
टैरिफ़ की मार: अमेरिका में भारतीय बासमती बौखला गया, पाकिस्तान को लगा फायदा – पर काश्तकारों का संकट गहरा”
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में भारत से बासमती चावल के आयात पर कुल 50% तक का भारी टैरिफ लगाया है, जिससे भारतीय निर्यातकों और किसानों की मुश्किलें बढ़ गई हैं, वहीं पड़ोसी पाकिस्तान को अमेरिकी बाजार पर बढ़त मिलने की उम्मीद जगी है। इस कदम से न सिर्फ भारतीय बाज़ार में हिमाकत बढ़ गई है, बल्कि किसानों की माली हालत और उपभोक्ताओं के विकल्पों पर गहरा असर पड़ेगा। इस व्यापक व्यापार नीति के प्रभाव, चुनौतियों और संभावित समाधान पर गहराई से नजर डालते हैं।
1. टैरिफ संरचना का विस्तार
ट्रम्प सरकार ने पहले से लागू 25% “Reciprocal Tariff” में अतिरिक्त 25% जुड़ने से कुल 50% आयात शुल्क लगाया है । इससे भारतीय बासमती की कीमत अनुमानित $1,200 प्रति मीट्रिक टन से बढ़कर $1,800 हो जाएगी, जबकि पाकिस्तान के लिए यह शुल्क केवल 19% है, जिससे उनकी कीमत लगभग $1,450 पर बनी रहेगी ।
2. भारतीय निर्यातकों पर असर
– पंजाब, हरियाणा जैसे प्रमुख स्त्रोत प्रभावित: पंजाब अकेले देश की बासमती उत्पादन का लगभग 40% हिस्सा संभालता है ।
– अमेरिकी बाजार में भारत की हिस्सेदारी घटने का खतरा: अनुमानित गिरावट 50%–80% तक ।
– बासमती की कीमतें पहले से ही गिर रही हैं: ₹4,500 प्रति क्विंटल (2022-23) से अब ₹3,500-3,600 (2023-24) ।
3. किसानों की चुनौतियाँ
– मजबूरी में किसान बासमती छोड़कर परंपरागत धान की ओर लौट सकते हैं, क्योंकि उसकी MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) ₹2,400 प्रति क्विंटल से अधिक है और स्थिरता ज़्यादा है ।
– इससे पंजाब में पानी बचाव (जल संरक्षण) जैसे उपायों पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि बासमती कम जल-गहन और तेज फसल है ।
पाकिस्तान को लाभ
1. मूल्य प्रतिस्पर्धा में बढ़त
अमेरिकी टैरिफ में अंतर (भारत – 50%, पाकिस्तान – 19%) के चलते पाकिस्तान की बासमती अमेरिकी बाजार में सस्ती साबित होगी और उसकी हिस्सेदारी बढ़ेगी ।
2. निर्यात बढ़त की संभावना
भारत की कमी को पूरा करने के लिए अमेरिकी खरीदार पाकिस्तान की ओर रुख कर सकते हैं, जिससे उस देश को तत्काल लाभ और अधिक हक़दारी मिलेगा ।
3. लंबी अवधि की असर
भारतीय भागीदारी घटने से वैश्विक बाजार में पाकिस्तान की प्रतिष्ठा और भरोसेमंदता बढ़ सकती है।
सुनियोजित रणनीति और विकल्प
1. सरकारी हस्तक्षेप की जरूरत
– तत्काल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समेत अमेरिकी प्रशासन से टैरिफ में रियायत की मांग। साथ ही आयात प्रतिकार या अन्य व्यापार-रक्षा उपाय अपनाना ज़रूरी है ।
2. बाजार विविधिकरण (Diversification)
– पश्चिम एशिया, यूरोप, कनाडा जैसे वैकल्पिक बाजारों में निर्यात को बढ़ावा, ताकि अमेरिकी निर्भरता कम की जा सके ।
3. एक्सपोर्ट समर्थन कार्यक्रम
– नॉन-बाजार स्थिरता के लिए निर्यातकों को वित्तीय प्रोत्साहन, सब्सिडी और ब्रांडिंग सहायता प्रदान किया जाना चाहिए ।
4. लेबल ब्रांडिंग और GI प्रमोशन
– Geographical Indication (GI) प्रमाणीकरण का प्रचार-प्रसार और उत्पादों का “ब्रांडेड” रूप सुनिश्चित करना।
तात्कालिक दबाव और दीर्घकालीन प्रभाव
वर्तमान समय में कीमत दबाव, निर्यात आदेश रद्द हो सकते हैं, स्टॉक अधिशेष हो सकता है और निर्यातक वित्तीय संकट का सामना करें ।
– दीर्घकाल में भारत की प्रतिष्ठा और बाजार स्थान खोने का खतरा:once lost, बाजार पुनः कब बच पाए, यह अनिश्चित है। पिछले अनुभव बताते हैं कि निर्यात बाजार में वापस आना आसान नहीं होता।
– किसान स्तर पर अनिश्चितता, फसल पुनर्रचना, आर्थिक असुरक्षा और जल-संरक्षण योजनाओं में बाधा से सामाजिक और आर्थिक प्रभाव भी व्यापक होंगे।
अमेरिका द्वारा लगाए गए 50% टैरिफ ने भारतीय बासमती निर्यात को झटका दिया है, जिससे किसानों से लेकर निर्यातकों तक की मुश्किलें गहरी हो चुकी हैं। दूसरी ओर, पाकिस्तान इस मौके को अपने पक्ष में कर सकता है। राहत उपायों जैसे सरकारी समर्थन, विदेशी बाज़ारों में विविधीकरण, नीति संवाद और निर्यातक सशक्तिकरण इस संकट में ज़रूरी कदम हैं। नहीं तो, न सिर्फ बासमती उद्योग की पहचान पतन के कगार पर आ सकती है, बल्कि किसानों का भविष्य भी अनिश्चित हो जाएगा। इस विपत्ति से उबरना न केवल व्यापार का मुद्दा है, बल्कि किसान-हित और राष्ट्रीय उत्पादकता का भी सवाल है।