
हेडलाइन: अफसरों ने बंगलों के नाम पर किया बड़ा ‘खेल’, अब होगी वसूली
धनबाद में कोल माइंस प्रोविडेंट फंड (CMPF) संगठन के अधिकारियों द्वारा बंगलों के नाम पर आवास भत्ते की जबरदस्त हेराफेरी सामने आई है। पूर्व आयुक्त विजय कुमार मिश्रा समेत कई अफसरों ने बिना पात्रता के सरकारी भत्ते का लाभ उठाया। जांच में अनियमितताएं उजागर होने के बाद अब संबंधित अधिकारियों से रकम की वसूली शुरू हो गई है।
कोयला खान भविष्य निधि संगठन (CMPF) के पूर्व आयुक्त विजय कुमार मिश्रा और अन्य अधिकारियों ने आवास भत्ते के नाम पर वर्षों तक नियमों को ताक पर रखकर लाखों रुपये का भुगतान उठाया। यह भत्ता उन्हें केवल किराये के मकान में रहने की स्थिति में ही मिलना चाहिए था, लेकिन कई अधिकारियों ने अपने खुद के आवासों में रहकर भी इस सुविधा का लाभ लिया।
जांच में पाया गया कि कुछ अधिकारी तो ऐसे आवासों में रह रहे थे, जो उनकी पत्नियों या अन्य परिजनों के नाम पर थे। बावजूद इसके, उन्होंने विभाग से किराये के मकान का भत्ता लेते हुए खुद को किराएदार दिखाया। यह सीधा-सीधा सरकारी धन का दुरुपयोग माना गया।
CMPF के मुख्यालय में बैठकर चल रहा यह खेल वर्षों तक पकड़ा नहीं गया। यह मामला तब उजागर हुआ जब एक आंतरिक ऑडिट रिपोर्ट में वित्तीय गड़बड़ियों की ओर इशारा किया गया। इसके बाद डीओ पत्र के माध्यम से विस्तृत जांच कराई गई। जांच में यह साफ हुआ कि अफसरों ने जानबूझकर गलत जानकारी दी और नियमों को नजरअंदाज करते हुए भत्तों की राशि ली।
भ्रष्टाचार की तस्वीर:
अफसरों ने अपनी पत्नियों या रिश्तेदारों के नाम पर रजिस्टर्ड मकानों को किराये पर दिखाया
सरकारी रिकॉर्ड में खुद को किरायेदार घोषित कर आवास भत्ता प्राप्त किया
कुछ अफसरों के मकान विभागीय क्षेत्र में ही स्थित थे, फिर भी किराया भत्ता उठाया
विभागीय अफसरों की मिलीभगत से अनुमोदन प्रक्रिया में गड़बड़ी हुई।
CMPF संगठन के कर्मचारियों और पेंशनधारकों के भविष्य निधि के सुरक्षित प्रबंधन के लिए गठित यह संस्था खुद ही अब गंभीर अनियमितताओं में घिर गई है। बताया जा रहा है कि जिन अफसरों से वसूली शुरू हुई है, उनकी संख्या 10 से अधिक हो सकती है।
वसूली की प्रक्रिया शुरू:
धनबाद मुख्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक, विभाग ने अब ऐसे सभी अधिकारियों की पहचान कर ली है और उनसे नियमविरुद्ध लिए गए आवास भत्ते की वसूली शुरू कर दी है। पहली किश्त के रूप में पूर्व आयुक्त विजय कुमार मिश्रा समेत दो वरिष्ठ अधिकारियों से राशि वापस भी ली जा चुकी है।
एक सीनियर अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “यह कार्रवाई सिर्फ शुरुआत है। इसमें शामिल बाकी अधिकारियों पर भी विभागीय कार्रवाई और वसूली जल्द ही शुरू की जाएगी।”
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
भ्रष्टाचार पर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता अजय कुमार कहते हैं, “CMPF जैसी संस्था में इस तरह की अनियमितताएं बेहद चिंता का विषय हैं। यह मामला सिर्फ वित्तीय गड़बड़ी का नहीं, बल्कि नैतिक पतन का भी उदाहरण है। इससे कर्मचारी और पेंशनधारी दोनों का भरोसा टूटता है।”
वहीं, रिटायर्ड ऑडिटर संजीव झा कहते हैं कि ऐसी घटनाओं के खिलाफ सिर्फ वसूली नहीं, बल्कि आपराधिक मुकदमा भी चलाया जाना चाहिए ताकि भविष्य में कोई अधिकारी ऐसा करने की हिम्मत न कर सके।
सरकारी नियमों का उल्लंघन:
वित्त विभाग के नियमों के अनुसार, कोई भी सरकारी अधिकारी तब तक आवास भत्ता नहीं ले सकता जब तक वह किराये पर रहने की वैध जानकारी और दस्तावेज विभाग को नहीं देता। इसके लिए संपत्ति के मालिक का सत्यापन, किराया अनुबंध और नगर निगम की मंजूरी जरूरी होती है। लेकिन CMPF में इन नियमों को खुलेआम दरकिनार किया गया।
आगे की कार्रवाई:
CMPF संगठन ने इस मामले में एक स्वतंत्र ऑडिट कमेटी गठित करने की सिफारिश की है, जो विगत 10 वर्षों के भत्तों की जांच करेगी। साथ ही विभागीय विजिलेंस यूनिट को भी इस दिशा में सक्रिय किया गया है।
केंद्र सरकार के कोयला मंत्रालय को भी इस मामले की रिपोर्ट भेजी गई है। संभावना है कि उच्चस्तरीय जांच के लिए जल्द ही सीवीसी या सीबीआई की सिफारिश की जा सकती है।
धनबाद जैसे कोयला नगरी में जहां हजारों मजदूरों की जिंदगी उनके भविष्य निधि पर टिकी होती है, वहीं इस संगठन के अधिकारी भत्तों की आड़ में भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए हैं। वसूली की कार्रवाई एक सकारात्मक कदम जरूर है, लेकिन ज़रूरत है ऐसी अनियमितताओं के खिलाफ सख्त और उदाहरणात्मक कार्रवाई की ताकि सरकारी धन का दुरुपयोग रोका जा सके।