
धर्मांतरण और लव जिहाद को लेकर देशभर में चल रही तीखी बहस के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक अहम फैसले ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि अगर दो लोग अलग-अलग धर्मों से हैं और बिना धर्म परिवर्तन के शादी करते हैं, तो ऐसी शादी को कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती। यह फैसला संविधान की धारा 494 और विशेष विवाह अधिनियम के आलोक में आया है, और इस पर राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक स्तर पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक केस की सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर कोई व्यक्ति विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act) के प्रावधानों का पालन किए बिना ही अंतरधार्मिक विवाह करता है, तो वह अवैध मानी जाएगी। कोर्ट के मुताबिक, धर्म परिवर्तन के बिना ऐसी शादी भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत अपराध की श्रेणी में आएगी, जो दोहरी शादी (बिगैमी) के खिलाफ है।
यह फैसला उस याचिका पर आया, जिसमें एक महिला ने दावा किया था कि उसने एक मुस्लिम पुरुष से शादी की है, जबकि दोनों ने धर्म परिवर्तन नहीं किया था और शादी मुस्लिम रीति-रिवाजों से हुई थी।
1 फैसले के प्रमुख बिंदु:
. अंतरधार्मिक विवाह के लिए धर्म परिवर्तन जरूरी नहीं, लेकिन प्रक्रिया जरूरी:
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर धर्म परिवर्तन नहीं किया गया है, तो ऐसी शादी विशेष विवाह अधिनियम के तहत होनी चाहिए। यदि वह भी नहीं हुआ, तो यह शादी मान्य नहीं मानी जाएगी।
2. धारा 494 का हवाला:
कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 494 (दूसरी शादी करने पर सजा) का हवाला देते हुए कहा कि बिना पहली शादी को खत्म किए या वैध प्रक्रिया के बिना दूसरी शादी करना अपराध है।
3. लव जिहाद के संदर्भ में अहम फैसला:
यह फैसला ऐसे समय पर आया है जब ‘लव जिहाद’ को लेकर कई राज्य सरकारें कानून बना चुकी हैं और सामाजिक स्तर पर यह विषय अत्यंत संवेदनशील हो चुका है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं:
कोर्ट के इस फैसले पर राजनीतिक गलियारों में भी हलचल है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कई नेताओं ने फैसले का स्वागत किया है और इसे “संविधान और सामाजिक संरचना की रक्षा” की दिशा में एक मजबूत कदम बताया है। वहीं, विपक्षी दलों ने इस फैसले को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संविधान द्वारा दिए गए विवाह के अधिकारों के खिलाफ बताया है।
कांग्रेस नेता का कहना है कि यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 21 – यानी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार – के विपरीत जाता है।
बीजेपी नेताओं ने कहा कि यह फैसला देश में ‘लव जिहाद’ जैसी साजिशों पर नकेल कसने वाला है।
कानूनी विशेषज्ञों की राय:
कानूनी जानकारों के अनुसार, कोर्ट ने उस स्थिति को रेखांकित किया है जब शादी ना तो विशेष विवाह अधिनियम के तहत होती है और ना ही धर्म परिवर्तन के बाद धर्मानुसार होती है, तब उसका कोई कानूनी अस्तित्व नहीं रहता। यह फैसला उन लोगों को कानूनी चेतावनी है जो धार्मिक रीति-रिवाजों को नजरअंदाज कर केवल सामाजिक शादी को ही पर्याप्त मानते हैं।
सामाजिक दृष्टिकोण और विरोधाभास:
भारत में विवाह न केवल एक व्यक्तिगत निर्णय है, बल्कि सामाजिक, धार्मिक और पारिवारिक ताने-बाने से जुड़ा मसला भी है। इस फैसले से अंतरधार्मिक प्रेम विवाह करने वाले युवाओं में चिंता देखी जा रही है।
कई मानवाधिकार संगठनों और स्वतंत्र विचारधारा वाले समूहों ने फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इससे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और दो वयस्कों की सहमति के अधिकारों पर चोट पहुंचती है।
पृष्ठभूमि: क्या है लव जिहाद?
‘लव जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल कुछ दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा उस कथित प्रयास के लिए किया जाता है, जिसमें मुस्लिम युवक हिंदू लड़कियों से प्रेम विवाह कर उनका धर्म परिवर्तन कराते हैं। हालाँकि अदालतों और जांच एजेंसियों ने कई मामलों में ऐसे आरोपों के प्रमाण नहीं पाए हैं, लेकिन यह मुद्दा फिर भी राजनीतिक रूप से गरमाया रहता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला सिर्फ कानूनी पहलुओं को नहीं छूता, बल्कि यह समाज में चल रहे धर्म, प्रेम और विवाह के जटिल रिश्तों पर भी गहरा असर डालता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट या अन्य उच्च न्यायालय इस फैसले की समीक्षा करते हैं या नहीं। वहीं, यह फैसला निश्चित रूप से अंतरधार्मिक प्रेम विवाहों पर कानूनी और सामाजिक बहस को और तेज कर देगा।
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