
Deoghar: झामुमो नेता शशांक शेखर भोक्ता के क्षेत्र भ्रमण से चर्चाओं का बाजार गर्म
देवघर। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष शशांक शेखर भोक्ता का गांवो में जनसम्पर्क और भ्रमण कार्यक्रम से सारठ विधानसभा में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है।
2014 चुनाव में पराजय के बाद और 2019 में पार्टी द्वारा टिकट काट दिए जाने से पिछले दस बर्षो से छिटपुट जनसम्पर्क और भ्रमण पर रहते थे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष शशांक शेखर भोक्ता। लेकिन पिछले कुछ दिनों से लगातार अपनी सक्रियता बढ़ा देने से क्षेत्र में यह कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी इसबार शशांक शेखर भोक्ता पर दाव लगा सकती है।
कयासों पर मोहर इसलिए भी लगाए जा रहे हैं कि खुद शशांक शेखर भोक्ता ने कई सार्वजनिक जगह पर कहा है कि पार्टी अगर टिकट नहीं देती है तो चुनाव नहीं लड़ुंगा। चौक चौराहे पर यह बात की जा रही जनसम्पर्क और भ्रमण जरूर किसी आश्वासन के बाद ही शुरू किया गया है।
इस संबंध में पूछे जाने पर जिला मीडिया प्रभारी राम मोहन चौधरी ने कहा कि कई बार ऐसे मौके आए जब शशांक शेखर भोक्ता पार्टी छोड़ सकते थे लेकिन गुरुजी शिबू सोरेन के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास ने इन्हें जकड़ रखा है।
1995 में टिकट लगभग तय था क्योंकि 1994 में आर्थिक नाकेबंदी के समय आतातायियों द्वारा इनके निकट सहयोगी मजदूर नेता श्याम सुंदर सिंह की हत्या कर दी थी उसके बाद गुरुजी ने टिकट का आश्वासन भी दिया था पर 1995 चुनाव के पूर्व पार्टी के तत्कालीन केन्द्रीय उपाध्यक्ष सूरज मंडल ने तीसरी बार भी शिबू सोरेन से प्रो आबुतालिब अंसारी को टिकट दिलवाया।
शशांक शेखर भोक्ता ने पार्टी पर भरोसा जताते हुए प्रो आबुतालिब अंसारी के साथ तन मन धन से सहयोग किया और दिल से आबुतालिब अंसारी का प्रचार किया। हलांकि वे चुनाव हार गए और उन्होंने ही बर्ष 2000 के चुनाव के लिए शशांक शेखर भोक्ता के नाम का समर्थन किया। बर्ष 2000 में चुनाव जीते।
नवम्बर 2000 में झारखंड राज्य अलग होने के बाद भाजपा की सरकार बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बनी और अन्तर्कलह से 2003 में गिर गई।
उस समय भी शशांक शेखर भोक्ता पर डोरा डालने का प्रयास भाजपा द्वारा किया गया था। मंत्री पद का प्रस्ताव भी मिला था लेकिन इनके अटल फैसले से पार्टी टूट से बचा था।
2019 में पार्टी ने टिकट से बंचित रखा पर शशांक शेखर भोक्ता ने पार्टी नहीं छोड़ा। यही आस्था और पार्टी के प्रति वफादारी आज सबपर भारी है। क्षेत्र में शशांक शेखर भोक्ता के प्रति एक अलग उत्साह है और सारठ की जनता परिवर्तन के मुड में है।
दस बर्षो से आदीवासी, दलित और अल्पसंख्यक ठगा सा महसूस कर रहा है। पिछले चुनाव में पार्टी का जमानत जब्त हो जाने से पार्टी भी फूकफुक कर कदम रखना चाहेगी।
बहरहाल झामुमो के टिकट के कई दावेदार है पर शशांक शेखर भोक्ता के एकाएक सक्रियता से सबके माथे पर सिकन पैदा कर दी है। आने वाला समय बताएगा कि पार्टी किसपर भरोसा करती है।