
*शादी का पहला कार्ड गणेश जी को ही क्यों दिया जाता है ।जानें परंपरा का महत्व व नियम |
गणेश जी को ही क्यों दिया जाता है विवाह का पहला निमंत्रण? जानिए धार्मिक मान्यताओं और ज्योतिषीय महत्व के बारे में
हिंदू धर्म में विवाह केवल सामाजिक रिवाज नहीं, बल्कि एक पवित्र धार्मिक संस्कार माना गया है। इस संस्कार में प्रत्येक परंपरा का अपना गहरा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व होता है। ऐसी ही एक विशेष परंपरा है—शादी का पहला निमंत्रण पत्र भगवान गणेश को देने की। अक्सर देखा गया है कि विवाह का पहला कार्ड गणेश जी को समर्पित किया जाता है या उनके मंदिर में चढ़ाया जाता है। इस परंपरा के पीछे सिर्फ आस्था नहीं, बल्कि ज्योतिषीय और शास्त्रीय आधार भी है। आइए विस्तार से जानते हैं इसके महत्व, नियम और प्रक्रिया के बारे में।
गणेश जी: विघ्नहर्ता और प्रथम पूज्य
हिंदू धर्मग्रंथों में गणेश जी को ‘विघ्नहर्ता’ कहा गया है, अर्थात वे सभी कार्यों में आने वाले विघ्न-बाधाओं को दूर करते हैं। यही नहीं, उन्हें ‘प्रथम पूज्य’ देवता भी कहा गया है—जिसका अर्थ है कि किसी भी शुभ कार्य से पहले उनकी पूजा अनिवार्य मानी जाती है। विवाह जैसे मंगल कार्य की शुरुआत भी उन्हीं से होती है। मान्यता है कि गणेश जी को पहला आमंत्रण देने से विवाह-समारोह में कोई विघ्न या अड़चन नहीं आती और समस्त आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न होता है।
कार्ड अर्पण की विधि और मंत्र
विवाह का पहला कार्ड देने की प्रक्रिया भी विशेष मानी जाती है। परंपरा के अनुसार:
वर-वधू या उनके माता-पिता भगवान गणेश के मंदिर में जाएं।
विवाह कार्ड को गणेश जी के चरणों में अर्पित करें।
दीप जलाएं, पुष्प अर्पित करें और मंत्रोच्चारण करें:
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥”
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए यह प्रार्थना की जाती है कि हे गणेश जी, आप हमारे विवाह को बिना किसी विघ्न के संपूर्ण करें।
रिद्धि-सिद्धि के साथ मांगलिक जीवन का आशीर्वाद
गणेश जी को रिद्धि और सिद्धि का स्वामी भी कहा जाता है। ये दोनों देवी गणेश जी की पत्नियां मानी जाती हैं और समृद्धि, सुख-शांति व सफलता की प्रतीक हैं। जब विवाह के आयोजन से पहले गणेश जी को आमंत्रण दिया जाता है, तो अप्रत्यक्ष रूप से रिद्धि-सिद्धि का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो नवविवाहितों के वैवाहिक जीवन को सुखद और सौम्य बनाता है।
अगर गणेश मंदिर दूर हो तो क्या करें?
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार यदि आपके आसपास गणेश जी का मंदिर न हो, तो आप भगवान विष्णु या भगवान शिव को भी विवाह का पहला निमंत्रण दे सकते हैं।
भगवान विष्णु के लिए विशेष मंत्र:
मङ्गलम् पुण्डरीकाक्षः मङ्गलाय तनो हरिः॥”
भगवान शिव के लिए आप महादेव की पूजा करते समय विवाह कार्ड अर्पित कर सकते हैं, विशेषकर यदि विवाह रुद्राभिषेक या किसी सोमवार के दिन निर्धारित हो।
कुलदेवी-देवता और क्षेत्रीय परंपरा
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में एक और परंपरा है—शादी का पहला कार्ड कुल देवी या कुल देवता को देने की। प्रत्येक परिवार की अपनी कुल देवी या देवता होते हैं, जो उनके रक्षक माने जाते हैं। मान्यता है कि कुलदेवता के आशीर्वाद के बिना कोई भी कार्य सफल नहीं होता। ऐसे में विवाह जैसे सबसे महत्वपूर्ण संस्कार में उन्हें आमंत्रित करना अत्यावश्यक होता है।
यदि कुलदेवता का मंदिर दूर हो तो घर पर उनकी तस्वीर या मूर्ति के समक्ष पूजन करके कार्ड अर्पित किया जा सकता है।
कई स्थानों पर घर में ही विशेष पूजा कर पंडित द्वारा विवाह पत्रिका भेंट की जाती है।
पितरों को आमंत्रण: पूर्वजों का आशीर्वाद भी जरूरी
हिंदू संस्कृति में पितरों (पूर्वजों) को देवताओं के समान स्थान दिया गया है। विवाह जैसे शुभ कार्य में पितरों का आशीर्वाद भी अत्यंत आवश्यक माना गया है। इसलिए देवताओं को निमंत्रण देने के पश्चात पितरों को भी आमंत्रण देना चाहिए।
इसके लिए घर के आंगन में दीपक, फूल, तिल और चावल अर्पित कर पितरों का स्मरण किया जाता है।
मानसिक रूप से या पिंडदान के साथ उन्हें विवाह में आमंत्रित किया जाता है।
कौन दे विवाह का पहला निमंत्रण?
परंपरा के अनुसार, वर-वधू को स्वयं भगवान को निमंत्रण देना चाहिए। इससे उनका भावनात्मक और आध्यात्मिक जुड़ाव बढ़ता है।
यदि वर-वधू किसी कारणवश उपस्थित न हों, तो उनके माता-पिता, भाई-बहन या अन्य परिजन यह कार्य कर सकते हैं।
विवाह एक पवित्र संस्कार है, जिसमें आत्मिक, सामाजिक और धार्मिक तीनों स्तरों पर समर्पण होता है। ऐसे में प्रत्येक परंपरा का पालन सही ढंग से किया जाए तो आयोजन न सिर्फ सफल होता है, बल्कि दांपत्य जीवन भी सुखद बनता है। गणेश जी को पहला निमंत्रण देना इसी विश्वास, आस्था और सांस्कृतिक समर्पण का प्रतीक है।
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🔱 ओम् श्री गणेशाय नमः 🔱
📿 जय कुलदेवी मातेश्वरी की जय 📿
🪔 शुभ विवाह! मंगलमय जीवन! 🪔