
8 KM पीठ पर मां को ढोई, लेकिन ना बच सकी जान: ओडिशा की बेटी की संघर्षगाथा, सिस्टम पर बड़ा सवाल
ओडिशा/कंधमाल:भारत के दूरदराज़ इलाकों में बुनियादी सुविधाओं की कमी एक बार फिर सवालों के घेरे में है। ओडिशा के कंधमाल जिले के एक छोटे से गांव से दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जहां एक बेटी को अपनी बीमार मां को पीठ पर लादकर 8 किलोमीटर तक पैदल चलकर अस्पताल पहुंचाना पड़ा। लेकिन दुर्भाग्यवश, अस्पताल पहुंचते ही मां की मौत हो गई।
इस हृदयविदारक घटना ने न केवल एक गरीब परिवार की पीड़ा को उजागर किया है, बल्कि देश की ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था और बुनियादी ढांचे की खस्ता हालत पर भी गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं।
क्या है पूरा मामला?
कंधमाल जिले के दुदुकी गांव में एक महिला को सांप ने काट लिया। परिवार वालों ने तुरंत एम्बुलेंस को कॉल किया, लेकिन गांव तक कोई सड़क नहीं होने के कारण एम्बुलेंस वहां नहीं पहुंच सकी। हालत बिगड़ती देख बेटी ने मां को पीठ पर उठाया और आठ किलोमीटर दूर स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) की ओर निकल पड़ी।
करीब तीन घंटे की कठिन चढ़ाई और घने जंगलों से गुजरने के बाद वह जब अस्पताल पहुंची, तब तक काफी देर हो चुकी थी। डॉक्टरों ने महिला को मृत घोषित कर दिया।
सरकार और सिस्टम पर सवाल
इस घटना ने ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता और सड़क कनेक्टिविटी पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। आजादी के 75 साल बाद भी यदि किसी मरीज को अस्पताल पहुंचने के लिए मानव वाहन का सहारा लेना पड़े, तो यह बेहद चिंताजनक है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि “गोल्डन ऑवर” यानी दुर्घटना या जहर जैसे मामलों में पहले एक घंटे के भीतर इलाज जरूरी होता है। लेकिन जब एम्बुलेंस ही नहीं पहुंच पाए और गांव तक जाने का रास्ता न हो, तो लोगों की जान पर बन आती है।
स्थानीय प्रशासन की प्रतिक्रिया
स्थानीय प्रशासन ने इस घटना पर दुख जताया है और संबंधित अधिकारियों को जांच के आदेश दिए हैं। बताया जा रहा है कि गांव में सड़क निर्माण की योजना वर्षों से लंबित है, लेकिन बजट और अन्य प्रशासनिक बाधाओं के चलते अब तक काम शुरू नहीं हो पाया।
प्रशासन का यह भी कहना है कि वे मोबाइल मेडिकल यूनिट्स की संख्या बढ़ाने और “ड्रोन-डिलीवरी” जैसे विकल्पों पर भी विचार कर रहे हैं, ताकि दुर्गम इलाकों में प्राथमिक उपचार तुरंत पहुंचाया जा सके।
ग्रामीणों का गुस्सा और दर्द
घटना के बाद स्थानीय ग्रामीणों में आक्रोश है। उनका कहना है कि वे बार-बार सड़क निर्माण की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन हर बार उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिलता है। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि बरसात के मौसम में हालात और भी खराब हो जाते हैं, जब कीचड़ और उफनती नदियों से पार पाना असंभव हो जाता है।
कहां चूक गया सिस्टम?
1. सड़क की अनुपलब्धता: गांव तक पहुंचने का कोई पक्का रास्ता नहीं, जिससे इमरजेंसी सेवाएं नहीं पहुंच पाईं।
2. स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र दूर और अपर्याप्त सुविधाओं से लैस।
3. संचार तंत्र की नाकामी: समय रहते सूचना और मदद नहीं मिल सकी।
4. प्रशासनिक लापरवाही: वर्षों से लंबित सड़क परियोजना में कोई प्रगति नही।
क्या है समाधान?
1. इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जोर: ग्रामीण और पहाड़ी इलाकों में सड़क निर्माण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।
2. माइक्रो-हेल्थ सेंटर: हर पांच किलोमीटर पर एक प्राथमिक उपचार केंद्र हो, जहां सांप काटने या अन्य आपात मामलों में त्वरित इलाज मिल सके।
3. स्थानीय वाहनों का नेटवर्क: जहां एम्बुलेंस नहीं पहुंचती, वहां ट्रैक्टर, बाइक एम्बुलेंस या पालकी सेवा विकसित की जाए।
4. डिजिटल हेल्थ अलर्ट सिस्टम: हर गांव में मोबाइल अलर्ट और रेस्क्यू टीम की सुविधा दी जाए।
यह घटना सिर्फ एक मां-बेटी की पीड़ा नहीं, बल्कि देश के करोड़ों ग्रामीणों की साझा पीड़ा है। एक ओर सरकार डिजिटल इंडिया और मेडिकल टूरिज्म की बात करती है, तो दूसरी ओर गांवों में मरीज अब भी कंधे पर लादकर अस्पताल पहुंचाए जा रहे हैं।
सवाल यह नहीं कि गलती किसकी थी। सवाल यह है कि आखिर कब तक आम नागरिकों को अपनी जान गंवानी पड़ेगी सिर्फ इसलिए क्योंकि सिस्टम समय पर नहीं पहुंच पाया?
सरकार और समाज दोनों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि अगली बार किसी बेटी को अपनी मां को पीठ पर लादकर ले जाने की नौबत न आए।