं सदियों पुरानी हैं। TTD द्वारा उठाया गया यह कदम न केवल मंदिर की पवित्रता बनाए रखने का प्रयास है, बल्कि यह संकेत भी है कि धार्मिक स्थलों में सेवा करने वालों को वहां की आस्थाओं का सम्मान करना चाहिए।
TTD ने जो फैसला लिया है, वह भविष्य में मंदिर प्रशासन और कर्मचारियों दोनों के लिए एक उदाहरण बन सकता है, जिससे आस्था और नियमों के बीच संतुलन बना रहे।