
नई दिल्ली। नवरात्रि का पर्व शक्ति की उपासना और देवी दुर्गा की आराधना का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि विशेष महत्व रखती है, क्योंकि यह 9 नहीं बल्कि 10 दिनों तक चलेगी। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, आश्विन शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि दो दिन पड़ने से नवरात्रि का समय बढ़ जाएगा। इसका अर्थ है कि भक्तों को मां दुर्गा की पूजा और व्रत का अतिरिक्त पुण्यफल प्राप्त होगा।
इन पावन दिनों में देवी मंदिरों और शक्तिपीठों के दर्शन का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि नवरात्रि में शक्तिपीठों की यात्रा और पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।
शक्तिपीठों की उत्पत्ति की पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शक्तिपीठों का संबंध देवी सती और भगवान शिव की कथा से जुड़ा है। कहा जाता है कि राजा दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उसमें भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। इस अपमान को सहन न कर पाने के कारण देवी सती ने यज्ञ स्थल पर ही अग्नि में आत्मदाह कर लिया।
अपनी प्रिय पत्नी का वियोग सहन न कर पाने वाले भगवान शिव ने सती के शरीर को उठाकर तांडव करना शुरू कर दिया। पूरे ब्रह्मांड में असंतुलन पैदा हो गया। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया।
जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। कहा जाता है कि भारत और उपमहाद्वीप में कुल 51 प्रमुख शक्तिपीठ हैं। हर शक्तिपीठ में देवी के अलग-अलग स्वरूप की पूजा होती है।

नवरात्रि में शक्तिपीठ दर्शन का महत्व

नवरात्रि में शक्तिपीठ दर्शन का महत्व
नवरात्रि का समय शक्ति की उपासना का विशेष काल माना जाता है। इस दौरान शक्तिपीठों में दर्शन और पूजन करने से भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। धार्मिक मान्यता है कि इन दिनों शक्तिपीठों में की गई साधना से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और व्यक्ति को धन, स्वास्थ्य और सफलता की प्राप्ति होती है।
भक्तों का विश्वास है कि नवरात्रि में शक्तिपीठों के दर्शन करने से देवी मां की कृपा विशेष रूप से प्राप्त होती है। साथ ही यह साधना मोक्ष की प्राप्ति तक का मार्ग प्रशस्त करती है।
भारत के प्रमुख शक्तिपीठ और उनका महत्व
1. कामाख्या शक्तिपीठ, असम – यह तांत्रिक साधना का प्रमुख केंद्र है। यहां हर वर्ष अंबुबाची मेले का आयोजन होता है।
2. वैष्णो देवी शक्तिपीठ, जम्मू – मां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में यहां पूजा होती है।
3. ज्वालामुखी शक्तिपीठ, हिमाचल प्रदेश – यहां देवी मां की अनोखी ज्वालाएं अनवरत जलती रहती हैं।
4. कालीघाट शक्तिपीठ, कोलकाता – मां काली की विशेष पूजा यहां होती है।
5. अम्बाजी शक्तिपीठ, गुजरात – यह स्थान भी देवी भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण है।
इनके अलावा भारत और नेपाल सहित उपमहाद्वीप में अन्य कई शक्तिपीठ हैं, जहां नवरात्रि पर विशेष उत्सव और अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं।
नवरात्रि में शक्तिपीठों की परंपराएं
शक्तिपीठों में सुबह और शाम विशेष आरती होती है।
भक्त देवी मां की साधना, हवन और जप-तप में लीन रहते हैं।
मंदिरों में दुर्गा सप्तशती और देवी भागवत पाठ का आयोजन किया जाता है।
भक्तगण माता रानी के लिए चुनरी, नारियल और श्रृंगार की सामग्री अर्पित करते हैं।
नवरात्रि में शक्तिपीठों की यात्रा केवल धार्मिक आस्था ही नहीं, बल्कि आत्मशक्ति और आत्मविश्वास को जागृत करने का भी माध्यम मानी जाती है।

देवी सती की कथा का संदेश

देवी सती की कथा का संदेश
देवी सती की कथा हमें यह सिखाती है कि भक्ति, शक्ति और समर्पण से जीवन के सभी दुख दूर किए जा सकते हैं। भगवान शिव और सती का प्रेम त्याग, श्रद्धा और आत्मबल का प्रतीक है। नवरात्रि में शक्तिपीठों का दर्शन और पूजन करने से भक्त को दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
नवरात्रि का पर्व केवल व्रत और पूजा का ही नहीं, बल्कि आत्मिक शक्ति और जीवन की ऊर्जा को जगाने का उत्सव है। शक्तिपीठों में दर्शन और पूजा से भक्तों को अद्भुत शांति, आनंद और आध्यात्मिक शक्ति मिलती है। यही कारण है कि नवरात्रि में शक्तिपीठ यात्रा और पूजन का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं, पौराणिक कथाओं और सामान्य जनश्रुतियों पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल जनसामान्य की जानकारी बढ़ाना है। किसी भी प्रकार के निर्णय के लिए स्थानीय परंपरा और विशेषज्ञ की सलाह लेना आवश्यक है।