
सागर ,मध्यप्रदेश के सागर जिले में कोबरा सांप के डर से एक सरकारी स्कूल को अस्थायी रूप से बंद करना पड़ा। स्कूल स्टाफ और छात्र कई दिनों से सांप को परिसर में घूमते देख रहे थे। भय इतना बढ़ गया कि स्कूल प्रबंधन ने बच्चों की सुरक्षा के लिए स्कूल पर ताला लगा दिया।
यह कोई एक गांव की समस्या नहीं, बल्कि देश के सामने खड़ा एक बड़ा खतरा है। भारत में हर साल जहरीले सांपों के काटने से करीब 58 हजार लोगों की मौत होती है। इसमें से 2500 से ज्यादा जानें सिर्फ चार घातक प्रजातियों – कोबरा, करैत, रसेल वाइपर और सॉ-स्केल्ड वाइपर – के कारण जाती हैं।
बच्चों में दहशत, स्कूल में सन्नाटा
सागर जिले के इस स्कूल में बच्चों और शिक्षकों ने कई बार कोबरा सांप को देखा। डर का आलम यह रहा कि बच्चों के अभिभावकों ने उन्हें स्कूल भेजने से मना कर दिया। स्कूल प्रशासन ने जब देखा कि सुरक्षा उपाय नाकाफी हैं, तो स्कूल को बंद करने का फैसला लिया गया।
भारत: सांपों के काटने से मौत का वैश्विक हॉटस्पॉट
WHO और ICMR की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सांपों के काटने से होने वाली मौतें दुनिया में सबसे ज्यादा हैं।
हर साल 5 लाख से ज्यादा केस सामने आते हैं।
इनमें से 58,000 से अधिक मौतें होती हैं।
करीब 45% मौतें सिर्फ चार सांपों के कारण होती हैं।
चार सबसे जहरीले सांप और उनका कहर
1. इंडियन कोबरा (Naja naja)
पहचान: फनदार, गर्दन पर चश्मे जैसा निशान
असर: नर्वस सिस्टम को बंद कर देता है, सांस रुक सकती है
2. कॉमन करैत (Bungarus caeruleus)
पहचान: रात में सक्रिय, गहरे नीले रंग का
असर: व्यक्ति सोते-सोते मर सकता है, लक्षण देर से दिखते हैं
3. रसेल वाइपर (Daboia russelii)
पहचान: भारी शरीर, गोल भूरे-पीले धब्बे
असर: ब्लड क्लॉटिंग बंद हो जाती है, आंतरिक रक्तस्त्राव और अंग फेल
4. सॉ-स्केल्ड वाइपर (Echis carinatus)
पहचान: छोटा, रेत में छिपने वाला
असर: खून बहना बंद नहीं होता, किडनी फेल होने का खतरा
ग्रामीण भारत सबसे ज्यादा प्रभावित
भारत में 70% से ज्यादा सांप काटने की घटनाएं ग्रामीण इलाकों में होती हैं।
खेतों, झोपड़ियों, खुले शौचालयों और बिना बिजली के इलाकों में ये घटनाएं आम हैं।
मेडिकल सुविधा की कमी और झाड़-फूंक पर भरोसे के चलते मौतों की संख्या और बढ़ जाती है।
इलाज में देरी बनती है मौत की वजह
सांप के काटने के बाद 30 मिनट से 6 घंटे का समय क्रिटिकल होता है।
अगर इस समय के भीतर एंटी-स्नेक वेनम न मिले, तो जान बचाना मुश्किल हो जाता है।
लेकिन भारत के कई ब्लॉक और ग्रामीण अस्पतालों में यह सीरम या तो होता नहीं या एक्सपायर्ड होता है।
सरकारी तैयारी और जागरूकता में कमी
न तो स्कूलों में सांप से बचाव की ट्रेनिंग दी जाती है
न ही स्थानीय प्रशासन की ओर से फॉगिंग या परिसर की घास सफाई होती है
एंटी वेनम की उपलब्धता ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में आज भी चिंता का विषय है
समाधान क्या हो सकता है?
1. स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों की नियमित सफाई और फॉगिंग
2. बच्चों और ग्रामीणों को सांप पहचानने और बचाव की ट्रेनिंग
3. हर ब्लॉक अस्पताल में एंटी-स्नेक वेनम और प्रशिक्षित स्टाफ
4. झाड़-फूंक पर रोक और मेडिकल अवेयरनेस अभियान
5. खेतों में काम करते समय रबर बूट और टॉर्च का इस्तेमाल अनिवार्य
सागर की यह घटना सिर्फ एक कोबरा के डर की कहानी नहीं है, बल्कि यह देश की स्वास्थ्य व्यवस्था और ग्रामीण सुरक्षा की कमजोरी का संकेत है। जब तक सरकार और समाज मिलकर जागरूकता, मेडिकल सुविधा और प्रशिक्षण नहीं देंगे, तब तक हर साल हजारों लोग इन ‘खामोश हत्यारों’ का शिकार बनते रहेंगे