
हिंदू धर्म में अनंत चतुर्दशी का विशेष महत्व है। यह पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष अनंत चतुर्दशी 2025 में सिद्ध योग में पड़ रही है, जिसके कारण इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व और भी अधिक बढ़ गया है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और अनंत सूत्र धारण करने की परंपरा है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से जीवन की कठिनाइयाँ दूर होती हैं और घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
अनंत चतुर्दशी का संबंध गणपति विसर्जन से भी है। दस दिन तक चलने वाले गणेश उत्सव का समापन इसी दिन बड़े धूमधाम से किया जाता है। भक्त गणपति बप्पा की प्रतिमाओं का जल विसर्जन करते हैं और उनसे अगले वर्ष पुनः आगमन का आशीर्वाद मांगते हैं। इसलिए यह दिन भगवान विष्णु और गणपति दोनों की आराधना का विशेष पर्व माना जाता है।
अनंत चतुर्दशी 2025 का शुभ मुहूर्त
पंडितों के अनुसार इस वर्ष अनंत चतुर्दशी पर शुभ योग बन रहा है। सिद्ध योग में पड़ने के कारण पूजा का महत्व कई गुना बढ़ जाएगा। इस दिन व्रत और पूजा करने का शुभ समय प्रातःकाल से लेकर दोपहर तक रहेगा। खासतौर से दोपहर का समय भगवान विष्णु की आराधना के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।
आचार्य के अनुसार, 6 सितंबर शनिवार को प्रातःकाल 7 बजकर 30 मिनट से लेकर दोपहर 1 बजकर 30 मिनट तक पूजन का शुभ मुहूर्त रहेगा।
अनंत चतुर्दशी व्रत का महत्व
अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु को अनंत रूप में पूजने का विधान है। भक्त इस दिन अनंत सूत्र को अपनी कलाई पर बांधते हैं, जिसमें 14 गांठें होती हैं। यह सूत्र भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इस सूत्र को धारण करने से घर में बुरी शक्तियों का प्रभाव कम होता है और परिवार में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अनंत चतुर्दशी का व्रत करने से पापों का नाश होता है और जीवन में आने वाली रुकावटें दूर होती हैं। विवाहित दंपति इस दिन व्रत रखकर संतान सुख और वैवाहिक जीवन की खुशहाली की कामना करते हैं।
गणेश विसर्जन का महत्व
अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति विसर्जन का विशेष महत्व होता है। भक्त गणपति बप्पा की प्रतिमाओं का गाजे-बाजे और भक्ति गीतों के साथ जल में विसर्जन करते हैं। यह आयोजन पूरे देश में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ किया जाता है। मान्यता है कि गणेश जी विसर्जन के बाद कैलाश पर्वत लौट जाते हैं और अगले वर्ष पुनः भक्तों के घरों में विराजते हैं।
इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक आस्था, परंपरा और ज्योतिषीय गणना पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल सामान्य जानकारी प्रदान करना है। किसी भी प्रकार की आस्था या अनुष्ठान से जुड़ा निर्णय लेने से पहले संबंधित विशेषज्ञ या पंडित से सलाह अवश्य लें।