सनातन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का अत्यंत विशेष महत्व बताया गया है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को कार्तिक पूर्णिमा कहा जाता है। यह दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों के पूजन का अत्यंत शुभ अवसर माना जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दीपदान और व्रत करने से असीम पुण्य की प्राप्ति होती है। इसे त्रिपुरी पूर्णिमा या देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने तीन असुरों – तारकासुर, कामलाक्ष और विद्युन्माली – का वध करके देवताओं को उनके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। इन तीनों दानवों ने भगवान ब्रह्मा की तपस्या करके अमरता का वर प्राप्त किया था और आकाश में तीन नगरों (त्रिपुर) का निर्माण कराया था। उनके अत्याचार से देवता, मनुष्य और ऋषि-मुनि सभी परेशान हो उठे।
भगवान शिव कैसे बने त्रिपुरारी
जब त्रिपुर नामक तीन नगरों से असुरों का आतंक बढ़ गया, तब सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और प्रार्थना की कि वे इस संकट से मुक्ति दिलाएं। तब भगवान शिव ने अपने धनुष ‘पिनाक’ पर अग्नि के बाण चढ़ाकर उन तीनों नगरों का एक ही बाण से विनाश कर दिया। इसी कारण भगवान शिव को ‘त्रिपुरारी’ कहा गया।
इस घटना के घटित होने का दिन कार्तिक पूर्णिमा का दिन ही था। इसलिए इस तिथि को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव के साथ-साथ श्री हरि विष्णु की भी पूजा का विधान है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन गंगा स्नान, दीपदान और व्रत करता है, उसे समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

देव दीपावली का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा के दिन काशी नगरी में देव दीपावली का भव्य आयोजन किया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन स्वयं देवता गंगा जी में आकर दीप जलाते हैं। इसीलिए इसे देवताओं की दीपावली कहा जाता है। लाखों श्रद्धालु इस दिन गंगा तट पर दीपदान करते हैं और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजन करते हैं।
इस दिन क्या करें
इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करें। इसके बाद भगवान शिव, विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करें। दीपदान करने से घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है। जरूरतमंदों को दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
कथा से मिलने वाला संदेश
कार्तिक पूर्णिमा की कथा यह सिखाती है कि अहंकार और अत्याचार का अंत निश्चित है। सत्य, धर्म और भक्ति की सदैव विजय होती है। भगवान शिव ने देवताओं और सृष्टि की रक्षा के लिए त्रिपुरासुरों का विनाश किया और धर्म की पुनर्स्थापना की।
इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं, पुराणों और ज्योतिषीय विश्वासों पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल सामान्य जानकारी प्रदान करना है। पाठक अपनी श्रद्धा और विश्वास के अनुसार इसका पालन करें। किसी भी धार्मिक आचरण या व्रत से पहले अपने पंडित या धर्मगुरु से सलाह अवश्य लें।
