
जगन्नाथ मंदिर का महाप्रसाद अब नहीं मिलेगा ऑनलाइन, कानून मंत्री ने बताई वजह।
पुरी, ओडिशा — विश्व प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ मंदिर के महाप्रसाद की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी गई है। ओडिशा के कानून मंत्री प्रमीलालाल खुसू ने सोमवार को विधानसभा में जानकारी दी कि महाप्रसाद केवल मंदिर परिसर में ही उपलब्ध होगा और इसे किसी भी तरह की ई-कॉमर्स या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से खरीदना अब संभव नहीं होगा।
मंत्री खुसू ने स्पष्ट किया कि जगन्नाथ मंदिर अधिनियम और परंपरागत नियमों के अनुसार महाप्रसाद एक पवित्र भोग है, जिसे केवल मंदिर में भगवान को अर्पित करने के बाद ही भक्तों में वितरित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस पवित्र प्रसाद की ऑनलाइन बिक्री न केवल धार्मिक आस्थाओं के खिलाफ है बल्कि इसके साथ जुड़ी गुणवत्ता और पवित्रता पर भी सवाल खड़े करती है।
हाल के समय में कुछ निजी संगठनों और वेबसाइट्स द्वारा ‘महाप्रसाद डिलीवरी’ की सेवाएं शुरू की गई थीं, जिसमें दावा किया जाता था कि मंदिर से सीधा प्रसाद भक्तों के घर तक पहुंचाया जाएगा। इस पर कई श्रद्धालुओं और पुजारी समुदाय ने आपत्ति जताई थी। उनका कहना था कि महाप्रसाद का सेवन मंदिर परिसर में ही करना या वहां से ले जाना परंपरा का हिस्सा है।
मंत्री ने बताया कि श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) ने भी इस मुद्दे पर आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा था कि महाप्रसाद की बिक्री केवल मंदिर के भीतर ‘आनंद बाजार’ में ही होनी चाहिए। यह बाजार मंदिर का वह विशेष स्थान है, जहां भगवान को भोग लगाने के बाद शेष महाप्रसाद भक्तों को मिलता है।
इसके अलावा, कानून मंत्री ने यह भी बताया कि ऑनलाइन डिलीवरी में कई बार पैकेजिंग, भंडारण और परिवहन के दौरान प्रसाद की पवित्रता और गुणवत्ता प्रभावित होने का खतरा रहता है। चूंकि महाप्रसाद एक धार्मिक भोग है, इसलिए इसमें किसी भी प्रकार का व्यावसायिक हस्तक्षेप या अनुचित हैंडलिंग आस्था को ठेस पहुंचा सकता है।
इस फैसले के बाद अब मंदिर प्रशासन ने सभी ऑनलाइन पोर्टल्स और सेवा प्रदाताओं को निर्देश जारी कर दिए हैं कि वे तत्काल महाप्रसाद की बिक्री बंद करें। आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
पुरी का जगन्नाथ मंदिर हिंदू धर्म के चार प्रमुख धामों में से एक है और हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं। मंदिर का महाप्रसाद चूल्हा (अन्न छत्र) में विशेष तरीके से पकाया जाता है और इसे भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को अर्पित करने के बाद ही श्रद्धालुओं में वितरित किया जाता है। यहां की एक खास परंपरा है कि प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में पकता है और इसका स्वाद और महक अद्वितीय मानी जाती है।
ज्ञात हो कि कोविड-19 महामारी के दौरान लॉकडाउन में मंदिर प्रशासन ने सीमित स्तर पर ऑनलाइन प्रसाद वितरण की अनुमति दी थी, ताकि भक्तों की आस्था बनी रहे। हालांकि, अब हालात सामान्य होने के बाद और परंपरा के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए यह व्यवस्था समाप्त कर दी गई है।
कानून मंत्री खुसू ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि वे मंदिर आकर प्रसाद ग्रहण करें और पुरानी परंपराओं को बनाए रखने में सहयोग दें। उन्होंने कहा, “जगन्नाथ महाप्रसाद केवल भोजन नहीं, बल्कि एक पवित्र आशीर्वाद है। इसे मंदिर से जोड़कर ही ग्रहण करना हमारी संस्कृति का हिस्सा है।”
पुरी के स्थानीय व्यापारियों और पुजारी समाज ने इस फैसले का स्वागत किया है। उनका मानना है कि इससे न केवल मंदिर की गरिमा और पवित्रता बनी रहेगी, बल्कि महाप्रसाद वितरण की पारंपरिक व्यवस्था भी सुरक्षित रहेगी। वहीं, कुछ श्रद्धालुओं ने इसे असुविधाजनक बताते हुए कहा कि दूरदराज के भक्तों के लिए महाप्रसाद प्राप्त करना मुश्किल हो जाएगा।
मंदिर प्रशासन का कहना है कि दूर-दराज से आने वाले भक्तों के लिए मंदिर में ही विशेष पैकिंग की व्यवस्था है, ताकि वे इसे अपने घर ले जा सकें। लेकिन इसकी बिक्री या आपूर्ति केवल मंदिर से ही होगी, किसी तीसरे माध्यम से नहीं।
इस तरह, सरकार और मंदिर प्रशासन का यह संयुक्त निर्णय न केवल धार्मिक परंपराओं की रक्षा का प्रयास है, बल्कि महाप्रसाद को लेकर बढ़ते व्यावसायीकरण पर भी रोक लगाने का कदम है। अब भक्तों को जगन्नाथ महाप्रसाद पाने के लिए पुरी का रुख करना होगा — जहां भगवान के दर्शन और प्रसाद, दोनों का महत्व अनमोल है।