
124 साल की मिंता देवी पर सियासी घमासान, संसद परिसर में विपक्षी सांसदों का विरोध प्रदर्शन।
नई दिल्ली। बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। बुधवार को संसद परिसर में विपक्षी दलों के सांसदों ने अनोखे तरीके से चुनाव आयोग के फैसले का विरोध दर्ज कराया। प्रदर्शन के दौरान सांसदों ने 124 साल की मिंता देवी की तस्वीर वाली टी-शर्ट पहन रखी थी, जिस पर बड़े अक्षरों में लिखा था— “124 Not Out”।
मिंता देवी का नाम कैसे आया चर्चा में?
दरअसल, बिहार की मतदाता सूची में दर्ज 124 वर्षीय मिंता देवी का मामला हाल ही में सुर्खियों में आया। विपक्ष का दावा है कि मतदाता सूची में उम्र और नामों को लेकर भारी गड़बड़ियां हैं, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। मिंता देवी का नाम इस विवाद का प्रतीक बन गया है, क्योंकि इतनी अधिक उम्र का आंकड़ा मतदाता सूची में दर्ज होना प्रशासनिक त्रुटि का उदाहरण माना जा रहा है।
SIR प्रक्रिया पर उठे सवाल
चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण शुरू किया है, जिसके तहत मतदाता सूची की छंटनी और संशोधन किया जा रहा है। इस प्रक्रिया का मकसद मृत, डुप्लीकेट और स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाना तथा नए पात्र मतदाताओं को शामिल करना है। लेकिन विपक्षी दलों का आरोप है कि यह प्रक्रिया निष्पक्ष नहीं है और इसमें गरीब, अल्पसंख्यक और विपक्ष समर्थक मतदाताओं के नाम जानबूझकर काटे जा रहे हैं।
संसद में प्रदर्शन का तरीका
प्रदर्शन के दौरान विपक्षी सांसदों ने संसद भवन के गेट के पास इकट्ठा होकर “124 Not Out” लिखी टी-शर्ट पहनी, जिसमें मिंता देवी की तस्वीर छपी हुई थी। सांसदों ने कहा कि यह नारा और तस्वीर मतदाता सूची में हो रही गड़बड़ियों का प्रतीक है। उनका कहना था कि “124 साल की मिंता देवी” तो अब भी वोटर लिस्ट में मौजूद हैं, लेकिन लाखों असली और पात्र मतदाताओं के नाम काट दिए गए हैं।
विपक्ष का आरोप
विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि बिहार में यह अभियान लोकतंत्र को कमजोर करने की साजिश है। राजद, कांग्रेस, वाम दल और अन्य विपक्षी सांसदों का कहना है कि इस संशोधन के जरिए सत्तारूढ़ दल अपने राजनीतिक फायदे के लिए मतदाता सूची में हेरफेर कर रहा है। उनका कहना है कि मतदाता सूची की छंटनी के बहाने गरीब, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग के मतदाताओं को टारगेट किया जा रहा है।
चुनाव आयोग की सफाई
चुनाव आयोग की ओर से कहा गया है कि SIR एक नियमित प्रक्रिया है, जो हर कुछ वर्षों में की जाती है। इसका उद्देश्य मतदाता सूची को अपडेट और सटीक रखना है। आयोग का कहना है कि अगर कहीं त्रुटि पाई जाती है, तो उसे सुधारने का प्रावधान है और इसके लिए संबंधित नागरिक फार्म भरकर आपत्ति दर्ज कर सकते हैं।
मिंता देवी की ‘प्रतीकात्मक’ पहचान
124 साल की मिंता देवी का वास्तविक अस्तित्व अब भी सवालों के घेरे में है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मतदाता सूची में दर्ज यह नाम और उम्र डेटा एंट्री की गलती हो सकती है। लेकिन विपक्ष ने इसे प्रतीकात्मक रूप से इस्तेमाल करते हुए कहा कि “जब 124 साल के लोग लिस्ट में बने रह सकते हैं, तो वास्तविक मतदाताओं के नाम क्यों काटे जा रहे हैं?”
संसद परिसर में गूंजे नारे
विपक्षी सांसदों ने संसद परिसर में “वोटर लिस्ट में हेरा-फेरी बंद करो” और “लोकतंत्र बचाओ” जैसे नारे लगाए। उनके हाथों में प्लेकार्ड थे, जिन पर लिखा था— “124 Not Out – Democracy is in Danger”। इस विरोध में कई बड़े नेता मौजूद थे, जिन्होंने कहा कि यह सिर्फ बिहार का मामला नहीं है, बल्कि देशभर में मतदाता सूची की पारदर्शिता सुनिश्चित करनी होगी।
राजनीतिक महत्व
बिहार में अगले कुछ महीनों में होने वाले चुनावों के मद्देनजर यह मुद्दा खासा संवेदनशील हो गया है। मतदाता सूची में किसी भी तरह की गड़बड़ी सीधे चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकती है। विपक्ष इसे जनता के बीच ले जाकर सत्तारूढ़ दल के खिलाफ माहौल बनाने की तैयारी कर रहा है। वहीं, सत्ता पक्ष का कहना है कि विपक्ष बेवजह विवाद खड़ा कर रहा है और चुनाव आयोग की प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं है।
निचोड़
मिंता देवी का 124 साल का आंकड़ा चाहे वास्तविक हो या महज प्रशासनिक त्रुटि, लेकिन यह मामला बिहार की सियासत में बड़ा मुद्दा बन चुका है। संसद से लेकर सड़क तक विपक्ष इसे हथियार बनाकर चुनाव आयोग और सरकार पर हमलावर है। अब देखना यह होगा कि मतदाता सूची में सुधार की यह प्रक्रिया कितनी पारदर्शी साबित होती है और क्या मिंता देवी का नाम वास्तव में “आउट” होता है या वह “124 Not Out” बनी रहती हैं।