
प्रस्तावना। बिहार की राजनीति में जब भी स्थिरता और विकास की चर्चा होती है तो नीतीश कुमार का नाम सामने आता है। राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री और लंबे समय से सत्ता में बने रहने वाले नेताओं में से एक नीतीश कुमार ने अपने कार्यकाल के दौरान कई अहम फैसले लिए हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या बिहार की जनता उन्हें फिर से स्वीकार करेगी या अब बदलाव की मांग तेज होगी? यह प्रश्न आने वाले विधानसभा चुनाव से पहले हर राजनीतिक चर्चा के केंद्र में है।
नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर
नीतीश कुमार ने राजनीति की शुरुआत छात्र आंदोलन से की और धीरे-धीरे वे बिहार की राजनीति में एक प्रमुख चेहरा बने। जनता दल (यूनाइटेड) के नेता के रूप में उन्होंने कई बार भाजपा और कांग्रेस दोनों के साथ सत्ता साझा की। उनकी सबसे बड़ी पहचान एक सुधारवादी मुख्यमंत्री की रही है, जिसने बिहार को अराजकता और अपराध से बाहर निकालने का प्रयास किया।
विकास के क्षेत्र में उपलब्धियां
1. सड़क और बिजली का सुधार
नीतीश कुमार के कार्यकाल में सबसे बड़ी उपलब्धि सड़क और बिजली व्यवस्था में सुधार को माना जाता है। एक समय बिहार की पहचान खराब सड़कों और अंधेरे गाँवों से थी, लेकिन आज स्थिति काफी हद तक बदल चुकी है। “हर घर बिजली” योजना और “ग्रामीण सड़क निर्माण” कार्यक्रम ने राज्य को नई दिशा दी।
2. शिक्षा में सुधार
नीतीश कुमार ने शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए।
साइकिल योजना: लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए मुफ़्त साइकिल योजना सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुई।
स्कूल पोशाक और छात्रवृत्ति योजना ने भी गरीब परिवारों के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने में मदद की।
3. महिला सशक्तिकरण
बिहार में पंचायत चुनाव में 50% आरक्षण देकर नीतीश कुमार ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में बड़ा कदम उठाया। इसका असर यह हुआ कि गांव-गांव की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी।
4. शराबबंदी कानून
2016 में लागू शराबबंदी कानून नीतीश कुमार की सबसे बड़ी और चर्चित पहल रही। हालांकि इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू सामने आए।
आलोचनाएं और चुनौतियाँ
1. शराबबंदी का दुष्परिणाम
जहां एक ओर शराबबंदी ने सामाजिक स्तर पर बदलाव लाने की कोशिश की, वहीं दूसरी ओर इससे अवैध शराब कारोबार और जहरीली शराब से मौतों जैसी घटनाएं भी बढ़ीं।
2. बेरोजगारी और उद्योग का अभाव
आज भी बिहार की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी और पलायन है। नीतीश कुमार के लंबे कार्यकाल के बावजूद बड़े उद्योगों का विकास नहीं हो सका।
3. राजनीतिक गठबंधन की अस्थिरता
नीतीश कुमार को “पलटी कुमार” भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने बार-बार गठबंधन बदला। कभी भाजपा, कभी राजद और कांग्रेस के साथ उनका गठबंधन रहा। इससे उनकी छवि स्थायी नेता की बजाय अवसरवादी के रूप में भी उभरी।
जनता का रुझान: स्वीकार्यता बनाम बदलाव
बिहार की जनता नीतीश कुमार को एक अनुभवी और विकासप्रिय नेता मानती है। उन्होंने प्रशासनिक स्तर पर सुधार किए हैं। लेकिन जनता के बीच अब यह धारणा भी बन रही है कि राज्य में नई पीढ़ी का नेतृत्व सामने आना चाहिए।
तेजस्वी यादव युवाओं के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं और बेरोजगारी के मुद्दे पर लगातार सरकार को घेर रहे हैं।
भाजपा भी अपने दम पर बिहार की राजनीति में पैठ बनाने की कोशिश कर रही है।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले चुनाव में नीतीश कुमार के सामने बड़ी चुनौती होगी।
नीतीश कुमार का भविष्य
राजनीतिक पंडित मानते हैं कि नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ताकत उनकी प्रशासनिक छवि और अनुभव है। लेकिन उनकी कमजोरी है गठबंधन की राजनीति और बेरोजगारी की समस्या।
यदि जनता विकास और स्थिरता को प्राथमिकता देती है तो नीतीश कुमार को एक बार फिर मौका मिल सकता है। लेकिन यदि जनता बदलाव चाहती है तो बिहार की राजनीति में नया चेहरा उभर सकता है।
नीतीश कुमार ने बिहार को अपराध और अराजकता के दौर से निकालकर सड़क, बिजली, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण की दिशा में ठोस काम किए हैं। लेकिन बेरोजगारी, उद्योग की कमी और बार-बार बदलते गठबंधन उनकी सबसे बड़ी कमजोरियां हैं। आने वाले चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार की जनता “अनुभव बनाम बदलाव” के इस समीकरण में किसे चुनती है।