
Deoghar: पार्वती मंदिर स्थित माँ त्रिपुरसुंदरी व जय दुर्गा की पूजा का है विशेष महत्व-तीर्थपुरोहित
शिव और शक्ति मंदिर, गठबंधन की है परंपरा
देवघर। सावन का पावन महीना चल रहा है, सभी देवालयों में भक्तों की भीड़ लगातार उमड़ रही है।
ऐसा ही कुछ नजारा देवघर के श्रावणी मेला में भी देखने को मिल रहा है। जहां लाखों की संख्या में भक्त उत्तर वाहिनी गंगा सुलतान गंज से कांवर में जल लेकर पैदल यात्रा कर बाबा नगरी द्वादश ज्योतिर्लिंग का अभिषेक कर रहें हैं।
वैसे भी बाबा बैधनाथ की महिमा अपरंपार है।देवघर स्थित बाबा मंदिर प्रांगण में कुल 21 देवी देवताओं की मंदिर है और सभी मंदिरों की अपनी अपनी शक्ति और लोगों की आस्था है। कहते हैं देवघर के ज्योतिर्लिंग विश्व मे एक मात्र ऐसा महादेव की मंदिर है जहां बाबा के साथ माँ पार्वती भी विराजमान हैं।
इसलिए इस स्थल को शक्तिपीठ की भी मान्यता है।धार्मिक गर्न्थो के अनुसार देवघर में ही सती का हृदय गिरा था, इसलिए इसे हृदया पीठ भी कहते हैं।
भक्तों की मनोकामना पूरा करनें वाले महादेव की लिंग को मनोकामना लिंग भी कहा जाता है। बाबा और मां पार्वती मंदिर में गठबन्धन की भी वर्षों पुरानी परंपरा है भक्तों की मनोकामना पूरा होनें पर नव विवाहित जोड़ी एक साथ गठजोड़ कर बाबा मंदिर और पार्वती मंदिर में गठबन्धन करते हैं।
पार्वती मंदिर महादेव की मंदिर से काफी ऊंचे स्थान में है बावजूद संध्या श्रृंगार के बाद पार्वती मंदिर के बरामदे से जब आप देखेंगे तो मां और बाबा ठीक एक दूसरे के सामने अवलोकित होते हैं इसे मंदिर निर्माण में की गई वास्तु शास्त्र का खेल कहा जाता है। मां पार्वती मंदिर में भी उतनी ही भक्तों की भोड़ जुटती है जितना बाबा मंदिर में।कहते हैं शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं।
इस मंदिर में मां पार्वती के दो रूपों के दर्शन होते हैं जिनमें बाई ओर माँ त्रिपुरसुंदरी व दाई ओर माँ जय दुर्गा के रूप के दर्शन होते हैं। यह दोनों देवियां बैधनाथ तीर्थ की अधिष्ठात्री देवी जय दुर्गा है।बाबा की पूजा के बाद मां पार्वती मंदिर स्थित माँ त्रिपुर सुंदरी व माँ जय दुर्गा के पूजा का अधिक महत्व कहा गया है।
यहां पर मां शक्ति की तांत्रिक विधि से पूजा की जाती है भक्त सालों भर माँ शक्ति की पूजा कर सकते हैं केवल आश्विन मास के नव रात्र के समय भक्त चार दिनों तक पूजा नहीं कर सकते हैं।जो नव रात्र के सप्तमी तिथि से नवमी तिथि तक, दशमी तिथि दोपहर विशेष पूजा के उपरांत भक्त पूजा कर सकते हैं।
इस मंदिर में प्रवेश करते ही तीर्थपुरोहित के वंशज माँ पार्वती के प्रांगण में अपने यजमान को संकल्प पूजा कराने के लिए अपनी गद्दी पर रहते हैं।