
ढाका। बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच रिश्तों को लेकर एक बार फिर पुराने जख्म हरे हो गए हैं। पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार के बांग्लादेश दौरे के दौरान वहां के नेताओं ने साफ कह दिया कि जब तक 1971 के मुद्दे और उस दौर की अत्याचारों का समाधान नहीं होता, तब तक रिश्तों में सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती। इस बयान ने पाकिस्तान की कूटनीति पर सीधा वार कर दिया।
दरअसल, पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने अपने ढाका दौरे के दौरान बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) और जमात-ए-इस्लामी सहित कई विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात की। इस मुलाकात में उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने और सार्क (SAARC) को पुनर्जीवित करने की बात कही। पाकिस्तान लंबे समय से दक्षिण एशिया में सार्क को सक्रिय करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन भारत-बांग्लादेश-पाकिस्तान त्रिकोणीय रिश्तों में तनाव के कारण यह संभव नहीं हो पाया है।
1971 के जख्म अभी भी ताजा
बांग्लादेश के नेताओं ने इस मौके पर पाकिस्तान को याद दिलाया कि 1971 में हुए नरसंहार, मानवाधिकार उल्लंघन और लाखों लोगों के विस्थापन का हिसाब अभी तक नहीं दिया गया है। उन्होंने पाकिस्तान से औपचारिक माफी मांगने, युद्ध अपराधियों को सजा देने और उस दौर के पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने की मांग दोहराई।
1971 का यह मुद्दा बांग्लादेश की राजनीति में आज भी बेहद संवेदनशील है। शेख हसीना सरकार ने इस पर कई बार सख्त रुख अपनाया है। हालांकि हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच व्यापारिक और राजनयिक स्तर पर कुछ नरमी आई थी, लेकिन इस बार की प्रतिक्रिया से साफ है कि जमीनी स्तर पर रिश्तों में अभी भी अविश्वास कायम है।
पाकिस्तान की कूटनीति को झटका
इशाक डार के इस दौरे को पाकिस्तान के लिए एक कूटनीतिक झटका माना जा रहा है। वे बांग्लादेश के साथ व्यापार बढ़ाने, वीज़ा प्रक्रियाओं को सरल बनाने और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने की उम्मीद के साथ गए थे। लेकिन बांग्लादेशी नेताओं ने स्पष्ट संदेश दिया कि 1971 के जख्म भरे बिना यह संभव नहीं।
भारत की नजर भी पैनी
इस घटनाक्रम पर भारत की नजर भी पैनी है। भारत ने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ऐसे में पाकिस्तान-बांग्लादेश के रिश्तों में किसी भी तरह का बदलाव भारत की सामरिक और कूटनीतिक नीति को प्रभावित कर सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान इस समय आर्थिक और राजनीतिक संकट से गुजर रहा है, और वह दक्षिण एशिया में अपने रिश्ते सुधारकर खुद को मजबूत करना चाहता है। वहीं, बांग्लादेश भी चुनावी और राजनीतिक चुनौतियों के बीच है, जहां 1971 का मुद्दा एक भावनात्मक और राष्ट्रीय स्वाभिमान से जुड़ा विषय है।
क्या हो सकता है आगे?
पाकिस्तान की ओर से अब देखना होगा कि वह बांग्लादेश की मांगों पर कितना अमल करता है। अगर पाकिस्तान 1971 के युद्ध अपराधों को स्वीकार करता है और माफी मांगने की दिशा में ठोस कदम उठाता है, तो यह रिश्तों में सुधार की शुरुआत हो सकती है। लेकिन पाकिस्तान के राजनीतिक हालात और उसके आंतरिक दबाव को देखते हुए निकट भविष्य में ऐसा होना कठिन लग रहा है।
विश्लेषकों का कहना है कि बांग्लादेश-पाकिस्तान रिश्तों का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि दोनों देश पुराने विवादों को कितनी जल्दी और किस तरह सुलझाते हैं। फिलहाल, इस दौरे ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि इतिहास के जख्म आसानी से नहीं भरते।