
पटना: बिहार की राजनीति में एक बार फिर नया तूफ़ान खड़ा हो गया है। विपक्ष ने राज्य में चल रहे SIR (Special Investigation Report) मामले को लेकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर गंभीर आरोप लगाए हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि “बिहार में SIR का पूरा खेल बीजेपी के इशारे पर चल रहा है।” इस बयान के बाद सियासी माहौल गर्मा गया है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जुबानी जंग तेज हो चुकी है।
विपक्ष का आरोप है कि बीजेपी, राज्य की एजेंसियों और प्रशासनिक मशीनरी का इस्तेमाल अपने राजनीतिक हित साधने के लिए कर रही है। वहीं, बीजेपी ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि विपक्ष भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए झूठा नैरेटिव बना रहा है।
विपक्ष का आरोप – “SIR का इस्तेमाल विरोधियों को डराने के लिए”
राज्य के कई वरिष्ठ नेताओं ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि “SIR रिपोर्ट्स को चुनिंदा नेताओं के खिलाफ लीक किया जा रहा है ताकि उनकी छवि खराब की जा सके।”
विपक्षी दलों का कहना है कि जिन मामलों में जांच हो रही है, वे वर्षों पुराने हैं, लेकिन अचानक चुनाव से पहले इन रिपोर्ट्स को सक्रिय कर दिया गया है।
एक प्रमुख विपक्षी नेता ने कहा —
> “BJP बिहार में लोकतंत्र को कुचलने का काम कर रही है। SIR का इस्तेमाल विपक्षी नेताओं को डराने और राजनीतिक रूप से कमजोर करने के लिए किया जा रहा है।”
नेताओं ने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र सरकार की एजेंसियां भी इस ‘राजनीतिक मिशन’ का हिस्सा हैं, ताकि बिहार में चुनाव से पहले माहौल बीजेपी के पक्ष में बनाया जा सके।
BJP का पलटवार – “भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना राजनीति नहीं”
दूसरी ओर बीजेपी ने विपक्ष के आरोपों को “राजनीतिक ड्रामा” बताया है।
बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि —
> “जिनके दामन पर दाग है, वही जांच से डरते हैं। SIR रिपोर्ट में जो भी सामने आ रहा है, वह जनता के हित में है। इसमें बीजेपी की कोई भूमिका नहीं, बल्कि यह कानून की प्रक्रिया है।”
बीजेपी का दावा है कि जो लोग आज सवाल उठा रहे हैं, वे ही पहले ‘भ्रष्टाचार मुक्त शासन’ की बात करते थे, लेकिन जब जांच की बारी आई तो इसे साजिश बता रहे हैं।
SIR क्या है और क्यों चर्चा में है?
बिहार में हाल के दिनों में कई विभागों और योजनाओं में अनियमितताओं की शिकायतें सामने आई हैं।
इन्हीं शिकायतों की जांच के लिए राज्य सरकार ने Special Investigation Reports (SIR) तैयार कराई हैं।
इन रिपोर्टों में कई बड़े अफसरों और नेताओं के नाम सामने आए हैं।
सूत्रों के अनुसार, कुछ रिपोर्ट्स में ऐसे दस्तावेज हैं जो राजनीतिक रूप से संवेदनशील हो सकते हैं। यही वजह है कि विपक्ष इसे “राजनीतिक हथियार” बताकर निशाना बना रहा है।
चुनावी सियासत से जोड़कर देखा जा रहा मामला
बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 के नजदीक आने के साथ ही हर मुद्दे को अब चुनावी नजर से देखा जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि SIR विवाद आने वाले महीनों में और बड़ा रूप ले सकता है।
क्योंकि विपक्ष इसे जनता के बीच “लोकतंत्र बनाम साजिश” के मुद्दे के रूप में पेश करने की कोशिश करेगा, जबकि बीजेपी इसे “भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान” बताएगी।
विश्लेषकों के अनुसार,
> “SIR की रिपोर्टें न सिर्फ प्रशासनिक सवाल खड़े कर रही हैं, बल्कि राज्य की राजनीति की दिशा भी तय कर सकती हैं।”
जनता की प्रतिक्रिया
इस पूरे मुद्दे पर आम जनता में भी मिश्रित प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।
कुछ लोग मानते हैं कि अगर किसी ने भ्रष्टाचार किया है, तो जांच होनी ही चाहिए।
वहीं, कुछ लोग इसे राजनीति से प्रेरित कदम बताते हैं।
पटना विश्वविद्यालय के छात्र राहुल कुमार ने कहा —
> “हर चुनाव से पहले ऐसे मामले सामने आते हैं। सरकारें जांच का डर दिखाकर विरोधियों को कमजोर करती हैं।”
वहीं एक अन्य नागरिक ने कहा —
> “अगर BJP वास्तव में पारदर्शिता चाहती है तो सभी दलों की जांच समान रूप से होनी चाहिए, न कि चुनिंदा लोगों पर।”
राजनीतिक समीकरण पर असर
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस विवाद से विपक्ष को एक नया मुद्दा मिल गया है।
RJD, कांग्रेस और वाम दल अब SIR मामले को लेकर संयुक्त रणनीति बना सकते हैं।
वहीं, बीजेपी अपने “क्लीन गवर्नेंस” के एजेंडे को मजबूत करने की कोशिश में है।
राजनीतिक विशेषज्ञ प्रो. अरुण मिश्रा के अनुसार,
> “SIR विवाद का सीधा असर बिहार की चुनावी रणनीति पर पड़ेगा। अगर विपक्ष इसे सही तरह से भुना लेता है तो सत्ता पक्ष को मुश्किलें झेलनी पड़ सकती हैं।”
बिहार की सियासत में SIR विवाद अब सिर्फ एक जांच का मुद्दा नहीं रह गया, बल्कि यह राजनीतिक नैरेटिव की लड़ाई बन चुका है।
विपक्ष इसे लोकतंत्र पर हमला बता रहा है, जबकि बीजेपी इसे पारदर्शिता का प्रतीक कह रही है।
आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह “SIR का खेल” बिहार के चुनावी समीकरण को किस दिशा में मोड़ता है।