भादो मेला: श्रावणी मेले के बाद श्रद्धा और परंपरा का संगम

भादो मेला: श्रावणी मेले के बाद श्रद्धा और परंपरा का संगम

देवघर – बाबा बैद्यनाथ धाम न केवल श्रावणी मेले के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके बाद आयोजित होने वाले भादो मेले के लिए भी श्रद्धालुओं के बीच विशेष स्थान रखता है। सावन समाप्त होते ही भाद्रपद माह में आयोजित होने वाला यह मेला धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक परंपरा और लोक जीवन का अद्भुत संगम माना जाता है।

भादो मेले की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भादो मेले की परंपरा सदियों पुरानी है। मान्यता है कि सावन में बाबा भोलेनाथ को जलार्पण और पूजन के बाद भाद्रपद महीने में भक्त पुनः दर्शन करने आते हैं। इसे श्रद्धा की पुनरावृत्ति कहा जाता है। कई स्थानीय कथाओं के अनुसार, प्राचीन समय में श्रावणी मेले के बाद भी भक्त अपने गांव लौटने से पहले बाबा का दोबारा आशीर्वाद लेने आते थे। धीरे-धीरे यह परंपरा एक वार्षिक मेले के रूप में बदल गई, जिसे अब भादो मेला कहा जाता है।

श्रावणी मेले से भादो मेले का संबंध

श्रावणी मेला सावन महीने में कांवड़ियों की भीड़ और लंबी यात्रा के लिए जाना जाता है। इस दौरान लाखों श्रद्धालु सुल्तानगंज से गंगा जल लेकर 108 किलोमीटर पैदल यात्रा कर बाबा बैद्यनाथ के दर्शन करते हैं।
भादो मेला, सावन की इस भव्यता के बाद, अधिक शांत और स्थानीय स्वरूप में आयोजित होता है। यहां आने वाले भक्त मुख्यतः आसपास के जिलों और राज्यों से होते हैं, जो बाबा का दर्शन अपेक्षाकृत कम भीड़ में करना चाहते हैं।

धार्मिक महत्व

भादो मेले का धार्मिक महत्व गहरा है। मान्यता है कि इस समय बाबा भोलेनाथ का पूजन करने से वर्षभर सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। कई लोग इसे कर्ज़ मुक्ति, रोग निवारण और संतान सुख की कामना के लिए विशेष अवसर मानते हैं।
भक्त जलाभिषेक के साथ-साथ रुद्राभिषेक और विशेष पूजन भी कराते हैं। स्थानीय पंडा समाज इस मेला अवधि में विशेष अनुष्ठान की व्यवस्था करता है।

मेले का स्वरूप और आयोजन

भादो मेला भले ही श्रावणी मेले जितना विशाल न हो, लेकिन इसकी रौनक अलग होती है।

पूजन-अर्चना: सुबह से ही मंदिर में पूजा-पाठ, घंटों की आवाज और ‘बम बम भोले’ के जयकारे गूंजते रहते हैं।

सांस्कृतिक कार्यक्रम: स्थानीय कलाकार झारखंडी लोक नृत्य, भजन-कीर्तन और धार्मिक नाटकों का मंचन करते हैं।

व्यापारिक गतिविधियां: मेले में खिलौनों, मिठाइयों, हस्तशिल्प, धार्मिक पुस्तकों और प्रसाद की दुकानें सजती हैं।

भंडारे और लंगर: कई संस्थाएं और भक्त नि:शुल्क भोजन वितरण की व्यवस्था करते हैं।

सुरक्षा और सुविधाएं

प्रशासन भादो मेले के दौरान सुरक्षा और सुविधा पर विशेष ध्यान देता है। मंदिर परिसर और आस-पास पुलिस बल तैनात रहता है। मेडिकल कैंप, लापता केंद्र, पेयजल और साफ-सफाई की व्यवस्था भी की जाती है।
सीसीटीवी कैमरों से निगरानी और भीड़ प्रबंधन के लिए विशेष मार्ग निर्धारित किए जाते हैं।

भादो मेले में भक्तों का अनुभव

भक्त बताते हैं कि श्रावणी मेले के बाद भादो मेले में बाबा के दर्शन का अनुभव अलग होता है, क्योंकि यहां श्रद्धालु शांत माहौल में समय लेकर पूजा कर सकते हैं।
एक स्थानीय व्यापारी के अनुसार, भादो मेला क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को भी गति देता है, क्योंकि इस दौरान आसपास के गांवों से लोग खरीदारी करने आते हैं।

सांस्कृतिक धरोहर

भादो मेला सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर भी है। यहां लोकगीत, झारखंडी खानपान, पारंपरिक पहनावा और कला का सुंदर प्रदर्शन होता है। यह मेला आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने का काम करता है।

भादो मेला बाबा बैद्यनाथ धाम की आस्था, परंपरा और संस्कृति का प्रतीक है। श्रावणी मेले की भव्यता के बाद यह मेला भक्तों को एक और अवसर देता है बाबा का आशीर्वाद लेने का। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि स्थानीय समाज और अर्थव्यवस्था के लिए भी अहम भूमिका निभाता है।
भक्तों के लिए यह अवसर है – भीड़ से दूर, शांति में, पूरी श्रद्धा के साथ हर हर महादेव का जाप करते हुए बाबा की शरण में जाने का।

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भादो मेला, श्रावणी मेले के बाद बाबा बैद्यनाथ धाम में आयोजित होने वाला धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है। जानिए इसका इतिहास, महत्व और आयोजन की खास बातें।

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