
बिहार की राजनीति में इन दिनों सबसे बड़ी चर्चा का विषय है जनसुराज पार्टी की बढ़ती पकड़। प्रशांत किशोर (PK) के नेतृत्व में यह नई राजनीतिक ताकत लगातार मैदान में सक्रिय है और हालिया सर्वे के आंकड़े चौंकाने वाले साबित हुए हैं। सर्वे के अनुसार, बिहार की 36 विधानसभा सीटों पर जनसुराज पार्टी की पकड़ बेहद मजबूत बताई जा रही है। इससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या आने वाले विधानसभा चुनावों में NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) और महागठबंधन (RJD-कांग्रेस-जेडीयू का गठजोड़) को जनसुराज चुनौती दे पाएगी?
जनसुराज पार्टी का ग्राउंड कनेक्शन
जनसुराज पार्टी ने पिछले दो वर्षों में गांव-गांव जाकर जनसुनवाई और पदयात्राओं के माध्यम से जनता से सीधा संवाद बनाया है। प्रशांत किशोर ने विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को प्राथमिकता दी है।
बिहार के ग्रामीण इलाकों में युवा और पहली बार वोट देने वाले मतदाता बड़ी संख्या में पार्टी से जुड़ते दिख रहे हैं।
पार्टी का सबसे ज्यादा असर मिथिलांचल, सीमांचल और उत्तर बिहार में देखा जा रहा है।
सामाजिक समीकरणों के लिहाज से पार्टी ने दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्गों को भी अपने साथ जोड़ने की रणनीति अपनाई है।

सर्वे के आंकड़े क्या कहते हैं?

सर्वे के आंकड़े क्या कहते हैं?
36 सीटों पर जनसुराज पार्टी मजबूत स्थिति में है।
इनमें से 20 सीटें ऐसी हैं, जहां पार्टी सीधी टक्कर देती दिखाई दे रही है।
10 सीटों पर पार्टी को निर्णायक बढ़त मिलती दिख रही है।
शेष सीटों पर जनसुराज पार्टी किंगमेकर की भूमिका में आ सकती है।
इस सर्वे से यह भी साफ होता है कि जनता पारंपरिक राजनीति से हटकर नई राजनीतिक शक्ति को मौका देने पर विचार कर रही है।
NDA और महागठबंधन पर असर
बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों और गठबंधन की राजनीति पर आधारित रही है। NDA और महागठबंधन दोनों ही इस समय अपनी-अपनी रणनीति में व्यस्त हैं।
NDA को भाजपा और जदयू मिलकर ओबीसी और सवर्ण वोटबैंक पर भरोसा है।
वहीं, महागठबंधन (RJD, कांग्रेस, वाम दल) यादव-मुस्लिम समीकरण और दलित समर्थन पर निर्भर है।
लेकिन जनसुराज पार्टी के आने से यह समीकरण बिगड़ सकते हैं। खासकर उन इलाकों में जहां युवा और पढ़ा-लिखा तबका नए विकल्प की तलाश में है।
जनसुराज की रणनीति क्यों काम कर रही है?
1. मुद्दों की राजनीति – बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य को एजेंडा बनाया।
2. संगठनात्मक मजबूती – गांव-गांव कार्यकर्ताओं को जोड़ना।
3. प्रशांत किशोर का अनुभव – चुनावी मैनेजमेंट और रणनीति की गहरी समझ।
4. युवा कनेक्शन – सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मजबूत पकड़।
चुनावी समीकरणों में बदलाव
बिहार में अब तक चुनावी मुकाबला NDA और महागठबंधन तक सीमित रहा है। लेकिन जनसुराज पार्टी के उभरने से त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना बढ़ गई है।
इससे कई सीटों पर NDA और RJD दोनों को नुकसान हो सकता है।
अगर जनसुराज पार्टी इन 36 सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करती है तो यह राज्य की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका निभा सकती है।

जनता की राय

जनता की राय
सर्वे में यह भी सामने आया है कि जनता अब केवल जाति आधारित राजनीति से आगे बढ़कर काम और विकास पर वोट करना चाहती है।
55% लोगों ने कहा कि वे रोजगार और शिक्षा को प्राथमिकता देंगे।
30% ने स्वास्थ्य सेवाओं की खराब स्थिति को सबसे बड़ा मुद्दा बताया।
15% ने कहा कि वे अब पुराने नेताओं और पार्टियों से बदलाव चाहते हैं।
आने वाले चुनावों पर असर
अगर जनसुराज पार्टी इन सीटों पर अपना प्रभाव बनाए रखती है, तो बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव संभव है।
NDA और महागठबंधन दोनों के लिए चुनौती बढ़ेगी।
बिहार की राजनीति में एक नई धुरी बन सकती है।
भविष्य में यह पार्टी राष्ट्रीय राजनीति में भी अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर सकती है।
बिहार की 36 सीटों पर जनसुराज पार्टी की पकड़ ने राजनीतिक समीकरण बदल दिए हैं। NDA और महागठबंधन दोनों को अपनी रणनीति पर दोबारा विचार करना होगा। अब देखना यह होगा कि आने वाले चुनाव में यह बढ़त वोटों में तब्दील होती है या नहीं। लेकिन इतना तय है कि बिहार की राजनीति में अब जनसुराज पार्टी को नज़रअंदाज़ करना आसान नहीं होगा।