
मालेगांव 2008 ब्लास्ट केस में सभी आरोपी बरी: कोर्ट ने कहा- सबूत नाकाफी, 16 साल बाद आया फैसला
मुंबई | 16 साल के लंबे इंतजार के बाद मालेगांव 2008 बम धमाके मामले में मुंबई की स्पेशल एनआईए कोर्ट ने शुक्रवार को बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने इस बहुचर्चित केस में सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया।
कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि प्रॉसिक्यूशन (अभियोजन पक्ष) ठोस और वैधानिक रूप से स्वीकार्य सबूत पेश नहीं कर पाया, जिससे यह साबित हो सके कि आरोपियों का धमाके से कोई सीधा संबंध था।
इस फैसले ने न सिर्फ कानूनी, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी बड़ी हलचल मचा दी है।
क्या था मालेगांव 2008 ब्लास्ट मामला?
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में शाम के वक्त दो बम धमाके हुए थे। यह धमाके एक मस्जिद के पास भीड़भाड़ वाले इलाके में हुए, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
शुरुआती जांच महाराष्ट्र एटीएस ने की, जिसके बाद मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपा गया। जांच के दौरान हिंदू उग्रवाद शब्द सामने आया और इस केस में कई पूर्व सैन्य अफसर, साधु-संत और दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़े लोग आरोपी बनाए गए।
कोर्ट में क्या हुआ?
स्पेशल एनआईए कोर्ट में इस केस की सुनवाई करीब 8 साल तक चली। अभियोजन पक्ष ने 323 गवाहों को कोर्ट में पेश किया, लेकिन उनमें से 34 गवाह मुकर गए।
जज ए.के. लहोटी ने फैसला सुनाते हुए कहा,
> “अभियोजन ऐसा कोई ठोस और स्पष्ट सबूत नहीं दे पाया, जिससे आरोपियों की भूमिका कानूनी तौर पर साबित की जा सके। इसलिए सभी आरोपियों को संदेह का लाभ दिया गया और बरी कर दिया गया है।”
कौन-कौन थे आरोपी?
इस मामले में बरी हुए आरोपियों में ये प्रमुख नाम शामिल हैं:
1. साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर – फिलहाल बीजेपी सांसद
2. लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित – भारतीय सेना के अधिकारी
3. सुहास तवरेकर
4. अजयराहिरकर
5. मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय
6. सुधाकर चतुर्वेदी
7. समीर कुलकर्णी
इन सभी को अब कोर्ट ने क्लीन चिट दे दी है।
फैसले के बाद प्रतिक्रियाएं
फैसले के तुरंत बाद राजनीतिक गलियारों में प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई।
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने कहा, “यह न्याय की जीत है और उन झूठों की हार है, जो सालों तक हमें बदनाम करते रहे।”
एनआईए की तरफ से अभी कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन संभावना है कि एजेंसी इस फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील कर सकती है।
कांग्रेस समेत कुछ विपक्षी दलों ने फैसले पर सवाल उठाए हैं और जांच में ‘सिस्टमेटिक फेलियर’ की बात कही है।
क्या यह राजनीतिक मामला था?
2008 से लेकर अब तक इस केस में कई राजनीतिक मोड़ आए। कई बार आरोप लगाए गए कि जांच एजेंसियों ने राजनीतिक दबाव में काम किया।
इस केस की जांच के दौरान ‘भगवा आतंक’ शब्द चर्चा में आया, जो बाद में एक राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन गया।
समाज पर असर
मालेगांव बम धमाके का असर न सिर्फ पीड़ित परिवारों पर पड़ा, बल्कि समाज में भी धार्मिक ध्रुवीकरण का कारण बना।
पीड़ित परिवारों ने अब सवाल उठाए हैं कि
> “अगर कोई दोषी नहीं था, तो फिर हमारे परिजन मारे कैसे गए? क्या हमें कभी इंसाफ मिलेगा?”
क्या होगा आगे?
विशेषज्ञों का मानना है कि NIA को अब इस फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील करनी पड़ सकती है, क्योंकि यह मामला ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ से जुड़ा है।
कानूनी जानकारों के अनुसार, अगर ऊपरी अदालत में यह सिद्ध हुआ कि जांच में गंभीर खामियां थीं, तो संबंधित अफसरों के खिलाफ भी कार्रवाई की जा सकती है।
मालेगांव केस में आए इस फैसले ने एक बार फिर भारतीय न्याय प्रणाली, जांच एजेंसियों और राजनीतिक हस्तक्षेप पर बड़े सवाल खड़े किए हैं।
16 साल लंबी लड़ाई के बाद जब सभी आरोपी बरी हो गए, तो यह पीड़ितों और समाज – दोनों के लिए एक दर्दनाक और जटिल मोड़ है।
अब सभी की नजरें NIA की अगली कार्रवाई और संभावित अपील पर टिकी हैं।