झारखंड की राजनीति और प्रशासनिक तंत्र से जुड़ा एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसमें राज्य के मुख्यमंत्री के नाम का इस्तेमाल करते हुए कर्नाटक के डिप्टी सीएम को फर्जी कॉल किया गया। इस कॉल में न केवल सरकारी प्रोटोकॉल को तोड़ा गया, बल्कि यह सुरक्षा एजेंसियों के लिए भी बड़ा सिरदर्द बन गया है। घटना सामने आने के बाद पुलिस ने पूरे मामले की जांच शुरू कर दी है और अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है।

सूत्रों के अनुसार, कॉल करने वाले शख्स ने खुद को झारखंड के मुख्यमंत्री का प्रतिनिधि बताया और कर्नाटक के डिप्टी सीएम से कुछ विशेष ‘सरकारी मामलों’ पर तुरंत बातचीत की इच्छा जताई। हालांकि कर्नाटक के डिप्टी सीएम के कार्यालय को कॉल के दौरान कुछ संदिग्ध गतिविधियों और भाषा-शैली पर शक हुआ। उन्होंने तुरंत इस कॉल की पुष्टि के लिए झारखंड सीएम कार्यालय से संपर्क किया। वहीं से खुलासा हुआ कि कॉल पूरी तरह फर्जी था और ऐसा कोई निर्देश मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा नहीं दिया गया था।
इस घटना के सामने आते ही दोनों राज्यों की सुरक्षा एजेंसियों ने इसे गंभीरता से लिया।
फर्जी कॉल का पूरा मामला – कैसे हुआ खुलासा?
प्राप्त जानकारी के अनुसार, कॉल करने वाले व्यक्ति ने कर्नाटक के डिप्टी सीएम को प्रोटोकॉल से हटकर बातचीत की कोशिश की। उसने दावा किया कि बातचीत अत्यंत गोपनीय है और यह मुख्यमंत्री स्तर की चर्चा है। फोन की भाषा, कॉलर की आवाज और बयानबाजी पर संदेह होने के बाद डिप्टी सीएम कार्यालय ने तुरंत एमरजेंसी सिक्योरिटी प्रोटोकॉल लागू किया।
इसके बाद कॉल की जांच शुरू की गई और झारखंड सीएम कार्यालय से संपर्क किया गया। झारखंड की ओर से साफ कहा गया कि ऐसा कोई कॉल उनके कार्यालय द्वारा अधिकृत नहीं था। यहीं से फर्जीवाड़े का पर्दाफाश हुआ।
इस तरह की घटनाएँ क्यों बढ़ रही हैं?
साइबर अपराधों और डिजिटल धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों के बीच सरकारी पदों और संवैधानिक पदों के दुरुपयोग की घटनाएँ भी तेजी से बढ़ी हैं। कई बार अपराधी सरकारी अधिकारियों के नाम का इस्तेमाल करके गलत जानकारी, लाभ या गुप्त सूचनाएं हासिल करने की कोशिश करते हैं। यह मामला भी उसी दिशा में एक गंभीर संकेत है।
यह घटना न केवल राज्यों के बीच संचार सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम जैसे हाई प्रोफाइल पद भी साइबर धोखाधड़ी से अछूते नहीं हैं।
पुलिस ने दर्ज किया मामला, जांच कई दिशाओं में
झारखंड पुलिस ने अज्ञात नंबर और कॉलर के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। तकनीकी सेल को फोन नंबर, लोकेशन, कॉल रिकॉर्ड और संबंधित डिजिटल ट्रेल की जांच के लिए लगाया गया है।
कर्नाटक पुलिस भी अपने स्तर पर इस बात की जांच कर रही है कि यह सिर्फ मजाक था, राजनीतिक शरारत, या फिर किसी बड़े षड्यंत्र की शुरुआत।
दोनों राज्य अब संयुक्त जांच की संभावनाओं पर भी विचार कर रहे हैं ताकि अपराधी तक जल्द पहुंचा जा सके।
राजनीतिक गलियारों में हलचल
इस घटना के सामने आने के बाद राजनीतिक हलकों में भी हलचल मच गई है। विपक्ष ने इसे सुरक्षा व्यवस्था की बड़ी चूक बताते हुए सरकार पर सवाल उठाए हैं। वहीं सरकार का कहना है कि मामला अत्यंत गंभीर है और अपराधी को जल्द पकड़ लिया जाएगा।
झारखंड में विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि सरकारी सुरक्षा प्रोटोकॉल को मजबूत किए बिना इस प्रकार की घटनाओं को रोका नहीं जा सकता। वहीं ruling पार्टी ने विपक्ष के बयानों को राजनीति प्रेरित बताया।
कर्नाटक और झारखंड की सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट
कर्नाटक के डिप्टी सीएम कार्यालय ने इस मामले को देखते हुए सभी हाई-लेवल कॉल्स और संचार चैनलों को और कड़ा कर दिया है। अब किसी भी VIP स्तर की बातचीत को पहले सत्यापन, डिजिटल सिग्नेचर या डायरेक्ट वेरिफिकेशन प्रोटोकॉल से गुजरना होगा।
झारखंड सरकार ने भी अन्य राज्यों को सतर्क रहने और इस प्रकार की घटनाओं से बचने के लिए सुरक्षा दिशानिर्देश जारी करने की तैयारी कर ली है।
क्या कहता है कानून?
किसी सरकारी अधिकारी या संवैधानिक पदधारी के नाम का दुरुपयोग करना, फर्जी पहचान का इस्तेमाल करना, और किसी राज्य सरकार के काम में बाधा डालना भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत गंभीर अपराध है।
IPC की धारा 419 (धोखाधड़ी), 420 (जालसाजी), 468 (फर्जी दस्तावेज), 471 (फर्जी पहचान का उपयोग) और IT Act की कई धाराएँ इस मामले में लागू हो सकती हैं।
यह सायबर सुरक्षा का बड़ा अलर्ट क्यों है?
इस घटना ने एक बार फिर संकेत दिया है कि डिजिटल युग में सरकारी विभागों की सुरक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी किसी नागरिक की निजी सुरक्षा।
अपराधी सिर्फ बैंक अकाउंट, ओटीपी या सोशल मीडिया तक सीमित नहीं हैं—अब वे सरकारी संचार चैनलों का भी दुरुपयोग करने लगे हैं।
ऐसे में सरकार के स्तर पर सशक्त सुरक्षात्मक उपायों और डिजिटल वेरिफिकेशन सिस्टम की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है।
झारखंड के मुख्यमंत्री के नाम पर कर्नाटक के डिप्टी सीएम को किया गया फर्जी कॉल महज एक फोन कॉल नहीं, बल्कि प्रशासनिक सुरक्षा व्यवस्था के लिए चेतावनी है।
यह घटना दिखाती है कि साइबर अपराधियों की पहुंच कितनी गहरी और खतरनाक हो सकती है।
अब देखना यह है कि जांच एजेंसियाँ कितनी जल्दी अपराधी को पकड़ पाती हैं और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या ठोस कदम उठाए जाते हैं।
