
गुमला (झारखंड), शर्मनाक! बच्चों की किताबें जलाईं, उसी से बना मिड-डे मील
शिक्षा व्यवस्था पर उठा सवाल, प्रशासन में हड़कंप
झारखंड के गुमला जिले से एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसने पूरे राज्य को शर्मसार कर दिया है। जिले के चैनपुर प्रखंड स्थित एक सरकारी स्कूल में मिड-डे मील पकाने के लिए बच्चों की शैक्षणिक किताबों को जलाया गया। यह दृश्य कैमरे में कैद हुआ और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही पूरे शिक्षा विभाग में हड़कंप मच गया।
मामले के प्रकाश में आने के बाद शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन में अफरा-तफरी का माहौल है। स्थानीय लोगों और अभिभावकों में गहरा रोष है। वहीं राज्य सरकार ने घटना की जांच के आदेश देते हुए दोषियों पर सख्त कार्रवाई की बात कही है।
कैसे उजागर हुआ मामला?
घटना चैनपुर प्रखंड के एक प्राथमिक विद्यालय की बताई जा रही है। जानकारी के अनुसार, स्कूल परिसर में मिड-डे मील बनाने के लिए चूल्हे में ईंधन के रूप में बच्चों की पुरानी किताबों को जलाया गया। एक स्थानीय ग्रामीण जब स्कूल के पास से गुजर रहा था, तब उसने देखा कि मिड-डे मील पकाने के लिए चूल्हे में किताबें जलाई जा रही हैं। उसने तुरंत इस शर्मनाक कृत्य का वीडियो बना लिया।
वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि स्कूल की पाठ्यपुस्तकें, जिनमें हिंदी, गणित और विज्ञान की किताबें शामिल थीं, जलती हुई चूल्हे में रखी गई हैं और ऊपर मिड-डे मील का बर्तन रखा गया है। वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ, जिसके बाद प्रशासन ने जांच के आदेश दिए।
मिड-डे मील योजना की गरिमा पर दाग
मिड-डे मील योजना भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसका उद्देश्य सरकारी स्कूलों में बच्चों को पौष्टिक भोजन देना है ताकि स्कूल छोड़ने की दर कम हो और बच्चों का पोषण स्तर सुधरे। इस योजना से लाखों गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चों को प्रतिदिन मुफ्त भोजन मिलता है।
लेकिन गुमला की यह घटना इस योजना की गरिमा को धूमिल करने वाली है। किताबों को जलाकर खाना बनाना न सिर्फ अनुचित है, बल्कि शिक्षा के मूल्यों और बच्चों के भविष्य का अपमान भी है। इससे यह सवाल खड़ा होता है कि क्या सरकारी स्कूलों में संसाधनों की इतनी कमी है कि वहां किताबों को जलाकर खाना पकाया जा रहा है?
शिक्षा विभाग की सफाई और प्रारंभिक जांच
घटना के बाद गुमला के जिला शिक्षा पदाधिकारी (DEO) ने स्कूल का निरीक्षण किया और प्रारंभिक जांच रिपोर्ट तैयार की। रिपोर्ट के मुताबिक, स्कूल की रसोइया द्वारा यह कृत्य किया गया। रसोइया का कहना है कि लकड़ी न होने के कारण उसे मजबूरन किताबें जलानी पड़ीं। हालांकि उसने यह नहीं बताया कि इतनी बड़ी संख्या में किताबें उसे कहां से और क्यों मिलीं।
जांच अधिकारी ने बताया कि मिड-डे मील के लिए पर्याप्त बजट उपलब्ध होता है, जिसमें ईंधन (लकड़ी या गैस) की व्यवस्था शामिल होती है। ऐसे में किताबों को जलाना एक गंभीर लापरवाही और अमानवीय कृत्य है।
स्कूल प्रशासन का पल्ला झाड़ना
स्कूल के प्रधानाध्यापक ने घटना से अनभिज्ञता जाहिर की है। उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि किताबों को जलाकर खाना पकाया जा रहा है। उन्होंने पूरे मामले की जिम्मेदारी रसोइया पर डाल दी है और कहा कि यदि ऐसा कुछ हुआ है तो वह इसकी निंदा करते हैं।
स्थानीय लोगों में गुस्सा
घटना के बाद गांव में आक्रोश का माहौल है। अभिभावकों और ग्रामीणों ने स्कूल प्रशासन और शिक्षा विभाग के खिलाफ प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि बच्चों की किताबें जलाकर खाना बनाना न सिर्फ एक अपराध है, बल्कि बच्चों के आत्म-सम्मान और भविष्य पर चोट है।
एक अभिभावक ने कहा, “हम गरीब जरूर हैं, लेकिन हमारे बच्चों की शिक्षा हमारे लिए सबसे कीमती है। जिन किताबों से वे जीवन का पाठ पढ़ते हैं, उन्हें इस तरह जलाया जाना हम कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे।”
राजनीतिक दलों की तीखी प्रतिक्रिया
घटना को लेकर राजनीतिक दलों ने भी सरकार और शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। विपक्षी दलों ने कहा है कि यह घटना दिखाती है कि राज्य में शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने ट्वीट कर कहा, “गुमला की घटना दिल दहलाने वाली है। राज्य सरकार बच्चों की शिक्षा से खेल रही है। दोषियों पर केवल कार्रवाई नहीं, बल्कि उदाहरण बनने वाली सजा होनी चाहिए।”
वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और कांग्रेस ने मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है।
बाल अधिकार संगठनों की नाराज़गी
बाल अधिकारों पर काम करने वाले संगठनों ने भी घटना की कड़ी निंदा की है। ‘सेव द चिल्ड्रन’ और ‘बाल संरक्षण मंच’ जैसे संगठनों ने बयान जारी कर कहा कि बच्चों की शिक्षा सामग्री को इस तरह अपमानित करना बाल अधिकारों का उल्लंघन है और इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों को सजा मिलनी ही चाहिए।
सरकार का आश्वासन और अगली कार्रवाई
झारखंड सरकार ने घटना को गंभीरता से लेते हुए जांच के आदेश दिए हैं। राज्य के शिक्षा मंत्री ने कहा है कि “यह घटना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। शिक्षा की सामग्री को जलाना निंदनीय है। जांच के बाद दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी और भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों, इसके लिए स्कूलों की नियमित निगरानी की व्यवस्था की जाएगी।”
वहीं जिला प्रशासन ने स्कूल के रसोइया को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है और शो-कॉज नोटिस भेजा गया है।
शिक्षा को अपमान नहीं, सम्मान चाहिए
गुमला की यह घटना सिर्फ एक प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि शिक्षा के साथ अन्याय है। जब किताबें जलती हैं, तो सिर्फ कागज नहीं जलते, बच्चों का भविष्य भी राख हो जाता है। यह समय है जब सरकार और समाज दोनों को यह समझना होगा कि शिक्षा सिर्फ योजनाओं और घोषणाओं से नहीं चलती, इसके लिए संवेदनशीलता, जिम्मेदारी और सम्मान जरूरी है।