
रांची।झारखंड में लंबे समय से लंबित नगर निकाय चुनाव को लेकर कानूनी पेंच और प्रशासनिक लापरवाही अब न्यायालय की सख्ती के घेरे में आ चुकी है। झारखंड हाईकोर्ट में मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान नगर निकाय चुनाव से जुड़ी अवमानना याचिका पर मुख्य सचिव और नगर विकास सचिव सशरीर उपस्थित हुए। अदालत ने दोनों अधिकारियों से पूछा कि चुनाव को लेकर अब तक ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की गई और कोर्ट के पहले के आदेशों का पालन क्यों नहीं हुआ।
नगर निकाय चुनाव का मामला क्यों अटका?
झारखंड में पिछले कई वर्षों से नगर निकाय चुनाव टलते आ रहे हैं। सरकार ने कई बार चुनाव कराने का आश्वासन दिया, लेकिन इसे लागू करने में देरी होती रही। इसका सीधा असर नगर निकायों के कामकाज पर पड़ रहा है। कई जगहों पर निर्वाचित प्रतिनिधि न होने के कारण विकास योजनाएं प्रभावित हो रही हैं। कोर्ट ने इस देरी को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार से बार-बार जवाब मांगा था।
अवमानना याचिका क्यों दायर हुई?
हाईकोर्ट ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि नगर निकाय चुनाव समय पर कराए जाएं। बावजूद इसके, सरकार की ओर से ठोस पहल न किए जाने पर अवमानना याचिका दायर की गई। याचिकाकर्ता का आरोप है कि सरकार जानबूझकर चुनाव प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में देरी कर रही है, जिससे जनता के संवैधानिक अधिकार प्रभावित हो रहे हैं।
हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि नगर निकाय चुनाव लोकतंत्र की बुनियादी प्रक्रिया है और इसे टालना संविधान के खिलाफ है। अदालत ने मुख्य सचिव और नगर विकास सचिव से पूछा कि जब कोर्ट ने पहले ही आदेश दिया था तो उसका पालन क्यों नहीं हुआ। न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रशासनिक सुस्ती और राजनीतिक लाभ के लिए चुनाव को रोकना किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है।
मुख्य सचिव और नगर विकास सचिव का पक्ष
कोर्ट में उपस्थित होकर मुख्य सचिव और नगर विकास सचिव ने अपनी ओर से पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि सरकार चुनाव कराने के लिए तैयार है, लेकिन कुछ कानूनी और तकनीकी जटिलताओं की वजह से प्रक्रिया में विलंब हो रहा है। अधिकारियों ने यह भी बताया कि राज्य चुनाव आयोग से समन्वय किया जा रहा है और बहुत जल्द चुनाव कार्यक्रम घोषित कर दिया जाएगा।
राज्य चुनाव आयोग की भूमिका
राज्य चुनाव आयोग की ओर से भी इस मामले में लगातार सरकार पर दबाव बनाया गया है। आयोग का कहना है कि चुनाव की तैयारी पूरी है, लेकिन सरकार से आवश्यक मंजूरी और वित्तीय संसाधन समय पर नहीं मिले। आयोग ने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि जैसे ही सरकार से हरी झंडी मिलती है, चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी जाएगी।
जनता में बढ़ रही नाराज़गी
लंबे समय से नगर निकाय चुनाव न होने से जनता में नाराज़गी साफ दिखाई दे रही है। नागरिकों का कहना है कि निर्वाचित प्रतिनिधि न होने की वजह से स्थानीय समस्याएं जैसे साफ-सफाई, सड़क मरम्मत, जलापूर्ति और सीवरेज जैसी बुनियादी सेवाएं प्रभावित हो रही हैं। कई शहरों में महापौर और पार्षद के पदों पर प्रशासक काम कर रहे हैं, जिनसे जनता को सीधा संवाद स्थापित करने में कठिनाई हो रही है।
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
विपक्षी दलों ने इस पूरे मामले पर सरकार को घेरते हुए कहा कि यह जनता के अधिकारों का हनन है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार जानबूझकर चुनाव को टाल रही है ताकि प्रशासनिक नियंत्रण उसके हाथ में रहे। वहीं, सत्ताधारी दल का कहना है कि चुनाव कराने में कोई देरी नहीं की जा रही, बल्कि पूरी प्रक्रिया पारदर्शी और कानूनी तरीके से पूरी की जा रही है।
अगले कदम
हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद सरकार को स्पष्ट निर्देश दिया कि नगर निकाय चुनाव से जुड़ी प्रक्रिया को अब और नहीं टाला जाए। अदालत ने कहा कि अगले आदेश की तिथि तक सरकार ठोस रोडमैप पेश करे। अगर आदेशों की अवहेलना की गई तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
नगर निकाय चुनाव केवल एक संवैधानिक प्रक्रिया ही नहीं, बल्कि आम जनता के लिए स्थानीय लोकतंत्र की नींव है। हाईकोर्ट की सख्ती से साफ है कि अब सरकार को इस मामले में ढिलाई की कोई गुंजाइश नहीं है। आने वाले दिनों में इस मामले में बड़ा फैसला हो सकता है, जिससे झारखंड के लाखों लोगों की स्थानीय समस्याओं का समाधान निकल सकेगा।