
देवघर, झारखंड : आस्था, श्रद्धा और भक्ति का केंद्र मानी जाने वाली देवनगरी देवघर में आज आश्विन मास की शारदीय पूर्णिमा के अवसर पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। बाबा बैद्यनाथ धाम में आज सुबह से ही यूपी, बिहार, बंगाल, ओडिशा और झारखंड के विभिन्न जिलों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु जलार्पण और पूजा-अर्चना के लिए पहुंच रहे हैं। पूरा शहर आज भक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा से सराबोर है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, साल की 12 पूर्णिमाओं में आश्विन मास की शारदीय पूर्णिमा को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह दिन माता लक्ष्मी की उपासना और चंद्रमा की आराधना के लिए विशेष होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जिन घरों में स्वच्छता, भक्ति और दीप-प्रकाश होता है, वहां स्थायी रूप से निवास करती हैं। इसी कारण आज के दिन लक्ष्मी पूजा, दीपदान और धन-संपत्ति की प्रार्थना का विशेष महत्व है।
बाबा बैद्यनाथ धाम परिसर में आज विशेष सजावट की गई है। मंदिर परिसर को फूलों, झालरों और दीपों से सजाया गया है। श्रद्धालु सुबह से ही “जय बाबा बैद्यनाथ” और “हर हर महादेव” के जयकारों के साथ जलार्पण के लिए कतार में खड़े दिखाई दे रहे हैं।
मंदिर प्रांगण में मां लक्ष्मी की विशेष आराधना भी की जा रही है। पुजारियों ने बताया कि आश्विन पूर्णिमा पर बाबा बैद्यनाथ के साथ-साथ मां लक्ष्मी की पूजा करने से भक्तों को अपार धन, वैभव और सुख की प्राप्ति होती है।
इस अवसर पर चंद्रमा की पूजा और खीर का भोग लगाने की भी परंपरा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, आश्विन पूर्णिमा की रात चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है। इसीलिए भक्तजन दूध से बनी चीज़ों—जैसे खीर, मालपुआ, रसगुल्ला, रबड़ी आदि—को घर की छत या आंगन में रखकर चांदनी में शीतल किया जाता है। कहा जाता है कि यह अमृत के समान हो जाता है, जिसे अगले दिन सुबह ग्रहण करने से स्वास्थ्य लाभ और समृद्धि प्राप्त होती है।
देवघर के स्थानीय पंडितों के अनुसार, आज के दिन चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण होते हैं, जो शरीर और मन दोनों के लिए लाभकारी हैं। इसी कारण बाबा बैद्यनाथ मंदिर में आज खीर के साथ केला, मेवा, काजू, किशमिश और अन्य पूजन सामग्री को दूध में मिलाकर चंद्रमा के औष (अमृत) में रखा जाता है। भक्तजन रात में चंद्रमा के दर्शन के साथ इस खीर-भोग का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
देवघर के कई प्रमुख मंदिरों — जैसे बाबा बैद्यनाथ धाम, बासुकीनाथ मंदिर, नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर और कुंडा शिवालय में भी आज विशेष पूजा आयोजित की गई है। पूरे शहर में कीर्तन, भजन संध्या और दीपदान कार्यक्रम चल रहे हैं। महिलाएं घरों में दीप जलाकर मां लक्ष्मी के “लख्खी रूप” की पूजा कर रही हैं, ताकि घर में धन, अन्न और सौभाग्य का वास हो।
स्थानीय प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विशेष इंतज़ाम किए हैं। देवघर नगर निगम और मंदिर प्रबंधन समिति द्वारा मंदिर परिसर की सफाई, पानी की व्यवस्था, और सुरक्षा के लिए अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती की गई है। वहीं स्वयंसेवी संस्थाएं भी श्रद्धालुओं को भोग-प्रसाद और पेयजल वितरण में जुटी हैं।
देवघर के पुजारी पं. राजेश शास्त्री ने बताया —
> “आश्विन पूर्णिमा को ‘कोजागरी पूर्णिमा’ भी कहा जाता है। इसका अर्थ होता है — ‘कौन जाग रहा है’। माता लक्ष्मी उन घरों में प्रवेश करती हैं जहां आज के दिन स्वच्छता, सजावट और पूजा के साथ लोग जागरण करते हैं। इसलिए यह पूर्णिमा न सिर्फ धन की, बल्कि सतर्कता और कर्मठता की भी प्रतीक है।”
आज की रात देवघर का दृश्य अत्यंत मनमोहक है — मंदिरों में दीपमालाएँ जल रही हैं, घंटियों की गूंज के साथ भक्ति-संगीत की ध्वनि फैल रही है, और श्रद्धालु बाबा बैद्यनाथ व माता लक्ष्मी से सुख-समृद्धि की कामना कर रहे हैं। स्थानीय बाजारों में भी रौनक देखने को मिल रही है — खीर, दूध, मिठाई और पूजन सामग्री की ख़रीदारी के लिए भीड़ लगी है।
धार्मिक मान्यता के साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी इस दिन को खास बनाता है। पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी के निकटतम स्थिति में होता है, जिससे उसकी किरणों का असर स्वास्थ्य पर सकारात्मक पड़ता है। इसलिए इसे “औष पूर्णिमा” भी कहा जाता है।
देवघर में यह पर्व न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव के रूप में भी मनाया जा रहा है। श्रद्धालुओं की भीड़ से पूरा शहर जीवंत हो उठा है। यह दृश्य हर उस व्यक्ति के लिए विशेष है जो बाबा बैद्यनाथ और मां लक्ष्मी की कृपा पाने की इच्छा रखता है।