झारखण्ड की सरकार द्वारा एक नया आदेश जारी किया गया है, जिसमें यह कहा गया है कि अब राज्य की जेलों में बंद कैदियों को सप्ताह में तीन दिन चिकन और मटन परोसे जाएंगे। इस फैसले ने तुरंत ही बहस को जन्म दिया है—एक ओर इसे मानवाधिकार और कैदियों की गरिमा की दृष्टि से स्वागत किया जा रहा है, तो दूसरी ओर इसे “लोकतंत्र की छवि के लिए शर्मनाक” और “सामान्य करदाताओं की भावनाओं के खिलाफ” कहा जा रहा है।
यह निर्णय मुख्य रूप से झारखण्ड की मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अगुवाई में लिया गया है।
झारखण्ड की जेल व्यवस्था वर्षों से संसाधन-संकट, भ्रष्टाचार, अपर्याप्त भोजन और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी जैसी चुनौतियों का सामना कर रही है।सरकार के अनुसार, यह नया आदेश जेलों में बंद लोगों की “मानव गरिमा” और “पोषण स्तर” सुधारने के प्रयासों का हिस्सा है। अधिकारियों ने यह भी कहा है कि यह माध्यमिक उपाय होगा — यानी कि हर कैदी को नहीं, बल्कि कुछ विशेष श्रेणियों (उदाहरणतः गंभीर रोग वाले, कमजोर स्वास्थ्य वाले बंदी आदि) को यह सुविधा मिलेगी।
लेकिन आलोचनाएं जोर-शोर से उठ रही हैं: सवाल उठाए जा रहे हैं कि यह पहल इतनी महंगी कैसे चलेगी, बजट का स्रोत क्या होगा, और क्या यह निर्णय समाज की संवेदनशीलता के अनुरूप है।
मुख्य विवरण एवं सरकार का मत
निकाय और आदेश: यह आदेश झारखण्ड की जेल प्रशासन द्वारा जारी किया गया, और राज्य गृह विभाग ने इसे मंजूरी दी।
उद्देश्य: सरकार का दावा है कि यह पहल कैदियों में बेहतर स्वास्थ्य, उचित पोषण और मानवीय दृष्टिकोण बनाए रखने की कोशिश है।
लाभार्थी वर्ग: सभी बंदियों को नहीं, बल्कि चयनित श्रेणियों को — जैसे कि बुजुर्ग, बीमार, कमजोर इम्यूनिटी वाले — इस सुविधा का लाभ मिलेगा।
खर्च एवं बजट: प्रारंभिक अनुमान यह है कि अतिरिक्त व्यय के लिए राज्य सरकार को अतिरिक्त धनराशि आवंटित करनी पड़ेगी।
क्रियान्वयन तंत्र: प्रत्येक जेल के अधीक्षक को यह आदेश लागू करना है। खाद्य आपूर्ति, दर्जा, निगरानी आदि की जिम्मेदारी जेल प्रशासन की होगी।
नियंत्रण और निगरानी: स्वास्थ्य विभाग और जेल सुधार विभाग द्वारा नियमित निरीक्षण और रिपोर्टिंग निर्धारित की गई है
इस फैसले को लेकर निम्न प्रमुख आलोचनाएँ सामने आ रही हैं:
1. करदाता-विरोधी भावना
साधारण नागरिकों और करदाताओं का यह कहना है कि वे अपने टैक्स के बदले ऐसी “विशेष सुविधाएँ” नहीं चाहते।
2. अन्य प्राथमिकता क्षेत्रों की अनदेखी
आलोचक कहते हैं कि सरकार को पहले जेलों में बुनियादी स्वास्थ्य, सुरक्षा, स्वच्छता और शिक्षा सुविधाओं पर ध्यान देना चाहिए था, न कि मांसाहारी भोजन पर।
3. नैतिक और सामाजिक भावनाएँ
कई सामाजिक और धार्मिक समूहों ने इसे “अनुचित”, “लोकनीति से बाहर” और “सामाजिक असम्मान” वाला कदम बताया है।
4. भ्रष्टाचार और अनियमितता का डर
खाद्य वितरण में इस्तेमाल होने वाला बजट और सामग्री अमानक हो सकती है। भ्रष्टाचार या भर्ती (cut-off) की समस्या संभव है।
5. स्वास्थ्य दृष्टिकोण
कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि ऐसे भारी मांसाहारी भोजन से बेहतर होगा कि राजनैतिक कदम से पहले विस्तृत पोषण अध्ययन किया जाए।
राजनीतिक दृष्टिकोण
इस फैसले की राजनीतिक पैठ को लेकर झारखण्ड में विपक्ष इसे सरकार की एक “लोकप्रियता बढ़ाने की कोशिश” कह रहा है।
न्यायपालिका एवं मानवाधिकार दृष्टिकोण
यदि कोई कैदी इस सुविधा से वंचित रहता है या अनुचित चयन होता है, तो न्यायालय में याचिका दायर होने की संभावना है।
सामाजिक प्रतिक्रिया
जनमानस में मिश्रित प्रतिक्रिया है — कुछ लोग इसे मानवीय कदम मान रहे हैं, जबकि अन्य इसे सरकार की “दुरुपयोग की संभावनाओं” की शुरुआत कह रहे हैं।
लागत-लाभ मूल्यांकन
यदि यह करदाताओं के द्वारा दी गई राशि से चला, तो यह सरकार के बजट पर दबाव बढ़ा सकता है। वहीं, बेहतर स्वास्थ्य नतीजों से दीर्घकाल में स्वास्थ्य खर्च कम हो सकते हैं।
प्रतिक्रिया तैयार करना
सरकार को एक मजबूत सार्वजनिक संवाद रणनीति तैयार करनी होगी, जिसमें पारदर्शिता, वितरण प्रणाली, चयन मानदंड और निगरानी संबंधी विवरण जनता को बताए जाएं।
सोरेन सरकार का यह आदेश निश्चित ही एक विवादास्पद और बहुआयामी कदम है — इसे मानवाधिकार और गरिमापूर्ण दृष्टिकोण की ओर बढ़ता कदम मानने वालों की संख्या भी कम नहीं, वहीं आलोचक इसे असंवेदनशील और अनावश्यक बताते हैं।
आगे देखना होगा कि इस फैसले का क्रियान्वयन किस प्रकार होगा, इससे कितने बंदियों को लाभ मिलेगा, और जनता एवं न्यायपालिका प्रतिक्रिया किस स्वरूप में देगी।
इस आदेश की सफलता का पैमाना न केवल केंद्रीय सरकारी नीतियों और बजट प्रबंधन से मापा जाएगा, बल्कि सामाजिक स्वीकार्यता, पारदर्शिता, और निष्पक्ष वितरण से भी मापा जाना चाहिए।
