
बाबूलाल मरांडी का कांग्रेस-झामुमो पर तीखा हमला: “धर्मांतरण नहीं रुका तो कौन भरेगा सरना धर्म कोड?”
झारखंड भाजपा अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने मंगलवार को रांची स्थित हरमू के प्रदेश भाजपा कार्यालय में पत्रकारों से बातचीत के दौरान कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) पर तीखा हमला बोला। उन्होंने आदिवासी समाज की पहचान, संस्कृति और धर्म को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अगर धर्मांतरण पर रोक नहीं लगाई गई, तो सरना धर्म कोड भरने वाला कोई नहीं बचेगा।
मरांडी ने कांग्रेस और झामुमो पर सवाल उठाते हुए कहा कि वे सरना कोड की मांग तो कर रहे हैं, लेकिन अगर वास्तव में उन्हें आदिवासियों की धर्म-संस्कृति की चिंता है, तो उन्हें पहले धर्मांतरण को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। उन्होंने स्पष्ट कहा कि “जब तक सरना आदिवासियों की परंपरा, धर्म और संस्कृति नहीं बचेगी, तब तक सरना धर्म कोड भरने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।”
जनगणना के आंकड़ों के साथ पेश किए तर्क
बाबूलाल मरांडी ने 2011 की जनगणना का हवाला देते हुए कहा कि झारखंड की कुल जनसंख्या उस समय 3,29,88,134 थी, जिसमें 86,45,042 आदिवासी थे, जो राज्य की कुल जनसंख्या का 26.20 प्रतिशत हैं। उन्होंने आगे कहा कि इस आदिवासी आबादी में से 14,18,608 लोग ईसाई धर्म अपना चुके थे, जो कुल आदिवासी जनसंख्या का 15.48 प्रतिशत बनता है।
उन्होंने इसे जातिवार विश्लेषण करते हुए बताया कि
उरांव जनजाति के 26%
मुंडा (पातर मुंडा सहित) जनजाति के 33%
संताल जनजाति के 0.85%
हो जनजाति के 2.14%
और खड़िया जनजाति के 67.92% लोग ईसाई बन चुके हैं।
इस डेटा के जरिए मरांडी ने यह सवाल खड़ा किया कि जब इतनी बड़ी संख्या में आदिवासी धर्म परिवर्तन कर चुके हैं, तो सरना धर्म कोड भरने वाले आखिर बचेंगे कितने? उन्होंने कहा, “सरना धर्म कोड वही भर सकता है जो सरना स्थल, मारांग बुरू, जाहिर थान जैसी परंपराओं में विश्वास रखता हो। जब ये परंपराएं और श्रद्धा ही खत्म हो जाएंगी, तो धर्म कोड की जरूरत ही क्यों रह जाएगी?”
आयुष्मान भारत योजना पर भी उठाए सवाल
बाबूलाल मरांडी ने हेमंत सोरेन सरकार पर स्वास्थ्य सेवाओं को कमजोर करने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार केंद्र की प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत योजना को खत्म करने की साजिश कर रही है। मरांडी ने बताया कि झारखंड सरकार ने इस योजना का नाम तो बदला ही है, साथ ही ग्रामीण क्षेत्र में 30 बेड और शहरी क्षेत्र में 50 बेड वाले अस्पतालों को योजना में शामिल करने की अनिवार्यता भी जोड़ दी है।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने इस योजना के तहत 10 बेड वाले अस्पतालों को भी मान्यता दी है, ताकि अधिक से अधिक लोगों को इसका लाभ मिल सके। लेकिन राज्य सरकार के नए नियम ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अव्यवहारिक हैं और इसका उद्देश्य छोटे अस्पतालों को योजना से बाहर कर बड़े अस्पतालों को लाभ पहुंचाना है।
सरना कोड के बहाने राजनीतिक तीर
बाबूलाल मरांडी का यह बयान एक बार फिर यह दर्शाता है कि झारखंड की राजनीति में आदिवासी अस्मिता और धर्म परिवर्तन जैसे मुद्दे लगातार केंद्र में बने हुए हैं। उन्होंने कांग्रेस और झामुमो से यह भी सवाल किया कि क्या वे केवल दिखावे के लिए सरना कोड की बात कर रहे हैं या सच में आदिवासी समाज की जड़ों को बचाने के लिए तैयार हैं?
मरांडी के मुताबिक, सरना धर्म कोड सिर्फ एक पहचान नहीं, बल्कि आदिवासियों की संस्कृति और आस्था की आत्मा है, जिसे बचाने की जिम्मेदारी सरकार और समाज दोनों की है।