
Deoghar News: सावन पूर्णिमा पर बाबा बैद्यनाथ मंदिर से हटेगा अरघा, भक्त कर सकेंगे स्पर्श पूजा।
— रक्षा सूत्र बांधकर देश की सुख-शांति की कामना
देवघर। सावन मास का आज अंतिम दिन और पूर्णिमा का पावन पर्व है। इस विशेष अवसर पर बाबा बैद्यनाथ मंदिर में धार्मिक परंपराओं और आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है। परंपरा के अनुसार, सावन भर जलार्पण के लिए लगाए गए अरघा को आज सावन पूर्णिमा के दिन हटा दिया जाएगा। इस दिन की शुरुआत मंदिर परिसर में विशेष सरदारी पूजा से हुई, जिसमें बाबा के प्रथम पूजारी सरदार पंडा ने भगवान भोलेनाथ को रक्षा सूत्र बांधकर देश और समाज के कल्याण की प्रार्थना की।
अरघा हटने की परंपरा और महत्व
बाबा बैद्यनाथ धाम में श्रावणी मेले के दौरान लाखों श्रद्धालु गंगाजल लेकर जलार्पण करते हैं। सुरक्षा और सुव्यवस्था के लिए इस दौरान अरघा प्रणाली लागू रहती है, जिसके माध्यम से भक्त दूर से ही जल चढ़ाते हैं। लेकिन सावन पूर्णिमा के दिन परंपरा के अनुसार अरघा हटा दिया जाता है, ताकि भक्त सीधे गर्भगृह में जाकर भगवान शिव का स्पर्श पूजा कर सकें।
मंदिर इतिहासकारों के अनुसार, यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। सावन पूर्णिमा को ‘राखी पूर्णिमा’ और ‘श्रावण पूर्णिमा’ भी कहा जाता है। इस दिन भगवान शिव को रक्षा सूत्र अर्पित कर विश्वभर में शांति, समृद्धि और भाईचारे की कामना की जाती है।
सुबह से ही उमड़ा आस्था का सैलाब
आज तड़के 3 बजे से ही मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया था। मंदिर के मुख्य द्वार पर लंबी कतारें देखी गईं। श्रद्धालु भक्ति-भाव से “बोल बम” और “हर हर महादेव” के जयघोष के साथ अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे।
पूर्णिमा के दिन विशेष सजावट की गई है। मंदिर के गर्भगृह और बाहरी हिस्सों में फूलों, रिबन और रंग-बिरंगी रोशनी से साज-सज्जा की गई है। पंडा समाज और प्रशासन ने मिलकर श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए अतिरिक्त बैरिकेडिंग, पेयजल और मेडिकल सहायता केंद्र की व्यवस्था की है।
सरदारी पूजा और रक्षा सूत्र बांधने की रस्म
सुबह 4 बजे मंदिर में सरदारी पूजा का आयोजन हुआ। इसमें बाबा बैद्यनाथ को विशेष श्रृंगार कर 11 प्रकार के भोग अर्पित किए गए। इसके बाद सरदार पंडा ने भगवान के शिवलिंग पर रक्षा सूत्र बांधा और पूजा-अर्चना की। पंडा समाज के वरिष्ठ सदस्यों के अनुसार, रक्षा सूत्र बांधने का अर्थ है भगवान से यह वचन लेना कि वे अपने भक्तों और इस पवित्र धाम की सदैव रक्षा करेंगे।
इस मौके पर हजारों श्रद्धालु गर्भगृह में मौजूद थे, जिन्होंने इस ऐतिहासिक रस्म का साक्षात्कार किया।
रक्षाबंधन पर्व की शुरुआत बाबा से
देवघर में रक्षाबंधन का पर्व बाबा बैद्यनाथ को रक्षा सूत्र बांधने से शुरू होता है। पंडा समाज की मान्यता है कि जब स्वयं शिव को रक्षा सूत्र अर्पित कर देश और समाज के लिए आशीर्वाद लिया जाता है, तभी भाई-बहन का पर्व पूर्णता को प्राप्त होता है। रक्षा सूत्र बांधने के बाद ही पूरे देवघर जिले में बहनें अपने भाइयों को राखी बांधना शुरू करती हैं।
दोपहर बाद होगा अरघा विसर्जन, शुरू होगी स्पर्श पूजा
प्रशासन और मंदिर समिति के अनुसार, आज दोपहर बाद करीब 2 बजे अरघा को हटा दिया जाएगा। इसके बाद श्रद्धालु सीधे गर्भगृह में प्रवेश कर बाबा का जलाभिषेक और स्पर्श पूजा कर पाएंगे। यह प्रक्रिया रात तक चलेगी। प्रशासन ने अनुमान लगाया है कि आज के दिन मंदिर में 1 लाख से अधिक श्रद्धालुओं के आने की संभावना है।
श्रद्धालुओं का उत्साह और भावनाएं
कोलकाता से आए एक श्रद्धालु संजीव मुखर्जी ने बताया, “मैं पिछले 15 सालों से सावन पूर्णिमा के दिन बाबा का स्पर्श पूजा करता हूं। इस दिन की अनुभूति अलग होती है, मानो भगवान स्वयं आपको अपने पास बुला रहे हों।”
वहीं रांची से आईं पूजा कुमारी ने कहा, “रक्षाबंधन पर बाबा को राखी बांधना मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी है। इससे परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।”
सुरक्षा और व्यवस्था पर विशेष ध्यान
देवघर जिला प्रशासन ने भीड़ प्रबंधन के लिए मंदिर परिसर और आसपास के क्षेत्रों में 500 से अधिक पुलिसकर्मियों की तैनाती की है। जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं और ड्रोन से भी निगरानी की जा रही है। मेडिकल टीम, अग्निशमन दल और आपातकालीन सेवाएं पूरी तरह अलर्ट मोड में हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
धर्मगुरुओं के अनुसार, सावन पूर्णिमा पर बाबा बैद्यनाथ को जलार्पण करने का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि यह दिन श्रावण मास का समापन है। इस दिन भगवान शिव अपने भक्तों को विशेष आशीर्वाद प्रदान करते हैं। साथ ही, रक्षाबंधन के साथ यह पर्व पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों को मजबूत करने का संदेश देता है।
पंडा समाज के वरिष्ठ पंडा अशोक दास ने कहा, “जब भाई-बहन का रिश्ता भगवान से जुड़ जाता है, तो जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली अपने आप आती है। यही हमारे पर्व का संदेश है।”
आस्था और परंपरा का संगम
आज का दिन देवघर के लिए सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि आस्था, संस्कृति और भाईचारे का प्रतीक है। मंदिर में होने वाली पूजा, रक्षा सूत्र बांधने की रस्म, अरघा हटने के बाद होने वाली स्पर्श पूजा — ये सभी मिलकर सावन पूर्णिमा को अनोखा बना देते हैं। बाबा बैद्यनाथ के जयकारों के बीच भक्तों के चेहरे पर खुशी और भक्ति का भाव साफ झलक रहा है।