
मालेगांव: 17 साल पहले जिस शहर को दहला दिया था धमाके ने, जानिए आज क्या है वहां का हाल और जनसंख्या समीकरण
मालेगांव: एक शहर, एक धमाका और कई सवाल
महाराष्ट्र के नासिक जिले में बसा मालेगांव सिर्फ एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि इतिहास, धर्म और राजनीति का केंद्र रहा है। 2008 में हुए बम धमाके ने इस शहर को रातों-रात राष्ट्रीय सुर्खियों में ला खड़ा किया। 17 साल बीतने के बाद अब जब अदालत ने मालेगांव ब्लास्ट केस में सभी आरोपियों को बरी कर दिया है, तब एक बार फिर यह शहर चर्चा में है।
लेकिन मालेगांव को सिर्फ एक धमाके से नहीं पहचाना जाना चाहिए। यह शहर अपने टेक्सटाइल इंडस्ट्री, धार्मिक सौहार्द और राजनीतिक सक्रियता के लिए भी जाना जाता है। आइए जानते हैं कि मालेगांव की सामाजिक, सांस्कृतिक और जनसंख्या संरचना क्या कहती है।
इतिहास में झांके मालेगांव
मालेगांव की स्थापना 18वीं शताब्दी में मानी जाती है। यह शहर पेशवाओं के शासनकाल में सैन्य दृष्टि से एक अहम ठिकाना था। अंग्रेजों के शासनकाल में यह सूती वस्त्रों के उत्पादन के लिए जाना जाने लगा। आज भी यहां का पावरलूम उद्योग लाखों लोगों को रोज़गार देता है।
धार्मिक जनसंख्या: हिंदू-मुस्लिम अनुपात
मालेगांव की सबसे खास बात है इसका धार्मिक मिश्रण।
कुल जनसंख्या: लगभग 6.5 लाख (2021 अनुमान)
मुस्लिम आबादी: लगभग 70%
हिंदू आबादी: लगभग 25%
अन्य धर्म: 5% के करीब सिख, ईसाई और जैन समुदाय
यहां मुसलमानों की आबादी बहुसंख्यक है, लेकिन दोनों समुदायों के बीच सामान्यत: सौहार्द बना रहता है। कई मौकों पर धार्मिक आयोजन एक-दूसरे के सहयोग से संपन्न होते हैं।
2008 का ब्लास्ट: शहर को झकझोर देने वाला हादसा
29 सितंबर 2008 को शाम के समय मालेगांव के भीड़भाड़ वाले क्षेत्र में दो बम धमाके हुए, जिसमें 6 लोगों की जान गई और दर्जनों घायल हुए।
जांच के दौरान यह केस ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द के इस्तेमाल की वजह से खासा विवादित रहा। लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर समेत कई नाम इसमें उछले। लेकिन 2025 में कोर्ट ने सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया।
मालेगांव की आज की सामाजिक स्थिति
धमाके के बाद कुछ समय तक यहां सामाजिक तनाव बना रहा, लेकिन धीरे-धीरे शहर ने अपनी गति पकड़ ली। आज मालेगांव में:
शिक्षा संस्थानों की संख्या बढ़ी है
पावरलूम इंडस्ट्री ने नए आयाम छुए हैं
युवाओं में आईटी और डिजिटल सेक्टर की ओर रुझान बढ़ा है
हालांकि, शहर में बेरोजगारी और मूलभूत सुविधाओं की कमी अब भी चुनौती बनी हुई है।
राजनीतिक परिदृश्य: मुस्लिम बहुल होने के मायने
चूंकि यहां मुस्लिम आबादी अधिक है, इसलिए नगर पालिका चुनावों में AIMIM, कांग्रेस, एनसीपी जैसी पार्टियों का प्रभाव अधिक देखा जाता है। स्थानीय मुद्दों में जल आपूर्ति, सड़कें और शिक्षा व्यवस्था बड़े मुद्दे बने रहते हैं।
क्या मालेगांव में हिंदू-मुस्लिम तनाव की आशंका रहती है?
विशेषज्ञों का मानना है कि जनसंख्या में स्पष्ट बहुसंख्यक होने के बावजूद यहां साम्प्रदायिक तनाव की घटनाएं बेहद सीमित हैं। शहर के बुजुर्ग और सामाजिक संगठन आपसी मेल-जोल बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं।
मालेगांव: भविष्य की दिशा
मालेगांव अब खुद को सिर्फ ‘धमाके के शहर’ के नाम से नहीं बल्कि एक विकसित टेक्सटाइल हब, सामाजिक रूप से समझदार और शांतिपूर्ण शहर के रूप में देखना चाहता है।
यहां की युवा पीढ़ी सोशल मीडिया, शिक्षा और उद्यमिता में दिलचस्पी दिखा रही है। अगर सरकार यहां के इंफ्रास्ट्रक्चर और शिक्षा पर ध्यान दे तो यह शहर एक मिसाल बन सकता है।
मालेगांव सिर्फ एक धमाके का शहर नहीं है। यह एक जीवंत, मेहनतकश और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर है जो अब अपने पुराने दागों से ऊपर उठना चाहता है। अदालत के हालिया फैसले ने एक अध्याय समाप्त किया है, अब मालेगांव के लोग आगे की ओर देखना चाहते हैं—शांति, तरक्की और भाईचारे की ओर।