
भारत की पवित्र धरती पर अनेक ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जिनकी पहचान केवल एक मंदिर भर से नहीं होती, बल्कि वे करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास के केंद्र बन जाते हैं। झारखंड के देवघर स्थित बाबा वैद्यनाथ धाम मंदिर (Baba Baidyanath Dham Mandir) भी उन्हीं पवित्र स्थलों में से एक है।
कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने किया था। यही कारण है कि यह मंदिर केवल आस्था का नहीं बल्कि दिव्य स्थापत्य कला का भी अद्भुत उदाहरण माना जाता है।
बाबा वैद्यनाथ धाम का महत्व
बाबा वैद्यनाथ धाम को बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।
यह स्थल भगवान शिव के ‘वैद्य’ रूप से जुड़ा है, जो समस्त रोगों को हरने वाले हैं।
यहां प्रतिवर्ष सावन माह में कांवड़ यात्रा के दौरान लाखों श्रद्धालु गंगाजल लेकर जलार्पण करते हैं।
मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और अन्य ग्रंथों में मिलता है।
बाबा विश्वकर्मा और मंदिर की कथा
1. विश्वकर्मा देव का परिचय
देव शिल्पी बाबा विश्वकर्मा को सृष्टि का पहला वास्तुकार माना जाता है।
स्वर्गलोक के महलों से लेकर इन्द्रपुरी तक की रचना इन्हीं ने की।
कहा जाता है कि देवताओं के सभी दिव्य अस्त्र-शस्त्र और अद्भुत भवन भी विश्वकर्मा की ही देन हैं।
इसी परंपरा में बाबा वैद्यनाथ धाम मंदिर भी उनकी अद्वितीय कृति माना जाता है।
2. रावण की तपस्या और शिवलिंग की स्थापना
पौराणिक कथाओं के अनुसार, लंका के राजा रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी।
उसने अपनी दसों भुजाएँ और सिर भगवान शिव को अर्पित करने की कोशिश की।
भगवान शिव उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उसे चिरंजीव और अजेय होने का वरदान देने लगे।
रावण ने प्रार्थना की कि भगवान स्वयं लंका में उसके साथ निवास करें।
तब भगवान शिव ने रावण को एक ज्योतिर्लिंग सौंपा और कहा कि इसे लंका में स्थापित कर सकते हो, परंतु यदि मार्ग में कहीं भी इसे रख दिया तो यह वहीं स्थापित हो जाएगा।
3. देवताओं की योजना
देवताओं को भय हुआ कि यदि शिवलिंग लंका में स्थापित हो गया तो रावण अजेय हो जाएगा।
तब उन्होंने एक योजना बनाई और वरुण देव को रावण की यात्रा में बाधा डालने के लिए भेजा।
रावण को अत्यधिक मूत्रत्याग की पीड़ा हुई और उसने शिवलिंग को कुछ देर के लिए एक ब्राह्मण बालक (वास्तव में देवताओं द्वारा भेजा गया गणेश) को सौंप दिया।
जैसे ही रावण लौटा, गणेश ने शिवलिंग को धरती पर रख दिया।
इस प्रकार देवघर में शिवलिंग की स्थापना हो गई।
4. विश्वकर्मा द्वारा मंदिर का निर्माण
शिवलिंग स्थापित होने के बाद देवताओं ने बाबा विश्वकर्मा को मंदिर का निर्माण करने का आदेश दिया।
विश्वकर्मा ने दिव्य शिल्पकला का प्रयोग कर मंदिर का निर्माण किया।
कहा जाता है कि यह मंदिर सामान्य पत्थरों से नहीं, बल्कि दिव्य वास्तुकला और ऊर्जा से निर्मित है।
आज भी मंदिर की दीवारों, गर्भगृह और शिखर में विश्वकर्मा की अद्भुत कला झलकती है।
मंदिर की स्थापत्य कला और विशेषताएं
गर्भगृह में बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है।
मुख्य मंदिर के चारों ओर 21 छोटे-छोटे मंदिर हैं, जिनमें विभिन्न देवताओं की स्थापना है।
मंदिर की ऊँचाई लगभग 72 फीट है और इसका शिखर शिखर शैली में बना हुआ है।
मंदिर का गर्भगृह इतना संकरा है कि श्रद्धालु जल चढ़ाते समय शिवलिंग के अत्यंत करीब पहुंच जाते हैं।
इसकी शिल्पकला प्राचीन भारतीय मंदिर वास्तुकला का जीवंत उदाहरण है।
धार्मिक मान्यता और आस्था
मान्यता है कि यहां जल अर्पित करने से सभी रोग और कष्ट दूर हो जाते हैं।
शिवजी यहां वैद्य रूप में निवास करते हैं, इसलिए इसका नाम वैद्यनाथ पड़ा।
सावन और भादो मास में यहां लाखों कांवड़िये गंगाजल लेकर आते हैं और जल चढ़ाते हैं।
ऐसा विश्वास है कि यदि कोई सच्चे मन से जल अर्पण करता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
सावन मेले और कांवड़ यात्रा
बाबा वैद्यनाथ धाम का सबसे बड़ा आकर्षण है सावन मेला।
उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल सहित पूरे देश से श्रद्धालु पैदल गंगाजल लेकर यहां पहुंचते हैं।
यह दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में से एक मानी जाती है।
श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को मंदिर में भारी भीड़ रहती है।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण
मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण, और रामचरितमानस तक में मिलता है।
प्राचीन काल में इसे कामना लिंग भी कहा जाता था।
मुगल काल में भी इस मंदिर की ख्याति बनी रही और यह सदैव आस्था का केंद्र बना रहा।
बाबा वैद्यनाथ धाम मंदिर केवल एक ज्योतिर्लिंग ही नहीं, बल्कि विश्वकर्मा देव की अद्भुत कला, रावण की भक्ति, और शिव की कृपा का जीवंत प्रतीक है।
यह मंदिर आस्था, श्रद्धा और दिव्य ऊर्जा का ऐसा संगम है, जहां हर साल करोड़ों लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आते हैं।
विश्वकर्मा देव द्वारा निर्मित यह धाम आज भी अपनी पौराणिकता और वैभव से लोगों को आकर्षित करता है।