राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत द्वारा हाल ही में दिए गए बयान—“भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करना जरूरी है”—ने देश की राजनीति, सामाजिक विमर्श और धार्मिक नेतृत्व के बीच नई बहस खड़ी कर दी है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब हिंदू राष्ट्र की अवधारणा पर देश में लगातार चर्चाएं तेज़ होती रही हैं। लेकिन इस बयान का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर अकसर मुखर रहने वाले बागेश्वर धाम के प्रमुख धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री इस चर्चा के केंद्र में फिर से आ सकते हैं। सवाल यह उठ रहा है कि क्या भागवत के इस बयान से शास्त्री के प्रभाव क्षेत्र या उनके एजेंडा पर किसी तरह का असर पड़ सकता है?

भागवत का बयान—एक बार फिर हिंदू राष्ट्र की बहस गरम
मोहन भागवत ने अपने संबोधन में स्पष्ट कहा कि भारत की सभ्यता, संस्कृति और सामाजिक संरचना मूल रूप से हिंदू विचार पर आधारित रही है, इसलिए भारत को “हिंदू राष्ट्र” के रूप में घोषित करना समय की मांग है। उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू शब्द किसी विशेष मजहब की पहचान नहीं, बल्कि “जीवन पद्धति” का प्रतिनिधित्व करता है, जो समावेश, सहिष्णुता और सांस्कृतिक विविधता को स्वीकार करती है।
RSS प्रमुख का बयान आने के बाद राजनीतिक गलियारों से लेकर सोशल मीडिया तक बहस शुरू हो गई है। समर्थक इसे भारत की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने की दिशा में कदम बता रहे हैं, जबकि विरोधी इसे देश की सेक्युलर संरचना के खिलाफ मान रहे हैं।
धीरेन्द्र शास्त्री—पहले ही कर चुके हैं ‘हिंदू राष्ट्र’ की वकालत
दिलचस्प बात यह है कि मोहन भागवत का यह बयान ऐसे समय में आया है जब बागेश्वर धाम के प्रमुख कथावाचक धीरेन्द्र शास्त्री पिछले दो वर्षों से भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग को लेकर सुर्खियों में बने हुए हैं। शास्त्री कई मंचों से यह दावा कर चुके हैं कि “भारत पहले से हिंदू राष्ट्र है और इसे आधिकारिक रूप से घोषित करने की जरूरत है।”
शास्त्री के समर्थक कहते हैं कि उनका उद्देश्य हिंदू समाज को एकजुट करना और सनातन संस्कृति की रक्षा करना है। उनके कथनों और ‘दिव्य दरबार’ से जुड़े घटनाक्रमों ने उन्हें युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय बनाया है।
क्या भागवत के बयान से शास्त्री की लाइन कमजोर होगी?
विशेषज्ञों का मानना है कि RSS प्रमुख का यह बयान दो तरह से धीरेन्द्र शास्त्री के एजेंडा को प्रभावित कर सकता है:
1. RSS की आधिकारिक राय सामने आने से मुद्दा मुख्यधारा में आ गया
हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को अब केवल किसी कथावाचक या धार्मिक व्यक्तित्व की मांग के रूप में नहीं देखा जाएगा। अब यह देश के सबसे बड़े संगठित सामाजिक-वैचारिक संगठन के प्रमुख का आधिकारिक दृष्टिकोण बन चुका है।
इससे यह मुद्दा भावनात्मक नहीं बल्कि वैचारिक और नीतिगत बहस के दायरे में आ जाएगा।
2. सार्वजनिक संवाद पर शास्त्री का प्रभाव कम हो सकता है
अब तक हिंदू राष्ट्र के प्रश्न पर धीरेन्द्र शास्त्री को मुख्य चेहरे के रूप में देखा जाता था। चूंकि RSS का नेटवर्क और प्रभाव कहीं अधिक व्यापक है, इसलिए यह संभव है कि शास्त्री की भूमिका इस बहस में अपेक्षाकृत कमज़ोर पड़ जाए।
हालांकि, ऐसा भी हो सकता है कि RSS और शास्त्री का नजरिया एक-दूसरे को पूरक साबित करे।
शास्त्री समर्थकों की प्रतिक्रिया—“भागवत जी ने हमारी भावना को बल दिया”
सोशल मीडिया पर शास्त्री समर्थकों ने इस बयान का स्वागत करते हुए कहा कि मोहन भागवत ने वही बात दोहराई है जो बागेश्वर धाम पीठ प्रमुख पिछले काफी समय से कहते आ रहे हैं। कई यूज़र्स ने लिखा कि “अब हिंदू राष्ट्र की मांग और तेज होगी।”
दूसरी ओर, कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि इससे शास्त्री की विशिष्ट पहचान कम हो सकती है।
राजनीतिक गलियारे में हलचल
भागवत के बयान का राजनीतिक असर भी देखने को मिल रहा है। विपक्षी दलों ने इसे संविधान की मूल भावना और सेक्युलर स्ट्रक्चर पर हमला बताया है। वहीं, सत्ता पक्ष से जुड़े कई नेताओं ने इसे भारत की सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े विचार के रूप में प्रस्तुत किया है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह बयान आने वाले चुनावों में भी महत्वपूर्ण मुद्दा बन सकता है।
हिंदू राष्ट्र—भारत की संवैधानिक संरचना पर क्या होगा असर?
भारत का संविधान देश को सेक्युलर लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में परिभाषित करता है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यदि भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाता है तो संविधान के किन प्रावधानों में बदलाव लाना होगा।
संवैधानिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक स्तर पर भी बड़ा परिवर्तन होगा, क्योंकि भारत की विविधता उसकी शक्ति रही है।
धीरेन्द्र शास्त्री की अगली रणनीति?
मौजूदा स्थिति में यह सवाल प्रमुख रूप से उठ रहा है कि मोहन भागवत की ओर से हिंदू राष्ट्र पर स्पष्ट बयान आने के बाद धीरेन्द्र शास्त्री अपनी रणनीति में क्या बदलाव करते हैं।
क्या वे इस मुद्दे पर और अधिक सक्रिय होंगे?
या फिर राष्ट्रीय स्तर पर RSS के नेतृत्व के कारण उनकी भूमिका सीमित हो जाएगी?
इस पर शास्त्री की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
मोहन भागवत के बयान ने हिंदू राष्ट्र की बहस को नई दिशा दे दी है। यह दावा केवल धार्मिक या सांस्कृतिक मंच तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अब यह राजनीतिक, वैचारिक और संवैधानिक विमर्श के केंद्र में आ गया है।
धीरेन्द्र शास्त्री के लिए यह बयान एक अवसर भी हो सकता है और चुनौती भी—अवसर इसलिए कि उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे को राष्ट्रीय समर्थन मिला है; चुनौती इसलिए कि अब इस विषय का केंद्रीय नेतृत्व RSS के हाथ में आ गया है।
