
हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। इस अवधि में लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना के लिए श्राद्ध, तर्पण और दान-पुण्य जैसे कार्य करते हैं। शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने वंशजों के कर्मों से संतुष्ट होकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं। यही कारण है कि इस समय का हर कार्य सावधानीपूर्वक करना जरूरी माना गया है। पितृपक्ष के दौरान जहां कुछ चीजों का सेवन और उपयोग शुभ माना जाता है, वहीं कुछ वस्तुओं की खरीदारी वर्जित होती है। यह माना जाता है कि इस अवधि में गलत वस्तुओं की खरीद से पितर नाराज हो जाते हैं और घर-परिवार में अशांति का वातावरण पैदा हो सकता है।
पितृपक्ष में किन चीजों की खरीद से बचना चाहिए
सोना या कीमती धातुएं: पितृपक्ष में सोना या चांदी जैसी कीमती वस्तुएं खरीदना अशुभ माना जाता है। इसे दिखावे और भोग-विलास से जोड़कर देखा जाता है।
वाहन:
इस समय नया वाहन खरीदना भी वर्जित है। मान्यता है कि ऐसा करने से दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ सकता है।
नया घर या संपत्ति:
पितृपक्ष में नई संपत्ति या जमीन-जायदाद लेना शुभ नहीं माना जाता। इसे लेकर कई परंपराएं हैं, जिनके अनुसार पितर नाराज हो सकते हैं।
कपड़े और आभूषण:
नए कपड़े, गहने या फैशन से जुड़ी चीजें खरीदना भी इस अवधि में टाला जाना चाहिए। यह काल भोग-विलास का नहीं, बल्कि पितरों को स्मरण करने का है।
शुभ कार्यों की सामग्री: पितृपक्ष में विवाह, गृह प्रवेश या अन्य शुभ आयोजनों की तैयारी से जुड़ी वस्तुएं नहीं खरीदनी चाहिए।

पितृपक्ष का महत्व

पितृपक्ष का महत्व
पितृपक्ष को पूर्वजों की आत्मा को तृप्त करने और उनके आशीर्वाद पाने का समय माना गया है। इस दौरान श्राद्ध, तर्पण और दान जैसे कार्य करने से पितर प्रसन्न होते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। मान्यता है कि इस समय यदि लोग संयम और श्रद्धा से पितरों को याद करते हैं तो उनका जीवन सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है।
क्या करें पितृपक्ष में
इस समय दान-पुण्य, जरूरतमंदों की मदद और धार्मिक अनुष्ठान करना शुभ होता है। साथ ही पितरों के नाम पर भोजन दान करना और गौसेवा करना भी अत्यंत फलदायी माना जाता है।
इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल सामान्य जानकारी देना है। पाठक अपनी व्यक्तिगत आस्था और परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लें।