
देवघर। बाबा बैद्यनाथ धाम, जो पूरे भारतवर्ष में श्रद्धा और आस्था का प्रतीक माना जाता है, आज एक बड़ी समस्या से जूझ रहा है। मंदिर परिसर में रोजाना लाखों श्रद्धालु बाबा भोलेनाथ पर पवित्र जल अर्पित करते हैं, लेकिन वह जल अब नालियों में बह रहा है। कारण — 2024 में लाखों रुपये की लागत से बना “नीर फिल्टरेशन प्लांट” अब पूरी तरह से बंद पड़ा है। नगर निगम और मंदिर प्रशासन की लापरवाही ने न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि श्रद्धालुओं की धार्मिक भावना को भी ठेस पहुंचाई है।
जानकारी के अनुसार, बाबा बैद्यनाथ मंदिर के बाहर स्थित नीर फिल्टरेशन प्लांट को इस उद्देश्य से बनाया गया था कि श्रद्धालुओं द्वारा अर्पित जल को एकत्रित कर उसका शुद्धिकरण किया जा सके और पुनः उपयोग में लाया जा सके। इस तकनीक से जल संरक्षण को बढ़ावा देने और शहर में स्वच्छता बनाए रखने का लक्ष्य था। लेकिन फिलहाल स्थिति यह है कि प्लांट महीनों से बंद पड़ा है, पाइपलाइनें जाम हैं, और सारा पवित्र जल सीधे नालियों में बह रहा है।
स्थानीय लोगों और पुरोहितों ने इसे “धर्म से खिलवाड़” बताया है। पुरोहित समिति के सदस्य पंडित राजीव झा ने कहा, “बाबा पर चढ़ाया गया जल देव तुल्य माना जाता है। उसका नालियों में बह जाना असहनीय है। नगर निगम और मंदिर प्रशासन को तुरंत इस पर संज्ञान लेना चाहिए।”
श्रद्धालुओं में नाराजगी
हर दिन आने वाले भक्तों की संख्या लाखों में होती है। सावन, महाशिवरात्रि या श्रावणी मेला जैसे अवसरों पर यह संख्या कई गुना बढ़ जाती है। श्रद्धालु बड़ी श्रद्धा से जल लाकर बाबा पर चढ़ाते हैं, लेकिन यह देखकर उनका मन व्यथित हो जाता है कि वही जल मंदिर परिसर से निकलकर सड़कों और नालियों में बह जाता है।
पटना से आए श्रद्धालु विनोद मिश्रा ने कहा, “हम मानते हैं कि यह जल पवित्र है। अगर इसे शुद्ध कर दोबारा उपयोग किया जाए तो यह पुण्य का काम होगा, लेकिन इसे यूं बहते देखना दुखद है।”
नगर निगम पर लापरवाही के आरोप
देवघर नगर निगम के अधिकारियों ने 2024 में बड़े उत्साह के साथ इस परियोजना का उद्घाटन किया था। उस समय दावा किया गया था कि यह प्लांट प्रतिदिन 50,000 लीटर जल को शुद्ध कर पुनः उपयोग के योग्य बनाएगा। लेकिन अब यह व्यवस्था पूरी तरह ठप है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि प्लांट के रखरखाव के लिए कोई स्थायी व्यवस्था नहीं की गई। न तो तकनीकी कर्मचारियों की नियुक्ति हुई और न ही नियमित सफाई का काम। धीरे-धीरे फिल्टर सिस्टम जाम हो गया और मशीनें बंद पड़ गईं।
नगर निगम के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “फिल्टरेशन सिस्टम में तकनीकी खराबी आई है। बजट की कमी और रखरखाव के लिए ठेकेदार न मिलने के कारण फिलहाल काम रुका हुआ है।”
पर्यावरणीय असर भी गंभीर
देवघर धार्मिक नगरी है, लेकिन यहां पर्यावरण संरक्षण की स्थिति चिंताजनक है। मंदिर से निकलने वाला जल सीधे नालियों में जाने से आसपास की सड़कें और गलियां गीली रहती हैं, जिससे दुर्गंध फैलती है और मच्छरों का प्रकोप बढ़ रहा है।
पर्यावरणविदों का कहना है कि अगर इस जल को पुनः उपयोग में लाया जाए, तो इससे न केवल स्वच्छता बढ़ेगी बल्कि पेयजल की भी बचत होगी।
पर्यावरण कार्यकर्ता अरविंद मिश्रा ने कहा, “यह सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि पर्यावरणीय मुद्दा भी है। लाखों लीटर जल का व्यर्थ बहना संसाधनों की बर्बादी है। नगर निगम को तुरंत इस दिशा में कदम उठाना चाहिए।”
प्रशासन से कार्रवाई की मांग
स्थानीय नागरिकों, पुजारियों और सामाजिक संगठनों ने जिला प्रशासन से इस परियोजना को पुनः चालू करने की मांग की है। उनका कहना है कि बाबा बैद्यनाथ धाम देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, और यहां की हर व्यवस्था आदर्श होनी चाहिए।
शहर के समाजसेवी सुनील खवाड़े ने कहा, “यह सिर्फ मशीन की बात नहीं है, यह आस्था की बात है। करोड़ों श्रद्धालुओं की भावनाएं इससे जुड़ी हैं। प्रशासन को तुरंत प्लांट चालू कर धार्मिक मर्यादा को बनाए रखना चाहिए।”
संभावित समाधान
विशेषज्ञों के अनुसार, प्लांट की मरम्मत में ज्यादा खर्च नहीं आएगा। केवल फिल्टर सिस्टम और पाइपलाइन की सफाई, नियमित मॉनिटरिंग और ऑपरेटर की नियुक्ति से यह फिर से चालू हो सकता है। इसके साथ ही, मंदिर प्रशासन और नगर निगम को संयुक्त निगरानी समिति बनानी चाहिए जो प्रतिमाह निरीक्षण करे।
अगर यह प्लांट चालू हो जाता है, तो देवघर जल संरक्षण में देशभर के धार्मिक स्थलों के लिए मिसाल बन सकता है।