
ऊधम सिंह: 21 साल तक जलियाँवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने वाला अमर क्रांतिकारी
स्पेशल रिपोर्ट | आज़ादी के मतवाले ऊधम सिंह की पुण्यतिथि पर विशेष
“बदला एक ऐसा पकवान है जो सबसे स्वादिष्ट तभी लगता है, जब उसे ठंडा करके परोसा जाए।” यह पंक्ति क्रांतिकारी ऊधम सिंह की ज़िंदगी की हकीकत को दर्शाती है। आज उनकी बरसी है, वह दिन जब देश एक ऐसे सपूत को याद करता है जिसने 1919 के जलियाँवाला बाग़ नरसंहार का बदला लेने के लिए 21 वर्षों तक धैर्य और संकल्प के साथ इंतजार किया।
जलियाँवाला बाग़: एक वीभत्स नरसंहार
13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर स्थित जलियाँवाला बाग़ में जनरल डायर के आदेश पर निर्दोष नागरिकों पर गोलियों की बौछार हुई थी। यह दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सबसे काले दिनों में से एक बन गया। इस हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। उस समय मात्र 20 वर्ष के ऊधम सिंह भी वहाँ मौजूद थे और उन्होंने इस दर्दनाक दृश्य को अपनी आँखों से देखा।
बदला लेने की प्रतिज्ञा
इस हत्याकांड के बाद ऊधम सिंह ने मन में ठान लिया कि इस अत्याचार का जवाब देंगे। उनके दिल में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ गहरा आक्रोश और देश के लिए कुछ कर गुजरने की आग थी। उन्होंने तय किया कि वे जनरल डायर के करीबी और इस हत्याकांड के मुख्य जिम्मेदारों में शामिल माइकल ओ’ड्वायर को सबक सिखाएंगे।
ब्रिटेन की धरती पर न्याय
ऊधम सिंह ने वर्षों की मेहनत और योजना के बाद 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान माइकल ओ’ड्वायर को गोली मार दी। यह कदम उन्होंने पूरी चेतना, धैर्य और उद्देश्य के साथ उठाया। गिरफ्तारी के बाद उन्होंने अदालत में साफ कहा कि, “मैंने यह जानबूझ कर किया है। यह प्रतिशोध था। यह न्याय था।”
देश के लिए बलिदान
उन्हें ब्रिटिश अदालत ने हत्या के आरोप में दोषी ठहराया और 31 जुलाई 1940 को फांसी की सजा दी गई। लेकिन उनकी शहादत से पहले ही वे देश की जनता के दिलों में अमर हो चुके थे। ऊधम सिंह को क्रांतिकारियों की श्रेणी में वही सम्मान प्राप्त है, जो भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद को मिला।
आज क्यों जरूरी है ऊधम सिंह को याद करना?
आज, जब देश अपनी आज़ादी के 75 से अधिक वर्षों को मना चुका है, ऊधम सिंह जैसी हस्तियों को याद करना ज़रूरी हो गया है। उनके भीतर जो दृढ़ संकल्प, धैर्य और देशप्रेम था, वो आज की पीढ़ी को प्रेरित कर सकता है। उन्होंने यह सिखाया कि अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना ही सच्चा राष्ट्रधर्म है।
फिल्मों और साहित्य में ऊधम सिंह
हाल के वर्षों में बॉलीवुड ने भी ऊधम सिंह को श्रद्धांजलि दी है। 2021 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘सरदार ऊधम’ में अभिनेता विक्की कौशल ने उनका किरदार निभाया और इस भूमिका को दर्शकों और समीक्षकों द्वारा खूब सराहा गया। यह फिल्म ऊधम सिंह के जीवन के संघर्ष, विचारधारा और बलिदान को बखूबी चित्रित करती है।
ऊधम सिंह का नाम भारतीय इतिहास में उस शौर्य और प्रतिशोध का प्रतीक है, जिसने अपनी ज़िंदगी एक उद्देश्य के लिए समर्पित कर दी। उन्होंने यह सिखाया कि न्याय के लिए इंतज़ार करना भी एक क्रांति है। उनकी बरसी पर उन्हें नमन करते हुए हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि देश के लिए अपने कर्तव्यों को पूरी ईमानदारी से निभाएँ।