
‘Laapataa Vice President ’: कपिल सिब्बल ने जगदीप धनखड़ की ‘अनुपस्थिति’ पर जताई चिंता, अमित शाह से मांगा स्पष्टीकरण”
वरिष्ठ अधिवक्ता एवं राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की गैरमौजूदगी को लेकर तीखी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने बताया कि धनखड़ ने 21 या 22 जुलाई 2025 को उनकी स्वास्थ्य स्थिति को लेकर इस्तीफा दिया था, लेकिन 9 अगस्त 2025 तक उनकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। इस संदर्भ में सिब्बल ने गृह मंत्री अमित शाह से मांग की है कि वे सार्वजनिक रूप से स्पष्ट करें कि पूर्व उपराष्ट्रपति कहां हैं और उनकी कुशल-क्षेम कैसी है। सिब्बल ने इस मुद्दे को देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए चिंताजनक बताया है।
1. इस्तीफा और संदर्भ
जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई 2025 को उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दिया, जिसमें उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया था। उनकी यह अचानक और अप्रत्याशित वापसी भारत के लिए एक ऐतिहासिक घटना थी, क्योंकि वे मध्य-अवधि में इस्तीफा देने वाले तीसरे उपराष्ट्रपति बने।
2. स्तोत्रों में खामोशी
इस्तीफे के बाद उपराष्ट्रपति की गतिविधियों या सार्वजनिक उपस्थिति पर कोई आधिकारिक जानकारी नहीं मिली। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, सिब्बल ने कहा कि उन्होंने और अन्य राजनीतिक नेताओं ने धनखड़ से संपर्क करने की कोशिश की—उनकी निजी सचिव ने फोन पर बताया कि वे आराम कर रहे हैं, लेकिन इसके बाद किसी ने संपर्क नहीं किया।
3. “Laapataa Vice President” उपमात्मक टिप्पणी
सिब्बल ने फिल्म “Laapataa Ladies” की ओर इशारा करते हुए व्यंग्यात्मक टिप्पणी की: “हमने ‘लापता लेडीज़’ की कहानियां सुनी लेकिन ‘लापता उपराष्ट्रपति’ की नहीं।” इस स्थापत्य-पूर्ण वाक्य ने राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर आधिकारिकता की कमी को उजागर किया।
सांसद कपिल सिब्बल का बयान
“22 जुलाई को धनखड़ ने इस्तीफा दिया था और आज 9 अगस्त है—लेकिन तब से उनका कोई अता-पता नहीं है।”
“उनकी आधिकारिक निवास पर भी मौजूदगी नहीं है। पहले दिन उनकी निजी सचिव ने कहा कि वे आराम कर रहे हैं, लेकिन बाद में किसी ने फोन नहीं उठाया।”
“अगर हमें हेबेयस कॉर्पस दाखिल करना पड़े या FIR दर्ज करनी पड़े, तो ये अविश्वसनीय स्थिति है।”
सिब्बल ने यह भी कहा कि “उनसे मेरी निजी दोस्ती रही है; वह मेरे कई मुकदमों में मेरे साथ रहे हैं—मैं व्यक्तिगत तौर पर उनके स्वास्थ्य को लेकर परेशान हूँ।”
उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह से आग्रह किया कि वे “देश को बताएं कि वह सुरक्षित हैं और कहां हैं”—क्योंकि, सिब्बल के अनुसार, “ऐसी चीजें सिर्फ अन्य देशों में होती हैं, भारत लोकतंत्र है, यहां पारदर्शिता होनी चाहिए।”
राजनीतिक और संवैधानिक विवेचना
1. संवैधानिक चिंता और वैधानिक जवाबदेही
उपराष्ट्रपति हमारे संविधान के संवैधानिक कॉलम में शामिल हैं। उनकी अचानक और रहस्यमयी अनुपस्थिति न केवल निजी स्वास्थ्य का मामला हो सकती है, बल्कि इससे लोकतंत्र की रेडार पर जवाबदेही और पारदर्शिता की तय मान्यताएँ भी प्रश्नवाचक हो सकती हैं।
2. राजनीतिक दबाव और तुलना
सिब्बल की टिप्पणी यह भी दर्शाती है कि राजनीतिक परिदृश्य में शायद कुछ दबाव या behind-the-scenes शक्ति-संरचना भी काम कर रही हो। कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों ने इस इस्तीफे को ‘मजबूरन’ ठहराने के संकेत दिए हैं, जबकि सरकार की ओर से अभी तक पूर्ण स्पष्टीकरण नहीं आया है।
3. लोकतांत्रिक मूल्य और सार्वजनिक विश्वास
लोकतंत्र में, जब कोई संवैधानिक पदाधिकारी अचानक से अज्ञात हो जाता है, तो नागरिकों का विश्वास अबाधित रहने में मुश्किल होती है। सिब्बल की चिंता यह दर्शाती है कि जनता के लिए जानकारी उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है—विशेषकर तब जब वह कोई संवैधानिक पदाधिकारी हो।
कुल मिलाकर, कपिल सिब्बल का यह बयान देश में एक संवैधानिक, राजनीतिक और मानवीय त्रासदी की ओर इशारा कर रहा है। जहाँ एक ओर उपराष्ट्रपति का इस्तीफा स्वास्थ्य कारणों से होना समझ में आता है, वहीं उनके “गुमनाम” हो जाने से लोकतंत्र और संविधान के प्रति हमारे विश्वास में खलल आ गया है।
अब सवाल यह उठता है—क्या गृह मंत्रालय या सरकार शीघ्र और स्पष्ट तरीके से स्पष्टता देंगे? क्या देश को पता चलेगा कि धनखड़ सुरक्षित हैं, वे कहाँ हैं, और उनकी स्थिति कैसी है? आने वाले दिनों में इस विषय पर राजनीतिक तापमान और मीडिया की पकड़ दोनों बढ़ने की संभावना है।