
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की राजनीति में अचानक मोड़ तब आया जब चिराग पासवान ने 24 घंटे के अंदर अपना रुख पूरी तरह बदल लिया। सीट बंटवारे को लेकर जारी अंदरूनी खींचतान, गठबंधन दबाव, और नए राजनीतिक समीकरणों ने उन्हें मजबूर किया नया कदम उठाने को। इस रिपोर्ट में हम स्पष्ट करेंगे कि वह किन घटनाओं का सामना कर रहे हैं और इस बदलाव का चुनावी रणनीति पर क्या असर हो सकता है।
चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) ने 2024 लोकसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया था, और अब वे बिहार विधानसभा की बिसात पर अपनी पैठ बढ़ाना चाहते हैं।
वर्तमान में, NDA गठबंधन में सीटों की बंटवारे को लेकर तनाव स्पष्ट है, और चिराग पासवान अपनी दावेदारी को मजबूती से पेश कर रहे हैं।
24 घंटे में क्या हुआ — घटनाक्रम
नीचे घटनाक्रम को समयानुसार विवरण में बताया गया है:
प्रथम स्थिति: चिराग ने 40 सीटों की मांग रखी, जबकि भाजपा ने उन्हें लगभग 25 सीटों की पेशकश की।
बीजेपी की प्रतिक्रिया और दबाव: भाजपा नेताओं ने दिल्ली में बैठकें कीं और मध्यस्थता शुरू की।
प्रशांत किशोर प्रस्ताव: जन सुराज पार्टी की ओर से चिराग को उनके दल को विलय करने का ऑफर दिया गया, जिसमें कहा गया कि उन्हें पूरा सम्मान मिलेगा।
प्रशांत किशोर ने टाल दी बात: हालांकि, किशोर ने यह स्पष्ट किया कि वे चिराग पासवान के साथ कोई गठबंधन नहीं करेंगे।
पासु अपोजिशन की रणनीति: चिराग ने सार्वजनिक रूप से प्रशांत किशोर की ईमानदारी की प्रशंसा की और कहा कि उन पर हमला ना हो।
आक्रामक रुख: उन्होंने बिहार में कानून-व्यवस्था और राज्य सरकार पर तीखे आरोप लगाए, विशेषकर बीजेपी गठबंधन साथी नीतीश कुमार पर।
परिवार विवाद: RLJP के अध्यक्ष पासुपति परास ने घोषणा की कि वे उन विधानसभाओं में उम्मीदवार उतरेंगे जहाँ चिराग का उम्मीदवार हो। इस कदम से पार्टी के अंदर पुरानी दरारें उभर आईं।
इस तरह, लगभग एक दिन में ही चिराग पासवान का राजनीतिक रुख अधिक आक्रामक, अधिक दबावयुक्त और अधिक रणनीतिक हो गया है।
कारण और दबाव बिंदु
चिराग का यह बदलाव अचानक नहीं था — इसके पीछे कई कारण काम कर रहे हैं:
सेट मांग और बलबूता: चिराग पासवान यह दिखाना चाहते हैं कि उनकी पार्टी राज्य में निर्णायक शक्ति है, न कि एक बगल की सहायक पार्टी।
बीजेपी पर दबाव: यदि वह बहुत अधिक मांग न करें, तो अन्य गठबंधन दलों के नाखुश होने का खतरा है। इसके विपरीत, यदि वह बहुत अधिक आक्रामक हो जाएं, भाजपा उनसे दूरी बना सकती है।
प्रशांत किशोर की भूमिका: चिराग के लिए यह एक विकल्प बन गया कि वे अलग खड़े हों या किसी नए समीकरण की ओर बढ़ें।
आंतरिक पार्टी विवाद: RLJP और LJP (RV) के बीच पुरानी खींचतानें और रणनीतिक मतभेद भी चिराग को कठोर रुख अपनाने पर मजबूर कर रहे हैं।
लोकनीति और सार्वजनिक दबाव: बिगड़ती कानून-व्यवस्था, बेरोजगारी, पलायन जैसे विषयों पर चिराग को संवेदनशील और आक्रामक पैंतरे दौड़ाने पड़ रहे हैं।
इस बदलाव का संभावित असर
चिराग पासवान के रुख परिवर्तन से निम्न प्रभाव हो सकते हैं:
1. गठबंधन टूटने का खतरा
यदि सीटों की मांग पर संतोषजनक फैसला नहीं हुआ, तो चिराग NDA से अलग हो सकते हैं, जिससे गठबंधन की कमजोर स्थिति हो जाएगी।
2. उपजी राजनीतिक अल्पकालीन हलचल
अन्य गठबंधन दल और भाजपा को तुरंत पैंतरबाज़ी करनी पड़ेगी, सीट बंटवारे और प्रचार रणनीति में परिवर्तन आ सकता है।
3. चुनावी समीकरण बदलना
यदि चिराग अलग हो जाएं या विरोधी धु्रवीकरण करें, तो उनकी वोट बैंक, खासकर Paswan समुदाय में (लगभग 6% मतदाता) गठबंधन को नुकसान पहुंचा सकती है।
4. निदान-चुनौती दोनों ओर
चिराग का आक्रामक रुख उन्हें जनता में “निडर नेता” के रूप में स्थापित कर सकता है, लेकिन यदि गठबंधन टूट जाए तो वे अकेले चुनाव लड़ने की मुसीबत में पड़ सकते हैं।
5. मानसिक संदेश
इस रुख परिवर्तन से वो संदेश जा रहा है कि वे हार मानने वाले नहीं, बल्कि सत्ता की लड़ाई में पूरी ताकत से जाने वाले नेता हैं।
24 घंटे में चिराग पासवान की रणनीति में यह बदलाव यह दिखाता है कि बिहार चुनाव 2025 सिर्फ सीटों की लड़ाई नहीं, बल्कि धार्मिक, नुकीली, और रणनीतिक दांव-पेंच की जंग है। चिराग ने यह स्पष्ट कर दिया कि वे सिर्फ गठबंधन के खिलौना नहीं होंगे, बल्कि अपनी दावेदारी को रेखांकित करेंगे। आगामी दिनों में यह देखना खास होगा कि भाजपा, जेडीयू, और अन्य दल किस तरह प्रतिक्रिया देते हैं और यह मोड़ बिहार की सत्ता पर किसका नाम लिखेगा।