
जामताड़ा में बनेगा ‘Statue of Struggle’: गुरूजी शिबू सोरेन को समर्पित एशिया का सबसे बड़ा प्रतिमा।
झारखंड के जामताड़ा जिले के चिरुड़ी गांव में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और दिशोम गुरु शिबू सोरेन की याद में एशिया का सबसे बड़ा स्टैचू बनाया जाएगा। इस प्रतिमा को ‘Statue of Struggle’ नाम दिया गया है, जो गुरूजी के संघर्षपूर्ण जीवन, आदिवासी अधिकारों की लड़ाई और जनसेवा की विरासत को अमर करेगा। इस महत्वाकांक्षी परियोजना का उद्देश्य झारखंड के गौरवशाली इतिहास और आदिवासी आंदोलन की भावना को भावी पीढ़ियों तक पहुंचाना है।
300 फीट ऊंचा ‘संघर्ष का प्रतीक’
निर्माण योजना के अनुसार प्रतिमा की ऊंचाई 300 फीट से अधिक होगी, जिससे यह एशिया की सबसे ऊंची प्रतिमा के रूप में दर्ज होगी। इसके आधार पर एक भव्य संग्रहालय और गैलरी बनाई जाएगी, जहां गुरूजी के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेज, तस्वीरें, भाषण और आंदोलन की झलकियां प्रदर्शित की जाएंगी। साथ ही, यहां आगंतुकों के लिए शोध केंद्र, पुस्तकालय और डिजिटल आर्काइव भी होगा।
गुरूजी के संघर्ष की कहानी
शिबू सोरेन का जीवन आदिवासी समुदाय के अधिकारों, जल-जंगल-जमीन की रक्षा और सामाजिक न्याय की लड़ाई में बीता। उन्होंने अलग झारखंड राज्य के निर्माण के लिए दशकों तक आंदोलन चलाया और कई बार जेल भी गए। उनके नेतृत्व में संथाल परगना के गांव-गांव में जागरूकता फैलाकर आदिवासी समाज को संगठित किया गया। ‘Statue of Struggle’ का स्वरूप उनके इन्हीं संघर्षों को दर्शाएगा — एक हाथ में संविधान, और दूसरे में संघर्ष का प्रतीक झंडा होगा।
स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा
विशेषज्ञों का मानना है कि इस परियोजना से जामताड़ा और आसपास के इलाकों में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। इससे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। प्रतिमा के आसपास पार्क, फूड प्लाज़ा, सांस्कृतिक मंच और हस्तशिल्प बाजार भी विकसित किए जाएंगे, ताकि स्थानीय कलाकारों और कारीगरों को मंच मिल सके।
तकनीक और शिल्प का संगम
प्रतिमा के निर्माण में अत्याधुनिक स्टील स्ट्रक्चर और विशेष मौसमरोधी धातु का उपयोग होगा, ताकि यह दशकों तक सुरक्षित रहे। देश-विदेश के विशेषज्ञ मूर्तिकारों और इंजीनियरों की टीम इस पर काम करेगी। रात के समय इसे LED लाइटिंग से सजाया जाएगा, जिससे दूर से भी यह ‘संघर्ष का प्रतीक’ जगमगाता नजर आएगा।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व
‘Statue of Struggle’ न केवल एक स्मारक होगा, बल्कि यह झारखंड की पहचान, संस्कृति और इतिहास का केंद्र भी बनेगा। यहां साल भर सांस्कृतिक महोत्सव, आदिवासी नृत्य-गीत कार्यक्रम और शैक्षणिक सेमिनार आयोजित करने की योजना है। इससे यह स्थान एक जीवंत सांस्कृतिक धरोहर स्थल के रूप में स्थापित होगा।
सरकार और जनता की साझेदारी
इस परियोजना के लिए राज्य सरकार, स्थानीय प्रशासन और जनता के सहयोग से फंड जुटाया जा रहा है। कई सामाजिक संगठनों, उद्योगपतियों और प्रवासी झारखंडियों ने भी आर्थिक सहयोग का आश्वासन दिया है। यह प्रतिमा गुरूजी के प्रति जनआभार और एकता का प्रतीक होगी।
पर्यटन मानचित्र पर जामताड़ा
पूरा होने के बाद ‘Statue of Struggle’ जामताड़ा को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर स्थापित करेगा। अनुमान है कि हर साल लाखों देशी-विदेशी पर्यटक यहां आएंगे, जिससे होटल, परिवहन, हस्तशिल्प और स्थानीय व्यंजनों का कारोबार फलेगा-फूलेगा।
गांव से विश्व मंच तक
गुरूजी शिबू सोरेन का जन्म संथाल परगना के एक छोटे से गांव में हुआ था, लेकिन उन्होंने अपने संघर्ष और नेतृत्व से राष्ट्रीय राजनीति में पहचान बनाई। यह प्रतिमा उनके जीवन सफर को ‘गांव से दिल्ली’ और ‘जनसेवक से जननायक’ तक के अद्वितीय सफर के रूप में चित्रित करेगी।
लॉन्च टाइमलाइन
निर्माण कार्य अगले वर्ष की शुरुआत में शुरू होने की उम्मीद है और इसे लगभग 3 वर्षों में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके साथ ही प्रतिमा परिसर में वृक्षारोपण, जल संरक्षण और पर्यावरण-संवर्धन की विशेष योजनाएं भी लागू की जाएंगी, ताकि यह स्थान हरित और पर्यावरण-अनुकूल पर्यटन केंद्र बने।
संक्षेप में, जामताड़ा का ‘Statue of Struggle’ केवल एक विशाल प्रतिमा नहीं होगी, बल्कि यह झारखंड की आत्मा, आदिवासी समाज की ताकत और गुरूजी शिबू सोरेन की अदम्य संघर्षगाथा का जीवंत प्रतीक बनेगा। यह स्थल आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगा कि न्याय और अधिकार की लड़ाई में धैर्य, साहस और एकता ही सबसे बड़ा हथियार हैं।