CJI बी.आर. गवई ने किया रिटायरमेंट प्लान का खुलासा: सेवानिवृत्ति के बाद नहीं लेंगे कोई सरकारी पद

CJI बी.आर. गवई ने किया रिटायरमेंट प्लान का खुलासा: सेवानिवृत्ति के बाद नहीं लेंगे कोई सरकारी पद

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ के बाद अब CJI बीआर गवई की सेवानिवृत्ति की तैयारियों को लेकर चर्चा तेज हो गई है। न्यायपालिका के इस सर्वोच्च पद पर आसीन गवई ने साफ कर दिया है कि रिटायरमेंट के बाद वे कोई भी सरकारी पद स्वीकार नहीं करेंगे। महाराष्ट्र के अमरावती में आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने अपनी आगे की योजनाओं पर रोशनी डाली और अपने विचारों को बेबाकी से देश के सामने रखा।

अमरावती में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर विधि महाविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम के दौरान CJI बीआर गवई ने कहा, “मैंने पहले ही फैसला कर लिया है कि सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी सरकारी पद को स्वीकार नहीं करूंगा।” यह बयान ऐसे समय में आया है जब सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को कई बार राज्यपाल, आयोग सदस्य, या अन्य संवैधानिक पदों पर नियुक्त होते देखा गया है।

CJI गवई के इस फैसले को न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। उनके मुताबिक, न्यायाधीशों को अपने कार्यकाल के बाद पूरी तरह से सार्वजनिक जीवन से अलग होकर एक संतुलित, निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

कौन हैं CJI बी.आर. गवई?
जस्टिस भानुदास गोपाल गवई का जन्म 24 नवंबर 1961 को हुआ था। वे महाराष्ट्र से आते हैं और दलित समुदाय से आने वाले भारत के तीसरे मुख्य न्यायाधीश हैं। 2019 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था और 13 मई 2024 को उन्होंने देश के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी।

उनका कार्यकाल 24 नवंबर 2024 को समाप्त होगा, यानी वे लगभग 6 महीने के लिए इस महत्वपूर्ण पद पर रहेंगे। जस्टिस गवई ने अपने न्यायिक जीवन में हमेशा समाज के कमजोर तबकों, सामाजिक न्याय, और संविधान के मूल्यों की रक्षा के लिए काम किया है।

सेवानिवृत्ति के बाद की योजना:
CJI गवई ने अपने भाषण में कहा कि वे सेवानिवृत्ति के बाद शांति से जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। वे सामाजिक और शैक्षणिक कार्यों में योगदान देना चाहते हैं लेकिन किसी राजनीतिक या संवैधानिक पद को स्वीकार नहीं करेंगे।

उन्होंने कहा, “मुझे न्यायपालिका की गरिमा और निष्पक्षता बनाए रखने का दायित्व समझ में आता है। इसलिए मैंने तय किया है कि कोई भी लाभ का पद नहीं लूंगा।”

भारत में कई बार यह सवाल उठता रहा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को सरकारी पद स्वीकार करने चाहिए? कई बार इस पर आलोचना भी हुई है कि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित होती है।

CJI गवई के इस निर्णय को इसी बहस के संदर्भ में एक आदर्श पहल माना जा रहा है। उनके इस रुख को कानूनी बिरादरी के साथ-साथ आम नागरिकों द्वारा भी सराहा जा रहा है।

कार्यक्रम के दौरान उन्होंने युवाओं को भी संबोधित किया और कहा कि कानून के छात्रों को न्याय के सिद्धांतों को अपनाना चाहिए। उन्होंने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का हवाला देते हुए कहा कि संविधान ने हमें समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व की भावना दी है, और इन मूल्यों को बनाकर रखना हमारी जिम्मेदारी है।

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई का यह बयान न सिर्फ न्यायपालिका के लिए बल्कि पूरे लोकतंत्र के लिए एक मिसाल है। उनके रिटायरमेंट से पहले ही ऐसा सशक्त और स्पष्ट निर्णय लेना यह दर्शाता है कि वे संविधान और न्याय की आत्मा को सर्वोपरि मानते हैं।

उनकी यह सोच आने वाली पीढ़ी के न्यायाधीशों के लिए एक दिशा तय कर सकती है कि न्यायिक सेवा केवल सेवा है, न कि कोई राजनीतिक सीढ़ी।

CJI गवई की प्रमुख बातें –
रिटायरमेंट के बाद कोई सरकारी पद स्वीकार नहीं करेंगे

न्यायपालिका की निष्पक्षता बनाए रखने पर जोर

संविधान के मूल्यों की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता

सामाजिक और शैक्षणिक कार्यों में रहेंगे सक्रिय

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