
25 जून को आषाढ़ अमावस्या: हल और कृषि उपकरणों की पूजा का पर्व, पेड़ लगाने की परंपरा और पितरों के लिए विशेष महत्व।
बुधवार, 25 जून 2025 को आषाढ़ मास की अमावस्या, जिसे हलहारिणी अमावस्या के नाम से जाना जाता है, विशेष श्रद्धा और आस्था के साथ मनाई जाएगी। यह पर्व मुख्य रूप से किसानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस दिन वे अपने हल, बैल और कृषि उपकरणों की विधिवत पूजा करते हैं। यह पर्व खेती की परंपरा, प्रकृति और पर्यावरण के प्रति आभार प्रकट करने का प्रतीक है।
किसानों के लिए महापर्व
इस दिन किसान पारंपरिक रूप से हल से खेत जोतते हैं और बीज बोने की शुरुआत करते हैं। हलहारिणी अमावस्या को वर्षा ऋतु की शुरुआत के रूप में भी देखा जाता है और इसे नई फसल की तैयारी के लिए श्रेष्ठ समय माना जाता है। किसान इस दिन खेतों की पूजा करके आने वाली फसल की समृद्धि और अच्छी वर्षा की कामना करते हैं।
धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यता
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, हलहारिणी अमावस्या पर केवल कृषि उपकरणों की पूजा ही नहीं, बल्कि पितरों के लिए धूप-ध्यान, तर्पण, और दान-पुण्य करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए ध्यान और श्रद्धा से किए गए कार्य पुण्यफल प्रदान करते हैं।
पौधारोपण की परंपरा
इस पावन दिन का एक विशेष पहलू पौधारोपण भी है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, किसी सार्वजनिक स्थान या खेत के किनारे पर छायादार पेड़ का पौधा लगाना न केवल पुण्यदायी होता है, बल्कि पर्यावरण के संरक्षण में भी सहायक है। इसके साथ ही, पौधे की देखभाल का संकल्प लेना भी जरूरी माना गया है, ताकि वह वृक्ष बने और आने वाली पीढ़ियों को छाया, ऑक्सीजन और पर्यावरण संतुलन दे सके।
जानिए आषाढ़ अमावस्या पर कौन-कौन से शुभ काम किए जा सकते हैं:
हल, बैल और अन्य कृषि उपकरणों की पूजा।
खेतों में हल चलाकर बीज बोना।
पितरों के लिए जल तर्पण और ध्यान।
छायादार और फलदार पौधों का रोपण।
जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और छाता दान करना।
नदी या सरोवर में स्नान कर पुण्य अर्जित करना।
घर के बड़े-बुजुर्गों से आशीर्वाद लेना और सेवा करना।
हलहारिणी अमावस्या न केवल कृषि परंपरा का उत्सव है, बल्कि यह दिन प्रकृति से जुड़ाव, पितरों के प्रति सम्मान, और मानवता के लिए सकारात्मक कर्मों को समर्पित है। इस दिन अगर हम हल की पूजा करें, बीज बोएं, पितरों को याद करें और एक पेड़ लगाकर उसकी सेवा का संकल्प लें, तो न केवल हमारी खेती और पर्यावरण समृद्ध होंगे, बल्कि हमारा जीवन भी पुण्य और शांति से भर जाएगा।
डिस्क्लेमर:
यह लेख धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं पर आधारित है। इसमें दी गई जानकारियां प्रचलित जनमान्यताओं, ज्योतिषीय मतों और धार्मिक परंपराओं पर आधारित हैं। पाठकों से अनुरोध है कि किसी भी धार्मिक क्रिया या पूजन विधि को अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ या परिवार के वरिष्ठ सदस्यों से परामर्श अवश्य लें।