आज हेमन्त सोरेन ने र्कोण मुखोपाध्याय के रांची के डोरंडा स्थित आवास पहुंचकर उनकी माता रीना मुखर्जी के निधन पर गहरी श्रद्धांजलि एवं शोक व्यक्त किया। मुख्यमंत्री ने दुख की इस घड़ी में उन्हें ढाढस बंधाया और दिवंगत आत्मा की शांति-मंगल तथा शोक-संतप्त परिवारजनों को धैर्य प्रदान करने ईश्वर से प्रार्थना की।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने शोक-संतप्त परिवार के सदस्यों से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की तथा पार्थिव शरीर पर पुष्पचक्र अर्पित कर भावभीनी श्रद्धांजलि दी। यह एक मानवीय संवाद था जिसमें सामाजिक सहानुभूति एवं संवेदनशीलता का परिचय देखने को मिला।
न्यायमूर्ति र्कोण मुखोपाध्याय के आवासीय परिसर में आयोजित यह भेट-कार्यक्रम सार्वजनिक जीवन में संवदेनशीलता और सम्मान की परंपरा का प्रतीक रहा। मुख्यमंत्री ने कहा कि इस समय परिवार को एकजुटता, शांति एवं सहयोग की आवश्यकता है – ऐसे समय में हर शब्द और हर संवाद महत्वपूर्ण होता है।
शोक जताते हुए उन्होंने यह भी कहा कि समाज के उच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों द्वारा इस तरह के संवेदनशील कदम से यह संदेश जाता है कि सार्वजनिक जीवन और मानवीय संबद्धता के बीच कोई बाधा नहीं होती। वे आगे बोले कि रहनुमाओं को केवल प्रशासनिक जिम्मेदारी तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि मानवीय संवेदनशीलता को भी अपना मार्गदर्शक बनाना चाहिए।
मुख्यमंत्री के इस संक्षिप्त लेकिन महत्वपूर्ण समारोह को स्थानीय प्रशासन, न्यायपालिका एवं परिवारजनों द्वारा ध्यानपूर्वक आयोजित किया गया। इस अवसर पर कुछ वरिष्ठ न्यायाधीशों, वकील समुदाय एवं राजनैतिक प्रतिनिधियों ने भी उपस्थित रहकर शोक व्यक्त किया।
न्यायमूर्ति र्कोण मुखोपाध्याय इस समय अपने व्यक्तिगत दुःख में हैं, लेकिन मुख्यमंत्री की यह कदम उन्हें तथा उनके परिवार को सामाजिक-मानविक समर्थन का अहसास कराता है। ऐसा समय होता है जब शब्दों से अधिक संवेदनाएं बोलती हैं और यह समारोह उसी भाव को अभिव्यक्त करता है।
यह श्रद्धांजलि समारोह यह भी याद दिलाता है कि सार्वजनिक जीवन में मानवीय रहने का अर्थ सिर्फ कर्तव्य नहीं, बल्कि साझा दुःख-संसाधन, सहानुभूति और सामाजिक समवेदना है। मुख्यमंत्री द्वारा इस तरह की पहल से समाज में सम्मान, दयालुता और एकता का वातावरण बनता है।
अंत में, हम पुनः रीना मुखर्जी जी की आत्मा की शांति एवं मुखोपाध्याय परिवार को इस कठिन समय में धैर्य एवं शक्ति की कामना करते हैं। ऐसी पहलें याद दिलाती हैं कि संवेदनशीलता और सहयोग की भावना से ही सार्वजनिक जीवन सार्थक बनता है।