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देवघर। धार्मिक नगरी देवघर का नाम पूरे भारत ही नहीं बल्कि विश्व स्तर पर भी अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां हर पर्व और त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास और श्रद्धा-भक्ति के साथ मनाया जाता है। आज तीज के पावन अवसर पर बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर प्रांगण में सुबह से ही भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। विशेषकर महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सजधज कर बाबा मंदिर परिसर पहुंचीं और तीज का व्रत कर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना की।
तीज व्रत का विशेष महत्व महिलाओं के लिए माना जाता है। मान्यता है कि यह व्रत पति की लंबी आयु, पारिवारिक सुख-समृद्धि और दांपत्य जीवन की मंगलकामना के लिए किया जाता है। इस अवसर पर बाबा मंदिर के पुजारियों ने महिलाओं को तीज की कथा सुनाई। कथाओं के माध्यम से यह बताया गया कि किस प्रकार माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किया और सबसे पहले तीज का व्रत रखा। तभी से यह परंपरा निरंतर चलती आ रही है और आज भी महिलाएं बड़ी आस्था और श्रद्धा के साथ इस व्रत को करती हैं।
बाबा बैद्यनाथ मंदिर परिसर में महिलाओं ने कहा कि यहां तीज की कथा सुनने से अलौकिक शांति और सुकून का अनुभव होता है। मंदिर के पंडितों ने बताया कि बाबा बैद्यनाथ धाम मां सती का क्षेत्र माना जाता है और यहां किसी भी धार्मिक अनुष्ठान का फल सौ गुना अधिक मिलता है। यही वजह है कि स्थानीय ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों और राज्यों से भी महिलाएं तीज के दिन देवघर पहुंचती हैं और बाबा भोलेनाथ के चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित करती हैं।
तीज व्रत और देवघर का धार्मिक महत्व
देवघर का बाबा बैद्यनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसका धार्मिक महत्व अत्यधिक है। सावन और भाद्रपद महीनों में यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं। खासकर तीज और हरितालिका तीज के अवसर पर महिलाओं की भीड़ देखते ही बनती है। महिलाएं व्रत रखकर दिनभर निर्जल रहकर पूजा करती हैं और शाम को विधिपूर्वक कथा सुनने के बाद व्रत का समापन करती हैं।
महिलाओं ने बातचीत में बताया कि तीज व्रत से पति की लंबी आयु की प्राप्ति होती है और दांपत्य जीवन सुखमय बनता है। एक महिला श्रद्धालु ने कहा कि “बाबा बैद्यनाथ मंदिर में तीज की कथा सुनना अपने आप में एक दिव्य अनुभव है। यहां आकर मन को शांति मिलती है और पूजा-अर्चना का अलग ही आनंद है।”
लोक आस्था और परंपरा का संगम
तीज पर्व केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है। इस दिन महिलाएं परंपरागत गीत गाती हैं, लोककथाएं सुनती हैं और एक-दूसरे को तीज की बधाइयां देती हैं। मंदिर परिसर में भी महिलाओं की मंडलियां पारंपरिक गीतों के साथ माहौल को भक्तिमय बना रही थीं।
मंदिर प्रशासन ने भी इस अवसर पर भक्तों की सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा। सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद रही और श्रद्धालुओं की लंबी कतारों को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन मुस्तैद दिखा।
बाबा बैद्यनाथ मंदिर का ऐतिहासिक संदर्भ
ऐतिहासिक मान्यता है कि बैद्यनाथ धाम ही वह स्थान है जहां रावण ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था। यहां स्थित शिवलिंग को अत्यंत चमत्कारी माना जाता है। तीज के दिन यहां विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है और श्रद्धालुओं को भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
आधुनिक युग में भी परंपरा जीवित
आज के आधुनिक दौर में जहां जीवनशैली तेजी से बदल रही है, वहीं तीज जैसे पारंपरिक व्रत और त्योहार आज भी महिलाओं के बीच अपनी विशेष पहचान बनाए हुए हैं। देवघर की गलियों से लेकर बाबा मंदिर तक हर जगह तीज की रौनक देखने को मिल रही थी। महिलाएं पारंपरिक साड़ी, मेंहदी, लाल चूड़ी और श्रृंगार के साथ इस पर्व को विशेष बना रही थीं।
तीज पर्व ने न केवल धार्मिक आस्था को जीवित रखा है बल्कि सामाजिक एकजुटता और पारिवारिक संबंधों को भी मजबूत बनाया है। यह पर्व महिलाओं को आत्मबल और धैर्य प्रदान करता है।
देवघर के बाबा बैद्यनाथ मंदिर में तीज व्रत और कथा का आयोजन महिलाओं के लिए एक आध्यात्मिक अनुभव साबित हुआ। यहां उमड़ी भीड़, भक्तिमय वातावरण और आस्था की गूंज ने यह संदेश दिया कि परंपराएं समय के साथ और भी मजबूत होती हैं। तीज का व्रत जहां पति की लंबी आयु और दांपत्य सुख के लिए महत्वपूर्ण है, वहीं यह महिलाओं की शक्ति, श्रद्धा और समर्पण का भी प्रतीक है।