बिहार सरकार का बड़ा ऐलान: आशा और ममता कार्यकर्ताओं की प्रोत्साहन राशि में बढ़ोतरी विधानसभा चुनाव से पहले

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव की आहट के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य की आशा (ASHA) और ममता (Mamta) कार्यकर्ताओं को बड़ी सौगात दी है। सरकार ने इन दोनों स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी महिला कर्मियों की प्रोत्साहन राशि में अहम बढ़ोतरी का ऐलान किया है। इस फैसले से राज्य की लगभग 2.3 लाख महिलाओं को सीधा फायदा मिलेगा।

नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में यह प्रस्ताव पारित हुआ। यह कदम महिलाओं के सशक्तिकरण और स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूती देने की दिशा में एक बड़ा निर्णय माना जा रहा है। विधानसभा चुनाव से पहले लिया गया यह निर्णय सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से काफी अहम है।

क्या है आशा और ममता कार्यकर्ताओं की भूमिका?

आशा (ASHA – Accredited Social Health Activist) और ममता कार्यकर्ता ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं देने की रीढ़ होती हैं।

ये महिलाएं गर्भवती महिलाओं की देखभाल, बच्चों के टीकाकरण, परिवार नियोजन, और जनजागरूकता जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को निभाती हैं।

ममता कार्यकर्ता अस्पतालों में प्रसव और नवजात शिशु की देखरेख के लिए तैनात होती हैं।

दोनों वर्गों की महिलाएं स्वास्थ्य प्रणाली के सबसे निचले लेकिन सबसे प्रभावशाली स्तर पर कार्य करती हैं।

अब तक इन्हें न्यूनतम मानदेय या प्रोत्साहन राशि दी जाती थी, जो कि कार्यभार और जिम्मेदारियों की तुलना में बेहद कम मानी जाती रही है।

नई प्रोत्साहन राशि की संरचना

राज्य सरकार द्वारा घोषित नई प्रोत्साहन राशि के अनुसार:

आशा कार्यकर्ताओं की प्रोत्साहन राशि 2,000 रुपये से बढ़ाकर 3,500 रुपये प्रति माह कर दी गई है।

ममता कार्यकर्ताओं को पहले 1,500 रुपये मिलते थे, जिसे अब 2,500 रुपये प्रति माह किया गया है।

इसके अलावा, उन्हें मिलने वाली अन्य प्रोत्साहन योजनाओं में भी संशोधन किया गया है, जिससे कुल मासिक आय में अच्छा इज़ाफा होगा।

यह राशि सीधे कार्यकर्ताओं के बैंक खाते में भेजी जाएगी, जिससे पारदर्शिता बनी रहे।

क्यों है यह निर्णय महत्वपूर्ण?

इस निर्णय के कई सामाजिक और प्रशासनिक मायने हैं:

1. महिला सशक्तिकरण को मिलेगा बढ़ावा: आशा और ममता कार्यकर्ताओं की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी, जिससे वे अपने परिवार की जिम्मेदारियों को बेहतर ढंग से निभा सकेंगी

2. स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार: बेहतर आर्थिक प्रोत्साहन मिलने से कार्यकर्ता ज्यादा प्रेरित होकर काम करेंगी, जिससे ग्रामीण और गरीब तबके तक स्वास्थ्य सेवाएं समय पर पहुंचेंगी।

3. चुनाव से पहले सरकार की छवि बेहतर करने की रणनीति: विधानसभा चुनाव के पूर्व यह फैसला जनमत को प्रभावित कर सकता है, खासकर महिला मतदाताओं को।

कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया

राज्य भर से मिल रही प्रतिक्रियाओं के अनुसार आशा और ममता कार्यकर्ताओं ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। कई कार्यकर्ताओं ने कहा कि वर्षों से वे इस मांग को उठा रही थीं, और अब जाकर उन्हें न्याय मिला है।

पटना की आशा कार्यकर्ता सीमा देवी ने बताया,
“हम 10-12 घंटे काम करते हैं लेकिन हमारी कमाई इतनी नहीं थी कि घर चला सकें। सरकार ने हमारी बात सुनी, इसके लिए हम आभार व्यक्त करते हैं।”

विपक्ष ने साधा निशाना

हालांकि, विपक्ष ने इस फैसले को चुनावी स्टंट करार दिया है। राजद प्रवक्ता ने कहा कि यदि सरकार वाकई में स्वास्थ्य सेवाओं की चिंता करती, तो यह फैसला वर्षों पहले लिया गया होता। उन्होंने इसे महिला कार्यकर्ताओं के साथ राजनीतिक सौदा बताया।

सरकार की रणनीति

राज्य सरकार ने इस फैसले को स्वास्थ्य क्षेत्र की मजबूती और महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से लिया गया फैसला बताया है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि इससे न केवल इन कार्यकर्ताओं को लाभ होगा, बल्कि बिहार के स्वास्थ्य संकेतकों में भी सुधार आएगा।

बिहार सरकार का यह फैसला राज्य की लाखों आशा और ममता कार्यकर्ताओं के लिए राहत लेकर आया है। यह फैसला जहां महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूती देगा, वहीं राजनीतिक दृष्टिकोण से भी सरकार की रणनीतिक सोच को दर्शाता है।

आने वाले चुनाव में यह कदम सरकार के लिए कितना फायदेमंद होगा, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन फिलहाल यह साफ है कि बिहार की लाखों महिलाओं को इससे बड़ा संबल मिला है।

 

 

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