
हरियाणा सरकार ने दिए रक्षाबंधन से पहले राम रहीम को 40-दिन की पैरोल, 15 अगस्त को डेरे में मनाएंगे जन्मदिन
हरियाणा सरकार ने गुरमीत राम रहीम सिंह, डेरा सच्चा सौदा के विवादित प्रमुख और सेवानिवृत्त कैदी, को रक्षाबंधन से पहले 40 दिन की पैरोल पर जेल से रिहा किया है। वह 5 अगस्त 2025 की सुबह रोहतक स्थित सुनारिया जेल से पुलिस सुरक्षा में सिरसा स्थित डेरे के लिए रवाना हुए । इस दौरान उनकी सुरक्षा एवं यात्रा की व्यवस्था विशेष सतर्कता के साथ की गई।
राम रहीम का 15 अगस्त 2025 को जन्मदिन है, जिसे वे पिता-पुत्र (रक्षाबंधन) के बाद अपने सिरसा डेरे में आए अनुयायियों के साथ मनाएंगे । यह पैरोल इस वर्ष उनका तीसरा पड़ाव है तथा 2017 के बाद अब तक कुल 14वीं बार उन्हें पैरोल या फरलो मिली है ।
पैरोल का विवरण (Details of the Parole):
समयावधि: 40 दिन की पैरोल जिसमें सजा की अवधि में कटौती नहीं होती, क्योंकि यह “पैरोल” है, ना कि “फरलो” (जिसमें समय सजा में शामिल होता है)। यह इस वर्ष उनका तीसरी रिहाई है—जनवरी में 30 दिन की पैरोल, अप्रैल में 21 दिन की फरलो मिल चुकी थी ।
स्थान सीमितता: इस बार उन्हे सिरसा डेरे में रहने की अनुमति दी गई है; पहले की रिहाईयों में अक्सर बंगावा (बागपत, उत्तर प्रदेश) आश्रम में ही रहने की अनुमति रहती थी लेकिन सिरसा की अनुमति नहीं थी ।
प्रथम दृष्टि में आपत्तियाँ: उनकी लगातार पैरोल रिहाईयों पर अनेक बार न्यायिक और सामाजिक आलोचना भी हुई है। पंजाब‑हरियाणा हाई कोर्ट ने पहले पैरोल देने से इनकार किया था, वहीं पत्रकार रामचंद्र के पुत्र अंशुल छत्रपति ने हर बार आपत्ति जताई है ।
पृष्ठभूमि और आपत्तियाँ (Background and Controversy):
गुरमीत राम रहीम सिंह को अगस्त 2017 में दो महिला अनुयायियों से बलात्कार के दोष में 20 वर्षों की सजा सुनाई गई थी और जनवरी 2019 में पत्रकार रामचंद्र की हत्या की सीबीआई मुकदमें में उन्हें आजीवन कारावास की सजा हुई थी । न्यायपालिका के अनुसार ये मामले बेहद संगीन हैं, फिर भी उन्हें बार-बार पैरोल या फरलो मिलती रही है।
2017 के बाद से अब तक की रिहाई: कुल 14 बार पैरोल या फरलो मिली है—इनमें 2025 में मिली तीन रिहाईयों को मिली पैरोल की अवधि शामिल है ।
आपत्तियों के प्रमुख बिंदु:
पत्रकार रामचंद्र के बेटे अंशुल छत्रपति ने हर एक रिहाई पर सवाल उठाया है और सरकार पर आरोप लगाया है कि वह जेल प्रमुख के पैरोल पर राजनीति कर रही है ।
पंजाब‑हरियाणा हाई कोर्ट ने भी पैरोल देने का मामला अदालत की अनुमति से जोड़कर देखा और रोका था ।
1. राजनीतिक समयबद्धता: छह में से कई बार पैरोल चुनाव के समय दी गई—जिनमें दिल्ली और हरियाणा विधानसभा चुनाव, पंचायत चुनाव और उपचुनाव शामिल हैं। यह रणनीतिक रूप से उठाया गया कदम माना जाता है ।
2. पैरोल बनाम फरलो का अंतर: फारलो की अवधि सजा में शामिल होती है, जबकि पैरोल नहीं। इससे उन्हें लंबे समय तक जेल से बाहर रहने का लाभ मिलता रहा है।
3. सुरक्षा और सार्वजनिक प्रतिक्रिया: उनके सिरसा डेरे पहुंचने और अनुयायियों के बीच जन्मदिन समारोह की खबरों से सुरक्षा व्यवस्था और कानून-व्यवस्था पर भी सवाल उठ रहे हैं, विशेष रूप से उनके समर्थकों की उपस्थिति को लेकर।
संवेदनशील सामाजिक प्रतिक्रिया: विशेष रूप से महिला अधिकार समूह, न्यायिक संस्थाएँ और मीडिया समर्थक लगातार सरकारी निर्णय पर सवाल उठा रहे हैं।
कानूनी दृष्टिकोण: सुप्रीम कोर्ट ने 28 फरवरी 2025 को इस तरह की पैरोल रिहाई को चुनौती देने वाली PIL को खारिज कर दिया था, क्योंकि यह पैरोल-प्राप्ति के व्यक्ति विशेष पर ही केंद्रित थी ना कि व्यापक सार्वजनिक हित पर ।
प्रशासनिक प्रवर्तन: हरियाणा सरकार के अंतर्गत इस तरह की पैरोल को राज्य Good Conduct Prisoners (Temporary Release) Act के नियमों के तहत अनुमति दी जाती है, जिसमें कुल वार्षिक पैरोल/फरलो का अलग-अलग हिस्सा निर्दिष्ट है ।
इस बार की पैरोल न सिर्फ धार्मिक त्योहार रक्षाबंधन और राम रहीम के जन्मदिन को ध्यान में रखकर समयबद्ध दी गई प्रतीत होती है, बल्कि यह सोशल और न्यायिक समीकरणों में एक नए तनाव को जन्म देती है।
सरकार, न्यायपालिका, मीडिया और सामाजिक संस्थाएँ अगली प्रतिक्रिया पर नजर बनाए हुए हैं। इस फैसले से राजनीतिक‑समाज‑कानून‑न्याय के बीच एक नई बहस शुरू हो सकती है, जो आगामी समय में लोकहित, संवेदनशीलता और कानून की सीमाओं को और स्पष्ट करेगी।