
“धरती से जुड़ाव की मिसाल”: बाबूलाल मरांडी बने किसान, पैतृक गांव में की धनरोपनी, बोले- खेती से मिलती है आत्मसंतुष्टि।
झारखंड बीजेपी अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने बुधवार को अपने एक अलग ही रूप से सबको चौंका दिया। वे अपने पैतृक गांव कोदाइबांक (गिरिडीह जिला) में एक आम किसान की तरह खेतों में उतरते नजर आए और खुद अपने हाथों से धनरोपनी (धान की बुआई) की। इस दृश्य की तस्वीरें उन्होंने स्वयं सोशल मीडिया पर साझा कीं, जो तेजी से वायरल हो रही हैं।
बाबूलाल मरांडी ने तस्वीर के साथ कैप्शन में लिखा,
“खेती-किसानी करना मुझे बेहद अच्छा लगता है। इससे मुझे आत्मसंतुष्टि मिलती है और जीवन के असली मायनों का अहसास होता है।”
गौरतलब है कि मंगलवार को वे अपने गांव कोदाइबांक पहुंचे थे। गांव के खेतों में परंपरागत तरीके से धान रोपते हुए वे बिल्कुल सामान्य किसान की तरह नजर आए। उन्होंने नंगे पांव खेत में उतरकर कीचड़ में काम किया और आसपास के किसानों से हालचाल भी जाना।
स्थानीय ग्रामीणों ने उन्हें अपने बीच पाकर बेहद खुशी जताई। कई लोगों ने कहा कि बाबूलाल मरांडी आज भी जमीन से जुड़े नेता हैं और राजनीति के साथ-साथ अपने गांव, खेत और मिट्टी से भी जुड़ाव बनाए रखते हैं।
उनकी यह पहल सिर्फ एक प्रतीकात्मक कार्य नहीं, बल्कि एक मजबूत संदेश भी देती है—कि राजनीति में रहते हुए भी अपनी जड़ों से जुड़ाव न खोया जाए।
बाबूलाल मरांडी पहले भी कई बार अपने गांव जाकर कृषि कार्यों में भाग लेते रहे हैं। इससे पहले भी वे बुवाई, कटाई, हल चलाना जैसे कार्यों में हाथ बंटा चुके हैं।
खेती-किसानी के प्रति बढ़ता रुझान
मरांडी की यह पहल युवाओं और आम लोगों के लिए एक प्रेरणा बन सकती है। आज के दौर में जब खेती-किसानी को संघर्ष का क्षेत्र माना जाता है, ऐसे में एक वरिष्ठ नेता का यह कदम यह संदेश देता है कि खेती सिर्फ जीविका नहीं, एक संस्कार और संस्कृति है।
बाबूलाल मरांडी की यह पहल बताती है कि सच्चा नेता वही होता है जो जनता से जुड़ा हो, और उनकी मेहनत को समझता हो। उनकी यह तस्वीरें न केवल सोशल मीडिया पर सराही जा रही हैं, बल्कि यह उदाहरण भी बन रही हैं कि मिट्टी से जुड़ाव ही सच्चे नेतृत्व की पहचान है।