
अमेरिका ने 6 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा पर गिराया था परमाणु बम, हमले से पहले सैनिकों को दी गई थी ख़ुफ़िया ट्रेनिंग ।
6 अगस्त 1945—यह तारीख मानव इतिहास के उन सबसे भयावह दिनों में दर्ज है, जब पहली बार युद्ध में परमाणु हथियार का इस्तेमाल हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम चरण में अमेरिका ने जापान के शहर हिरोशिमा पर ‘लिटिल बॉय’ नामक परमाणु बम गिराया। यह हमला इतना विनाशकारी था कि देखते ही देखते पूरा शहर मलबे में बदल गया और हजारों लोग त्वरित मौत के शिकार हो गए, जबकि लाखों की ज़िंदगी पर स्थायी असर पड़ा।
परमाणु बम के पीछे की तैयारी
इस हमले को अंजाम देने के पीछे लंबी और गुप्त योजना थी। अमेरिका ने ‘मैनहट्टन प्रोजेक्ट’ के तहत इस बम को बनाने और युद्ध में इस्तेमाल करने की तैयारी की थी। इस मिशन में शामिल सैनिकों और पायलटों को गुप्त ठिकानों पर विशेष ट्रेनिंग दी गई थी। न्यू मैक्सिको, यूटा और अन्य गुप्त सैन्य अड्डों पर इन जवानों को न सिर्फ परमाणु हथियार की तकनीक और विस्फोट की प्रक्रिया समझाई गई, बल्कि उन्हें ऐसे हालात में उड़ान भरने और मिशन को पूरा करने की रणनीति भी सिखाई गई, जिनका सामना उन्होंने पहले कभी नहीं किया था।
सैनिकों को इस बात की जानकारी नहीं दी गई थी कि वे किस प्रकार का हथियार ले जा रहे हैं। उन्हें सिर्फ मिशन के निर्देश, उड़ान मार्ग और बम गिराने की तकनीकी प्रक्रिया बताई जाती थी। मिशन में शामिल Enola Gay नामक B-29 बॉम्बर विमान के पायलट पॉल टिब्बिट्स और उनकी टीम को महीनों तक गुप्त लोकेशनों पर प्रशिक्षित किया गया।
6 अगस्त की सुबह का मंजर
6 अगस्त 1945 की सुबह, स्थानीय समय के अनुसार लगभग 8 बजकर 15 मिनट पर, हिरोशिमा के ऊपर 31,000 फीट की ऊंचाई से ‘लिटिल बॉय’ गिराया गया। बम विस्फोट से पहले केवल 43 सेकंड हवा में गिरा, और फिर एक भीषण धमाके के साथ फटा। धमाके की ताकत इतनी थी कि लगभग 70,000 से 80,000 लोग तुरंत मारे गए, जबकि आने वाले महीनों में विकिरण के कारण मरने वालों की संख्या बढ़कर 1,40,000 से ज्यादा हो गई।
ख़ुफ़िया मिशन की चुनौतियां
अमेरिकी सेना के लिए यह मिशन आसान नहीं था। सैनिकों को उड़ान के दौरान बम की सुरक्षा, मौसम की सटीक जानकारी और लक्ष्य की पहचान जैसे पहलुओं पर बार-बार अभ्यास कराया गया। बम गिराने से पहले जापान के अन्य शहरों पर भी परीक्षण उड़ानें की गई थीं, ताकि मिशन के दिन किसी तरह की तकनीकी गड़बड़ी न हो।
मिशन की गोपनीयता इतनी सख्त थी कि पायलट और क्रू के कई सदस्य बम गिराने के बाद ही इसकी असली क्षमता और खतरे से पूरी तरह वाकिफ हुए। कई सैनिकों ने बाद में बताया कि वे मिशन के भावनात्मक और नैतिक पहलुओं से लंबे समय तक जूझते रहे।
विनाश और उसके बाद
हिरोशिमा पर हमला केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं था, बल्कि यह मानवता के लिए एक चेतावनी भी थी कि परमाणु हथियार किस हद तक विनाश कर सकते हैं। शहर में स्कूल, अस्पताल, बाजार, घर—सब कुछ ध्वस्त हो गया। हजारों लोग झुलसने, मलबे में दबने और आग में फंसने से मारे गए। विकिरण जनित बीमारियों ने आने वाले दशकों तक पीढ़ियों को प्रभावित किया।
तीन दिन बाद, 9 अगस्त को, अमेरिका ने नागासाकी पर दूसरा परमाणु बम ‘फैट मैन’ गिराया, जिसके बाद जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ।
इतिहास का सबक
आज, हिरोशिमा और नागासाकी की घटनाएं परमाणु हथियारों के विनाशकारी परिणामों का सबसे बड़ा सबूत हैं। इस हमले में शामिल सैनिकों की ख़ुफ़िया ट्रेनिंग और मिशन की बारीकियों पर अब भी शोध होते रहते हैं, लेकिन इनका नैतिक पहलू आज भी दुनिया को सोचने पर मजबूर करता है।
हिरोशिमा की धरती आज शांति और परमाणु निरस्त्रीकरण का प्रतीक है, लेकिन 6 अगस्त 1945 की सुबह की भयावह गूंज मानव इतिहास में हमेशा दर्ज रहेगी।