
कोलकाता/बीरभूम। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली एक दर्दनाक घटना सामने आई है। एक भीड़ ने पति-पत्नी की इतनी बेरहमी से पिटाई की कि दोनों की मौके पर ही मौत हो गई। स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह मॉब लिंचिंग तंत्र-मंत्र (काला जादू) के शक में हुई, जबकि दूसरी तरफ कुछ लोग इसे आपसी दुश्मनी का नतीजा बता रहे हैं। इस सनसनीखेज वारदात ने पूरे इलाके में तनाव पैदा कर दिया है।
घटना कैसे हुई?
गुरुवार देर रात गांव के ही एक बच्चे की लाश मिलने के बाद माहौल गरमाया। लोग गुस्से में आ गए और सीधे पति-पत्नी के घर पर धावा बोल दिया। आरोप लगाया गया कि मृत बच्चा अक्सर इस दंपति के घर जाता था और गांव में यह चर्चा थी कि वे तंत्र-मंत्र करते हैं। गुस्साई भीड़ ने बिना किसी ठोस सबूत के दोनों को घर से घसीटकर बाहर निकाला और लाठी-डंडों से हमला बोल दिया।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, भीड़ तब तक मारती रही जब तक दोनों की सांसें थम नहीं गईं। मौके पर मौजूद बच्चों और परिवार वालों की चीख-पुकार भीड़ के गुस्से को कम नहीं कर सकी।
पुलिस की कार्रवाई
सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची, लेकिन तब तक पति-पत्नी की मौत हो चुकी थी। शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया है। बीरभूम पुलिस ने इस मामले में कई लोगों को हिरासत में लिया है और जांच जारी है।
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि यह घटना बेहद गंभीर है और दोषियों को किसी भी हालत में बख्शा नहीं जाएगा। साथ ही यह भी जांच की जा रही है कि मामला तंत्र-मंत्र से जुड़ा था या फिर गांव की किसी पुरानी दुश्मनी का नतीजा।
तंत्र-मंत्र और अंधविश्वास का जहर
पश्चिम बंगाल, झारखंड, असम और ओडिशा जैसे राज्यों में अक्सर तंत्र-मंत्र के शक में मॉब लिंचिंग की घटनाएं सामने आती रही हैं। कई बार निर्दोष लोगों को महज अफवाह और अंधविश्वास की वजह से भीड़ मौत के घाट उतार देती है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार और प्रशासन को ग्रामीण इलाकों में अंधविश्वास के खिलाफ व्यापक अभियान चलाने की जरूरत है, क्योंकि जब तक शिक्षा और जागरूकता नहीं बढ़ेगी, ऐसी घटनाएं रुकना मुश्किल है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
घटना के बाद विपक्षी दलों ने राज्य सरकार पर कानून-व्यवस्था बनाए रखने में विफल रहने का आरोप लगाया है। विपक्ष का कहना है कि अगर गांवों में पुलिस की सक्रियता और खुफिया तंत्र मजबूत होता तो ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता था।
वहीं, सत्तारूढ़ दल ने इस घटना को “दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक” बताते हुए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।
गांव में तनाव
घटना के बाद पूरे गांव में तनाव का माहौल है। बच्चे की मौत, पति-पत्नी की लिंचिंग और अफवाहों ने ग्रामीणों के बीच भय का माहौल बना दिया है। कई परिवारों ने रातों-रात गांव छोड़कर सुरक्षित जगह जाने का फैसला लिया।
पुलिस बल तैनात कर दिया गया है और अधिकारियों ने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है।
विशेषज्ञों की राय
सामाजिक शोधकर्ताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि मॉब लिंचिंग सिर्फ अपराध नहीं, बल्कि समाज के भीतर फैल चुकी असहिष्णुता और अंधविश्वास का नतीजा है।
मानवाधिकार कार्यकर्ता: “तंत्र-मंत्र के नाम पर लोगों की हत्या करना सभ्य समाज की पहचान नहीं हो सकती। यह घटना प्रशासन की विफलता और जनता की अज्ञानता का मिश्रण है।”
कानूनी विशेषज्ञ: “भारत में मॉब लिंचिंग के खिलाफ कड़े कानून की जरूरत है, ताकि भीड़ तंत्र खुद को कानून से ऊपर न समझे।”
पिछले मामलों से तुलना
यह पहली बार नहीं है जब पश्चिम बंगाल या आसपास के राज्यों में ऐसी घटनाएं हुई हों।
2023 में झारखंड में दो महिलाओं को जादू-टोना के आरोप में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था।
2022 में असम के एक गांव में एक बुजुर्ग को इसी शक में मौत के घाट उतार दिया गया।
2021 में ओडिशा के कंधमाल जिले में भी तंत्र-मंत्र के नाम पर पांच लोगों की हत्या कर दी गई थी।
ये सभी घटनाएं बताती हैं कि अंधविश्वास और अफवाहें कितनी खतरनाक हो सकती हैं।
नतीजा और सवाल
इस घटना ने एक बार फिर से कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं—
क्या ग्रामीण समाज अभी भी अंधविश्वास की गिरफ्त से बाहर नहीं निकल पाया?
क्या पुलिस और प्रशासन गांवों में सुरक्षा और जागरूकता के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा पा रहा?
और सबसे अहम, क्या भीड़ को यह हक है कि वह किसी की जान अपने हाथों से ले ले?
पश्चिम बंगाल की यह मॉब लिंचिंग सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि पूरे समाज के लिए शर्म का सबब है। एक तरफ बच्चे की मौत का रहस्य अब भी बरकरार है और दूसरी तरफ निर्दोष पति-पत्नी की हत्या ने इंसानियत पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
जब तक सरकारें ठोस कदम नहीं उठातीं और समाज अंधविश्वास की जंजीरों से आजाद नहीं होता, तब तक ऐसी घटनाओं का सिलसिला रुकना मुश्किल है।